यह कहना गलत नहीं होगा कि बीते जमाने के गायकों को आज की पीढ़ी लगभग बिसारती जा रही हैं. आज युवा पीढ़ी को तड़क-भड़क वाले ‘फास्ट सांग’ पसंद हैं, लेकिन किशोर दा इसके अपवाद हैं उनके नगमे आज भी युवाओं को प्रेरित करते हैं. समय भले ही बदल गया हो लेकिन किशोर अभी भी प्रासंगिक हैं.
बहुमुखी प्रतिभ के धनी यह शख्स अभिनेता, गायक, निर्देशक, निर्माता, गीतकार सब कुछ थे. पर उनका मूल योगदान गायन और अभिनय के क्षेत्र में ही है. किशोर ही वह आवज थे जिसने हिंदी सिनेमा की गायकी के आसमान पर चकाचौंध बिखेरा. 60-70 के दशक में किशोर की गायकी का आलम यह था कि वे राजेश खन्ना, देवानंद और अमिताभ बच्चन जैसे बड़े सितारों की ‘आवाज’ बन चुके थे.
किशोर की खूबी यही थी कि देव साहब जैसे सीनियर मोस्ट अभिनेताओं से लेकर संजय दत्त, राजीव कपूर, सनी देओल जैसे उनके समय के नवोदित अभिनेताओं तक पर उनकी आवाज सूट करती थी. योडलिंग और अपने चुलबुलाहट भरी आवाजों से वे गानों में जान फूंकते थे. ‘जिंदगी एक सफर है सुहाना’ और ‘चला जाता हूं किसी की धुन में धड़कते दिल के तराने लिये’ जैसे गाने इसका शानदार उदाहरण हैं.
लेकिन क्या आप यकीन करेंगे कि आभास कुमार गांगुली यानी फिल्मी दुनिया के किशोर कुमार बचपन में ‘बेसुरे’ थे. उनके गले से सही ढंग से आवाज नहीं निकलती थी लेकिन एक हादसे ने उनके गले से इतनी ‘रियाज’ करवाई कि वे सुरीले बन गए.
किशोर कुमार के बड़े भाई अशोक कुमार ने एक इंटरव्यू में बताया था कि किशोर का पैर एक बार हंसिए पर पड़ गया. इससे पैर में जख्म हो गया. दर्द इतना ज्यादा था कि किशोर कई दिन तक रोते रहे. इतना रोये कि गला खुल गया और उनकी आवाज में ‘जादुई असर’ आ गया.
अभिनेता के रूप में उनकी शुरुआत 1946 की फिल्म ‘शिकारी’ से हुई. पहली बार गाने का मौका मिला फिल्म ‘जिद्दी’ में, इस गाने को देवानंद पर फिल्माया गया. यह वह दौर था जब अभिनेता किशोर को अपने गाने के लिए दूसरे सिंगर की आवाज उधार लेनी पड़ती थी.
वैसे तो किशोर ने कई फिल्मों में काम किया लेकिन ‘चलती का नाम गाड़ी’ और ‘पड़ोसन’ अभिनेता और गायक के रूप में उनके लिये मील का पत्थर रहीं. ‘चलती का नाम गाड़ी’ में उनके दो भाइयों अशोक कुमार और अनूप कुमार ने भी काम किया.
फिल्मी दुनिया में उनके ज्यादा दोस्त नहीं थे. वो खाली समय में अपने घर पर ही रहना पसंद करते थे. लेकिन इसके बावजूद कई विवादों में भी रहे. ऐसा कहा जाता है कि एक बार इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के कुछ लोग उनके घर आए, उन पर उन्होंने अपने कुत्ते छोड़ दिए. उन्होनें अपने घर के बाहर लिखवा रखा था कि किशोर कुमार से बचकर.
इतना ही नहीं उन्होंने 1975 और 1976 इमरजेंसी के दौरान संजय गांधी और इंदिरा गांधी के 20 प्वाइंट प्रोग्राम पर आधारित कांग्रेस रैली में गाने के लिए माना कर दिया था. जिसके बाद औल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर उनके गानों पर बैन लगा दिया गया था.
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