गीतांजलि चे

मेरे पिता...

मां, अगर किसी बच्चे के जीवन की पहली पाठशाला है तो पिता पाठशाला के प्रधानाचार्य हैं. उनकी समूची जिंदगी का एक ही मकसद होता है बच्चे को इंसान बनाना. कभी बोल कर तो, कभी बिना बोले वो अपनी संतान को कोई न कोई शिक्षा देते हैं.

हम बच्चे की तरह मेरे आदर्श मेरे पापा हैं. जिन्होंने हम सभी भाई-बहनों को जीना सिखाया. अनुशासन हो या समय का प्रबंधन ये गुण हमें पापा से विरासत में मिला है. वक्त या पैसे की कीमत क्या होती है ये हम सब ने पापा को देख कर ही सीखा है. काम के प्रति इमानदारी और समर्पण का जो बीज बचपन से हमारे दिमाग में बोया गया वो आज भी संस्कार बन कर हमारे साथ है. संस्कार देकर भी कभी उसके नाम पर दब्बू बनना नहीं सिखाया.

ये भी पढ़ें- Father’s Day 2019: “थैंक्यू डैडू”

जब कभी पापा गुस्सा होकर भी कुछ कहतें हैं तो उसमें जीवन का सार छिपा होता है. जीवन में किस चीज़ की कीमत क्या होती है, किस बात को कितना महत्व दिया जाना चाहिए यह सब बोलते बतियाते हमें समझा देते हैं. अपनी जिंदगी को हमें अपने शर्तों पर जीने की शिक्षा दी.

भले ही कोई आसमान की बुलंदियों को क्यों न छू ले पर जमीन पर कैसे बिलकुल सामान्य हो कर चलना चाहिए. यह बचपन से पापा को देख देख कर ही सिखा है. हमें स्वाभिमानी और आत्मनिर्भर तो बनाया पर कभी अहंकारी नहीं बनने दिया.

ये भी पढ़ें- Father’s Day 2019: सबसे प्यारे ‘मेरे पापा’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...