रजनी पिछले 7-8 महीनों से अपने पीहर में रह रही है. करीब 5 वर्ष पहले उस की शादी बड़ी धूमधाम से राजेश के साथ हुई थी. राजेश एक स्कूल में टीचर था तथा रजनी भी अंगरेजी में मास्टर की डिगरी ले चुकी थी. शादी के थोड़े समय बाद ही दोनों में मनमुटाव होने लगा. दोनों के ही घर वालों ने उन्हें समझाने का बहुत प्रयास किया, मगर वे झुकने को तैयार नहीं थे. एक दिन गुस्से में राजेश ने रजनी पर हाथ उठा दिया और उसी दिन अपमान की आग में सुलगती रजनी ने पति का घर छोड़ दिया. तब से वह अपने पीहर में ही रह रही है.
एक दिन रजनी की 7 वर्षीय भतीजी नेहा ने अपनी मां यानी रजनी की भाभी से कहा, ‘‘मां, बूआ संतोषी माता की पूजा क्यों नहीं करतीं? इस से उन के सारे दुख दूर हो जाएंगे.’’
यह सुन कर उस की मां को हैरानी हुई. उस ने जब पूछा कि तुम क्या जानती हो संतोषी माता के बारे में? बेटी ने बताया कि उस ने ऐंड टीवी पर एक सीरियल में देखा था, जिस में संतोषी माता अपनी पूजा करने वाली संतोषी की बहुत मदद करती हैं. अगर बूआ भी उन की पूजा करेंगी तो संतोषी माता जरूर कोई चमत्कार करेंगी और फूफाजी को सबक सिखाएंगी.
अंधविश्वासों का जाल
विज्ञान विषय की 16 वर्षीय छात्रा आंचल ने एक दिन अपनी मां से कहा कि अब से वह पीरियड्स के दौरान मंदिर नहीं जाएगी और रसोई के काम में भी हाथ नहीं लगाएगी. कारण पूछने पर उस ने बताया कि उस ने टीवी में एक सीरियल में देखा था कि ऐसा करने पर बहुत पाप लगता है और नरक में जाना पड़ता है. सुन कर उस की मां अवाक रह गई. सिर्फ नेहा और आंचल ही नहीं, कच्ची उम्र के बहुत से बच्चे टीवी सीरियलों द्वारा फैलाए जा रहे इन अंधविश्वासों के जाल में उलझे हुए हैं.
2013 में राजस्थान के गंगापुर सिटी में रहने वाले एक परिवार ने जोकि टीवी पर सिर्फ धार्मिक सीरियल ही देखा करता था, भगवान शिव से मिलने और स्वर्ग जाने की चाहत में जहर खा लिया और 8 में से 5 लोगों की मृत्यु हो गई.
आज के समय में टीवी मनोरंजन का सब से सस्ता और सहज उपलब्ध साधन है. घरघर के ड्राइंगरूम और बैडरूम में जगह बनाने वाले इस इडियट बौक्स से सब से ज्यादा लगाव महिलाओं और बच्चों का होता है. ऐसा नहीं है कि पुरुषों को इस से परहेज है, मगर वे अपनेआप को अधिकतर न्यूज और स्पोर्ट्स चैनल और ज्यादा हो तो बिजनैस चैनल तक ही सीमित रखते हैं. उन के पास टीवी देखने का वक्त भी कम ही होता है. मगर बच्चे और महिलाएं विशेषकर गृहिणियां इस की सब से ज्यादा शौकीन होती हैं.
महिलाओं में धर्म के प्रति आस्था भी अधिक देखी जाती है, इसलिए भी वे धार्मिक धारावाहिक देखना अधिक पसंद करती हैं. एक तरह से वे इसे घर बैठे गंगा स्नान करने जैसा मानती हैं यानी मनोरंजन का मनोरंजन और भक्ति की भक्ति. और बच्चे तो होते ही हैं जिज्ञासाओं से भरपूर. उन्हें तो फिक्शन और अनहोनी सी लगने वाली घटनाएं और अजीबोगरीब किरदार सदा से ही आकर्षित करते रहे हैं. बच्चों और महिला दर्शकों की अधिक संख्या के चलते ही टीवी चैनलों पर इस तरह के धारावाहिकों की बाढ़ सी आ गई है. चाहे वह लाइफ ओके चैनल का सीरियल ‘देवों के देव महादेव’ हो या फिर ऐंड टीवी पर दिखाया जाने वाला सीरियल ‘गंगा’ ये सभी बढ़चढ़ कर टीआरपी बटोर रहे हैं और किरदारों के चमत्कारिक और डरावने कारनामों के साथसाथ दर्शकों को हंसा और रुला भी रहे हैं.
