Hindi Movies :  आजकल फिल्म इंडस्ट्री और दर्शकों के बीच सब से बड़ी चर्चा चल रही है कि ऐसी क्या वजह है कि आज के समय में हिंदी फिल्में नहीं चल रहीं जैसी साल 2000 या यों कहें कि 1990 के दौर में चला करती थीं.

फिल्मी इतिहास गवाह है कि भारत ही नहीं भारत के बाहर भी बौलीवुड फिल्में और बौलीवुड स्टारों का क्रेज हमेशा से बना रहा है. लेकिन आज के दौर में हिंदी फिल्मों में 100 में से 1 फिल्म अच्छा बिजनैस करती है और वह भी किसी साउथ फिल्म की रीमेक होती है बाकी हिट स्टार्स हो या बिग बजट, दर्शकों को थिएटर तक लाने में असमर्थ साबित हो रहे हैं.

भारत पर राज करने वाली हिंदी फिल्में अपना वजूद खो रही हैं. बिग स्टार्स और बिग बजट फिल्म होने के बावजूद दर्शक थिएटर तक फिल्म देखने नहीं पहुंच रहे. इस बात के लिए भी साउथ इंडस्ट्री को जिम्मेदार ठहराया जाता है, तो कभी ओटीटी प्लेटफौर्म को. गीतकार लेखक जावेद अख्तर का भी मानना है कि आज के समय में क्योंकि दर्शकों को बड़ी से बड़ी फिल्में कुछ ही महीनों बाद लोगों के मोबाइलों पर या ओटीटी पर उपलब्ध हो जाती हैं इसलिए दर्शक थिएटर तक आने में दिलचस्पी नहीं रखते.

कुछ लोगों का मानना है कि मल्टीप्लैक्स थिएटर के महंगे टिकट और बड़े खर्च भी दर्शकों को थिएटर से दूर कर रहे हैं. अगर यह सच है तो अल्लू अर्जुन की फिल्म ‘पुष्पा 2’, विकी कौशल की ‘छावां’, राजकुमार राव की ‘स्त्री 2’, शाहरुख खान की ‘जवान’ और ‘पठान’ देखने दर्शक थिएटर तक कैसे पहुंचे? और इन फिल्मों ने ₹500 करोड़ पार तक का बिजनैस कैसे किया?

अगर दर्शक ओटीटी तक ही सीमित हैं तो ये सारी फिल्में देखने थिएटर तक कैसे पहुंचे. ऐसे में सवाल यह उठता है कि ऐसी क्या वजह है कि 100 में से एक फिल्म ही अच्छी चल रही है? दर्शक थिएटर तक क्यों नहीं पहुंच रहे? एक अच्छी फिल्म का फौर्मूला क्या है? हिंदी फिल्मों के निर्माण को ले कर कहां गलतियां हो रही हैं? पेश हैं, इसी सिलसिले पर एक नजर :

फिल्मी इतिहास गवाह है कि अगर फिल्म अच्छी है तो वह जरूर चलती है. ज्यादातर लोगों का मानना है कि अगर फिल्म में बड़े स्टार हैं या फिल्म का बजट करोड़ों में है, आउटडोर शूंटिंग्स में विदेश की खूबसूरत लोकेशंस है, तो वे फिल्में जरूर चलती हैं क्योंकि अगर एक बार फिल्म की कहानी अच्छी न भी हो तो भी दर्शक अपने फेवरिट हीरो को देखने या खूबसूरत लोकेशंस देखने थिएटर तक आ ही जाते हैं. लेकिन अब ऐसा नहीं है। आज की पब्लिक फिल्मों की पसंद को ले कर चालाक हो गई है. आज के समय में दर्शकों को फिल्म का कंटेंट और मेकिंग अच्छी होना सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण लगता है. फिर उस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि फिल्म में कोई हिट कलाकार है या नया कलाकार या फिल्म की शूटिंग किसी गांव में की गई है या विदेशों में.

