सुनीता राय, (लखनऊ)

मां
अपने आप को हमेशा आप जैसा बनाये ये सोचते है हम. हम अपनी मां को अम्मा ही बुलाया करते थे. पांच भाई-बहन मे हम सबसे छोटे. अम्मा हमारी बाबू जी की एक सीमित आय मे अपनी गृहस्थी को बहुत अच्छे से चलाना जानती थी. बाबू जी से कभी बहस करते देखा ही नहीं. बाबू जी गरम दिमाग के जल्दी गुस्सा होने वाले व्यक्ति थे. पर अम्मा हमेशा मौन रह कर उनका गुस्सा खत्म कर देती थी.

आप के जैसा साहस नही है हममे, न ही आप जैसा धैर्य. आप का मूल्य खुद मां बनने के बाद ज्यादा समझ आया. वो आप का समझाना और रोकना टोकना जो उस समय बुरा लगता था. अब समझ में आया कि वो एक मां की परवाह थी जब खुद हम पर आई बात. आप साथ मे नही हो पर हमेशा आप की बाते साथ होती हैं.

बहुत याद आती हो आप. तीन बच्चो की मां होने के बाद भी ...बच्ची बन जाती हू आप को याद करके और सोचती हू कितनी बदनसीब हूं कि आप मेरे साथ नहीं हो. और ये लाइन गुनगुनाने लगती हूं.

मां बच्चो कि जां होती है
वो होते है किस्मत वाले जिनकी मां होती है ।।
कितनी शीतल है कितनी सुंदर है,
प्यारी प्यारी है मां ....ओ मां।।

sunita-rai

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बिन्दू जैन, (लखनऊ)

मेरी मां ने बचपन से ही हमें यह बताया कि हम मां के सामने हो या ना हो. वो काम कभी नहीं करना है जो हम घर आकर उन्हें बता ना सके. अगर वह हमारे सामने नहीं है और हम कुछ ऐसा काम करने को सोच रहे हैं. तो हमें वह काम नहीं करना चाहिए.

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