टीआरपी बटोरने का गलत तरीका
सिर्फ धार्मिक सीरियल ही नहीं कई अन्य सीरियल भी अंधविश्वास परोसने में पीछे नहीं हैं. कलर्स टीवी पर एक धारावाहिक में एक इच्छाधारी नागिन को मौडर्न अवतार में बदला लेते दिखाया गया है. इसी तरह स्टार प्लस के धारावाहिक ‘मोहब्बतें’ में एक किरदार शगुन के भूत को दिखाया गया है, जो दूसरे किरदार इशिता को परेशान कर रहा है. पिछले दिनों जी टीवी पर एक धारावाहिक ‘कुबूल’ प्रसारित किया जा रहा था, जिस की पृष्ठभूमि में भोपाल के शाही घराने और वहां के नवाब को दिखाया गया था. अतिआधुनिक परिवेश वाले इस सीरियल में चुड़ैल, टोनेटोटके, काला जादू, बुरी आत्माएं, पिशाच और न जाने क्याक्या परोसा जाता था.
मानसिक शिकार होते लोग
कहने का तात्पर्य यह है कि इन सीरियलों को देख कर लगता है कि अंधविश्वास पिछड़े और अनपढ़ लोगों में ही नहीं होता, बल्कि पढ़ेलिखे, उच्च पद पर आसीन और सभी आधुनिक गैजेट्स इस्तेमाल करने वाले लोग भी समान मानसिक रूप से इस के शिकार होते हैं.
इस तरह के धारावाहिक देखदेख कर बड़े हो रहे बच्चों के बाल मन में ये घटनाएं और इन के किरदार अपनी स्थाई जड़े जमा लेते हैं और बड़े होने पर इन्हें कितनी भी दलीलें दे कर समझाया जाए, इन के अवचेतन मन में ये घटनाएं कहीं न कहीं छिपी रह ही जाती हैं.
आज लगभग हर छोटाबड़ा चैनल अपने दर्शकों को मनोरंजन के नाम पर अंधविश्वास परोस रहा है. बेशक चैनल का मकसद सिर्फ दर्शकों का मनोरंजन करना और अपनी लोकप्रियता बढ़ाना ही होता होगा, मगर जानेअनजाने इन के जाल में उलझते बच्चे अपनी राह से भटक रहे हैं.
कुछ दिन पहले अपने पड़ोस में रहने वाली 8वीं कक्षा की छात्रा ममता को सुबहसुबह मंदिर जाते हुए देखा तो यों ही पूछ लिया, ‘‘अरे तुम मंदिर से आ रही हो… स्कूल को देर नहीं हो रही?’ इस पर ममता कहने लगी, ‘‘क्या करूं? मम्मी की जिद है कि व्रत करूं या न करूं, मगर हर सोमवार को शिवजी के दर्शन अवश्य करूं. मेरे विरोध करने पर उन्होंने मुझे ‘देवों के देव महादेव’ सीरियल देखने को कहा जिस में वाकई में यह दिखाया गया है कि ऐसा करने से हर मनोकामना पूरी होती है.’’
अनहोनी की आशंका
अब बड़े होने पर चाहे ममता पढ़लिख कर कितनी भी आधुनिक क्यों न हो जाए, हर सोमवार को शिवजी के दर्शन वह अवश्य करेगी. चाहे मंदिर जा कर करे या फिर घर पर ही. अगर किसी कारण यह संभव न हो पाए तो उस के मन में हमेशा अनहोनी की आशंका बनी रहेगी.