इस का जीताजागता उदाहरण हाल ही में रिलीज हुई फिल्म क्रेजी का है जिस में न तो कोई बड़ा कलाकार है न ही विदेश की कोई लोकेशन है, बावजूद इस के कम बजट में बनी इस फिल्म ने 14 दिनों के अंदर अपनी लागत से ज्यादा का बिजनैस कर लिया. फिल्म को प्रचार के जरीए इतनी लोकप्रियता मिली कि इस फिल्म के मेकर्स को मुंबई के बाहर भी दूसरे शहरों में नए थिएटर में फिल्म के नए शोज बुक करने पड़े

इस के पीछे वजह सिर्फ एक ही थी कि फिल्म की कहानी, ऐक्टिंग डाइरैक्शन, म्यूजिक सभी कुछ फिल्म के हिसाब से और परफैक्ट था जिसे दर्शकों को पूरी फिल्म तक बांध कर रखा. इस के अलावा भी कई ऐसी फिल्में हैं जो कम बजट में बनी थीं लेकिन अच्छी फिल्म होने की वजह से फिल्म के निर्माता और ऐक्टर सभी को उस फिल्म से फायदा मिला. जैसे नाना पाटेकर अभिनीत अंकुश जिस में सब नए कलाकार थे, फिल्म का बजट ₹12 लाख था। फिल्म को रिलीज करने के लिए निर्माता एन चंद्रा को अपना घर तक गिरवी रखना पड़ा था, लेकिन बाद में अंकुश इतनी सुपरहिट हुई कि नाना पाटेकर उस फिल्म से रातोरात स्टार बन गए और निर्माता एन चंद्रा ने भी कई अच्छी फिल्में बनाईं.

गौरतलब है कि उस दौरान इस फिल्म ने करीबन ₹85 से 90 लाख के करीब कमाई की थी. इसी तरह अन्य फिल्मों ने जैसे आयुष्मान खुराना अभिनीत ‘विकी डोनर’ ₹10 करोड़ में बनी थी लेकिन फिल्म ने ₹50 करोड़ का बिजनैस किया. ’12वीं फेल’ फिल्म ₹20 करोड़ में बनी थी, मगर फिल्म ने ₹66 करोड़ तक का बिजनैस किया.

‘सीक्रेट सुपरस्टार’ फिल्म का बजट ₹81 करोड़ के करीब था लेकिन इस फिल्म ने ₹831 करोड़ का बिजनैस किया.

अमिताभ बच्चन अभिनीत ‘पिंक’ ₹23 करोड़ में बनी थी लेकिन फिल्म का बिजनेस ₹88 करोड़ हुआ। इसी तरह फिल्म ‘स्त्री’ ₹14 करोड़ में बनी थी लेकिन इस फिल्म ने ₹167 करोड़ की कमाई की। आयुष्मान खुराना अभिनीत ‘बधाई’ ₹23 करोड़ में बनी थी लेकिन इस फिल्म ने ₹176 करोड़ का बिजनैस किया। ₹25 करोड़ में बनी विकी कौशल अभिनीत फिल्म ‘ऊरी’ ने ₹293.75 करोड़ का बिजनैस किया. ₹23 करोड़ के बजट में बनी ‘हिंदी मीडियम’ ने ₹100 करोड़ का बिजनैस किया।

इसी तरह आलिया भट्ट अभिनीत फिल्म ‘राजी’ जोकि ₹38 करोड़ में बनी थी, इस फिल्म ने ₹158 करोड़ का बिजनैस किया.

कंगना रनौत अभिनित ‘क्वीन’ और ‘तनु वेड्स मनू’ भी कम बजट की फिल्म थी। इन दोनों ही फिल्मों ने न सिर्फ करोड़ों का बिजनैस किया बल्कि बेहतरीन फिल्मों की बदौलत आज याद भी की जाती हैं.

