सरिता दीक्षित, (आगरा)
मेरे पिता जी का जीवन 'सादा जीवन उच्च विचार' से प्रेरित था. वह एक ईमानदार व्यक्ति थे और जरूरतमंद की यथाशक्ति मदद करते रहते थे. कोई भी जरूरतमंद व्यक्ति उनके घर से खाली हाथ नहीं जाता था. वे अक्सर यह बात कहते थे कि 'ग़रीबी क्या होती है' यह तुम सभी ने नहीं देखी. अपनी इसी आदत की वजह से वे अपने लिए कभी धन-दौलत का संग्रह नहीं कर पाए. पिता जी की ईमानदारी से जुड़ी एक बात मैं साझा करना चाहती हूं.
बात करीब 40 वर्ष पहले की है. मेरे घर के सामने एक बड़े से नीम के पेड़ के नीचे एक कुआं था. कुएं से पानी भरने के लिए रस्सी व बाल्टी रखी रहती थी. सामने सड़क से गुजरने वाले राहगीर के लिए उस समय पानी पीने का एकमात्र यही साधन था. कुएं के पास ही छाया में बैठने के लिए पिता जी ने खपरैल की झोपड़ी बनवाई थी.
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जब पिता जी ने की अंजान मुसाफिर की मदद...
एक दिन दोपहर में एक यात्री ने पानी पीने के लिए बस रुकवाई. उसके हाथ में एक बैग था. उसने पानी पिया और गलती से कुएं के पास रखा हुआ अपना बैग छोड़कर बस में बैठ कर चला गया कुछ समय बाद मेरे पिता जी कुएं की तरफ गये तो उन्हें वह बैग दिखाई दिया. उन्होंने इधर-उधर देखा तो वहां कोई भी नहीं दिखा.
पिता जी ने बैग खोल कर देखा तो वह सोने-चांदी के आभूषण से भरा हुआ था. पिता जी ने बैग घर पर ले जाकर रख दिया. वापस कुएं के पास बैठ कर बैग वाले यात्री का इन्तजार करने लगे. कुछ समय बाद एक आदमी बदहवास सा बस से उतरा. वहां पिता जी को बैठा हुआ देखकर बैग के बारे पूछने लगा. बात करने के बाद जब पिता जी आश्वस्त हो गए तो घर से लाकर बैग वापस किया.