विविधताओं से भरे और करीब सवा अरब की आबादी वाले हमारे देश में सिर्फ 33 हजार लोग ही नास्तिक हैं. 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार कुछ ही लोग ऐसे हैं जो भगवान को नहीं मानते. इस से पहले 2012 में जारी वैश्विक धार्मिकता सूचकांक के एक अनुमान के मुताबिक भारत में सिर्फ 3% लोग ही हैं जो ईश्वर में यकीन नहीं करते.
आस्था और अंधविश्वास के बीच की विभाजनरेखा बहुत ही महीन होती है. हम अनजाने ही इसे कब पार कर जाते हैं और कब यह आस्था हमारे अंधविश्वास में बदल जाती है हम खुद भी नहीं पहचान पाते.
टैलीविजन तो खुद ही विज्ञान की देन है, लेकिन यह टीवी 21वीं सदी के विज्ञान के पथ पर बढ़ते बच्चों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाल कर उन्हें अंधविश्वास की ओर धकेल रहा है.
अंधश्रद्घा निर्मूलन समिति के डा. दिनेश मिश्रा के अनुसार, इन दिनों टीवी धारावाहिकों में डायन, नागनागिन, काला जादू और प्राचीन कुरीतियों से जुड़ी घटनाओं आदि को बहुतायत से दिखाया जा रहा है और इस के नकारात्मक प्र्रभाव भी सामने आ रहे हैं. यानी जिस तकनीक का इस्तेमाल अंधविश्वास दूर करने में किया जाना चाहिए उसी का उपयोग अंधविश्वास फैलाने के लिए किया जा रहा है.
किसी काम का नहीं कानून
विश्व भर में भारत के वैज्ञानिकों की एक खास पहचान है. लेकिन हमारे टीवी सीरियल आज भी जादूटोना और भूतप्रेतों से बाहर नहीं निकल पा रहे.
1988 में आए एक टीवी सीरियल ‘होनीअनहोनी’ को डीडी चैनल पर प्रसारित करने पर रोक लगा दी गई थी, क्योंकि इस में अंधविश्वास, भूतप्रेत जैसे कंटैंट दिखाए जा रहे थे. हालांकि बाद में कोर्ट ने इसे प्रसारित करने के आदेश दे दिए थे. ब्रौडकास्टिंग कंटैंट कंप्लेंट काउंसिल यानी बीसीसीसी पहले ही इस तरह के कंटैंट को प्रसारित करने वाले चैनलों को ऐडवाइजरी जारी कर चुका है और पिछले दिनों भी इस के चेयरमैन मुकुल मृदुल ने एक निर्देश जारी किया था, जिस के अनुसार बीते दिनों में काउंसिल को टीवी शोज में डायन, चुड़ैल, जादूटोना, अंधविश्वास जैसे सीन खासतौर पर महिलाओं को नैगेटिव रूप में अधिक दिखाए जाने की शिकायतें बहुत मिली हैं, इसलिए इन्हें बढ़ाचढ़ा कर न दिखाया जाए, साथ ही अगर स्टोरी लाइन के लिहाज से यह आवश्यक हो तो चैनल को टैलीकास्ट करते समय स्क्रोल चलाना होगा कि यह सब काल्पनिक है. फिर भी सवाल यह उठता है कि क्या बीसीसीसी केवल तभी कोई कदम उठाता है जब कोई शिकायत दर्ज हो? क्या खुद उस की नजर इन पर नहीं पड़ती?
बचने की जरूरत
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सभी को बोलने और अपनी राय रखने का अधिकार है, लेकिन क्रिएटिव फ्रीडम के नाम पर कुछ भी दिखाने पर रोक लगनी ही चाहिए और विशेषकर तब जब मामला आने वाली पीढ़ी यानी कि बच्चों से जुड़ा हो.
साथ ही गृहिणियों को भी अपना कीमती समय इन धारावाहिकों को देखने में बरबाद न कर कुछ रचनात्मक करना चाहिए. अपने बच्चों के लिए भी यह उन की नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे खुद भी अंधविश्वासों से दूर रहें और उन्हें भी दूर रखें. अच्छे मनोरंजक और ज्ञानवर्धक सीरियल ही देखें.