हिंदी फिल्मों के गिरते स्तर के पीछे क्या है वजह और आज के समय हिट फिल्मों का क्या है फौर्मूला

एक समय था जब हिंदी फिल्मों की कहानियां ओरिजनल हुआ करती थीं. न तो वह किसी साउथ फिल्म की रीमेक होती थी और न ही हौलीवुड फिल्म की नकल, न ही फिल्मों का बजट ज्यादा होता था और न ही फिल्मों को बेचने के नाम पर प्रोमोशन की नौटंकी, बावजूद इस के, पिछली कई फिल्में ऐसी हैं जिन्हें दर्शक आज भी देखना पसंद करते हैं और आज 25- 30 साल बाद भी वे यादगार फिल्में कहलाती हैं जिन्हें दर्शक फिर से सिनेमाघर में देखने को तैयार हैं. चाहे वह अमिताभ बच्चन धर्मेंद्र की फिल्म ‘शोले’ हो, सलमान खान की फिल्म ‘हम आप के हैं कौन’ हो, आमिर खान की फिल्म ‘रंगीला’ या ‘सरफरोश’ हो, शाहरुख खान की फिल्म ‘दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे’ या ‘कुछ कुछ होता है’ हो, ये सभी फिल्में न तो किसी हौलीवुड फिल्म की नकल थी और न ही साउथ की रीमेक. फिर भी ये सभी फिल्में आज भी दर्शकों के बीच लोकप्रिय हैं. इस के पीछे सिर्फ और सिर्फ एक ही वजह है कि अगर कोई फिल्म अच्छी बनी है तो उस को हिट होने से कोई नहीं रोक सकता. फिर चाहे वह नए कलाकारों की फिल्म हो या कम बजट की फिल्म हो.

आज के मेकर्स नई कहानी की खोज के बदले बिना मेहनत किए साउथ और हौलीवुड फिल्मों की नकल बनाने में जुटे हैं ताकि उन को फिल्म के फ्लौप होने का डर न रहे, क्योंकि जो फिल्म साउथ में औलरेडी हिट है तो वह यहां बौलीवुड में भी हिट हो ही जाएगी. आज के समय में मेकर्स पैसा कमाने के लालच में फिल्म निर्माण को लेकर न तो कोई रिस्क लेना चाहते हैं और न ही कोई नया प्रयोग करना चाहते हैं. दर्शक चाहे आज के हों या पुराने, अच्छी फिल्म और अच्छे कलाकारों को हमेशा सम्मान और सराहना मिलती है. फिल्म की कहानी अगर ओरिजिनल है या वह आम लोगों के जीवन पर केंद्रित है तो ऐसी फिल्में दर्शकों के दिलों तक आराम से पहुंच जाती हैं. यहां तक की ऐक्टर भी दर्शकों को वही ज्यादा पसंद आते हैं जिन में वह अपनी छवि देखते हैं, जैसे गोविंदा, आमिर खान, अक्षय कुमार, सलमान खान आदि ऐक्टरों ने जो भी फिल्में आम इंसान से जुड़ी कहानी पर केंद्रित फिल्मों में काम किया है वह सभी सुपर डुपर हिट हुई है. जैसे गोविंदा की ‘कुली’, ‘दूल्हे राजा’, ‘राजा बाबू’, ‘क्योंकि मैं झूठ नहीं बोलता’, सलमान खान की ‘दबंग’, ‘बजरंगी भाईजान’, आमिर खान की ‘रंगीला’, शाहरुख खान की ‘दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे’, अक्षय कुमार की ‘खिलाड़ी’ आदि ऐसी फिल्में हैं जो ओरिजिनल कहानियों पर बनीं और आम लोगों के जीवन पर केंद्रित जिसे दर्शकों ने हमेशा स्वीकार किया.

ऐसा नहीं है कि सिर्फ बौलीवुड ही हौलीवुड या साउथ की कौपी करता है, बल्कि साउथ और हौलीवुड में भी कुछ फिल्में ऐसी बनी हैं जो हिंदी फिल्मों की नकल है. कहने का मतलब यह है कि नकल के लिए भी अक्ल की जरूरत होती है। सिर्फ फिल्म बनाने के नाम पर साउथ की फिल्मों की कौपी करना अच्छी फिल्म नहीं कहलाती. यानि ऐंटरटेनमैंट के नाम पर दर्शकों को आप कुछ भी परोस कर बेवकूफ नहीं बना सकते. अगर फिल्मों का स्तर ऊंचा करना है तो नकल के बजाय अक्ल का इस्तेमाल कर के दर्शकों को अच्छी फिल्में देनी होंगी तभी जा कर फिल्मों का स्तर न सिर्फ ऊंचा होगा बल्कि हिंदी फिल्मों को पहले की तरह पसंद भी किया जाएगा.

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