20वीं शताब्दी में दुनिया में आये सामाजिक, आर्थिक और प्रौद्योगिक बदलावों ने परिवार के कार्य और संरचना में भी आधारभूत परिवर्तन ला दिये हैं- मुख्यतया पिता की परिवार के प्रति जिम्मेदारी और भूमिका के संदर्भ में. आज के पिता परिवार में केवल परम्परागत (परिवार का वह व्यक्ति जो परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये केवल पैसा कमाने का काम करता है) और अनुशासन के रूप में नजर नहीं आते है बल्कि बच्चों के शारीरिक और मनोवैज्ञानिक विकास की चुनौतियों के साथ उनकी देखभाल की जिम्मेदारी भी लेते है.

इस शताब्दी में महिलाओं के आर्थिक भूमिका में बदलाव ने पिता की भूमिका को और ज्यादा प्रभावित किया है. 1948 से 2001 के बीच कामकाजी महिलाओं का प्रतिशत 33 प्रतिशत से बढ़कर 60 प्रतिशत से भी ज्यादा हो गया है. ऐसे में पिता की बच्चों के प्रति जिम्मेदारी दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है. जहां पहले केवल मां को बच्चों के पालनकर्ता के रूप में देखा जाता था वहीं अब पिता की भी उनको संस्कार देने में बराबर की भूमिका निहित है. बच्चों की परवरिश में पिता की भूमिका पर जब हमारी आज की पीढ़ी के बच्चों और उनके पापा से बातचीत हुई तो सामने आया कि

पिछली शताब्दी में पापा

    • बच्चों के लिये आदर्श हुआ करते थे.
    • बच्चे उनका बहुत सम्मान करते थे.
    • बच्चों के मन में पापा का डर भी रहता था जिसके पीछे वो कोई भी गलत काम करने से पहले सोचने को मजबूर हो जाते थे.
    • पापा उनके शिक्षक के रूप में भी होते थे लेकिन दोस्त नहीं बन पाते थे.
    • पापा और बच्चों के बीच कुछ खास विषयों पर ही बातचीत हो पाती थी वो भी तब ही जब पापा चाहते थे. वो खुलकर हर बात पापा से शेयर नहीं कर पाते थे यानी उनके बीच संवाद की कमी हुआ करती थी.
    • पापा घर के मुखिया हुआ करते थे, सभी छोटे-बड़े फैसले उन्हीं के अनुसार लिये जाते थे.
    • इतना सब होने पर भी बच्चों पर बात-बात पर गुस्सा, झिड़कना, डांटना, मारना कभी भी बिना कारण के नहीं होता था.
    • पिता का व्यवहार बहुत ही संयमित और दायित्वपूर्ण हुआ करता था.

वर्तमान समय में पिता...

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