जयति जैन "नूतन" (भोपाल)
पापा से शिकायतें...
जब बच्चे थे तब कई सपने थे और ढेर सारी ख्वाहिशें, जिनकी पूरी ना होने पर पापा से बहुत शिकायतें रही जैसे हर साल कहीं घूमने जाना, पंद्रह दिन में एक बार होटल में खाना आदि. यह छोटी-छोटी सी चीजें थी, जो उस समय बहुत बड़ी हुआ करती थी. हमारे गांव में कोई शुद्ध शाकाहारी होटल भी नहीं था, अगर होटल जाना है तो मऊ रानीपुर जाओ या झांसी. ये अलग समस्या थी.
काम ही सब कुछ है...
पापा पेशे से डौक्टर हैं और एक ऐसे डौक्टर हैं जिनके लिए मरीज पहले आता है. मरीज की जान उसका दर्द उसकी परेशानी घर से भी पहले. वह मरीज देखने के लिए कभी-कभी रात भर जागते तो कभी सुबह का नाश्ता/खाना उनका दोपहर 3:00 बजे हो रहा है. दिन रात मरीजों की तरफ से उनका ध्यान नहीं हटता है और आज भी यही है. लेकिन पापा ने जो दिया व शायद ही कोई पिता दे पाए.
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हर इच्छा की पूरी...
वह हमें ज्यादा समय तो नहीं दिए लेकिन कमी कोई नहीं होने दी. हौस्टल में जहां बच्चों को एक सीमित पौकेट मनी मिलती थी, वही मेरे पास हजारों रुपए होते थे खर्च करने पर उन्होनें कभी हिसाब भी नहीं मांगा. पापा ने कभी किसी भी चीज की कमी नहीं होने दी, जो चाहा वह मंगा दिया. खाने-पीने से लेकर, गाड़ी, कपड़े बिना मांगे मिले लेकिन वह घूमने जाने वाली बात हमेशा खटकती रही कि सभी के पापा 6 महीने में या फिर साल भर में एक बार जरूर घूमने जाते हैं लेकिन यहां तो पापा को समय ही नहीं है. और आज जब उनसे दूर हूं, शादी हो चुकी है तब समझ आता है कि जितना पापा ने किया उतना कोई भी पिता नहीं कर सकता क्योंकि मुंह पर बात आती नहीं थी की वह पूरी हो जाती थी.