मेरी प्यारी मां,
हमारी उम्र चाहे कितनी भी हो जाएं लेकिन जब भी हमे सहारे की जरूरत होती है या यूं कहे कि जब दुनियाभर में आपको कोई अपना नजर नहीं आता तब हमें मां की गोद ही नजर आती है. जहां हम सब कुछ भूल कर सुकून प्राप्त कर सकते है, बस ऐसी ही जगह है मेरे लिए मेरी मां की गोद.
बचपन से मैने जब भी उन्हें देखा, हमेशा दूसरों के लिए समर्पित पाया. एक बार मेरी दादी ने उन्हें देख कर कहा था कि इसकी ट्रेनिंग बड़ी ही सधे हुए हाथों में हुई है. तब तो मुझे उसका मतलब समझ नही आया था पर आज जब मै भी ब्याह कर अपने घर आ गई हूं और खुद भी एक मां बन गई हूं तब मुझे मां की फुर्ती का अहसास होता है. मैं आज भी जब अपने घर को संभालती हूं तो ऐसा लगता है कि मां साए की तरह मेरे साथ है और मुझे हर काम सिखा रही हैं.
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कुछ भी नहीं भूलती थी मां…
वह ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी. पर हम सब को इंग्लिश में पोयम याद कराती थी, बाबा कहते थे कि मां जो एक बार सुन लेती है वह भूलती नहीं हैं, इसलिए बाबा जब हमें पढ़ाते थे तब पास में सेव बनाती वह सब याद कर लेती और फिर परीक्षा के समय याद दिलाती कि यह पाठ याद कर लिया.
याद है मां की ये खूबी…
उनकी एक बड़ी ही दिलचस्प खूबी है जो हम भाई, बहनों को भाती थी और आज हमारे बच्चों की भी इसी खूबी के कारण वह प्रिय है. जब भी बच्चे खाना खाते वह कहानी सुनाती और वह कहानी तब तक खत्म नहीं होती. जब तक बच्चे अपना खाना खत्म नहीं कर लेते. उनकी यही खूबी मुझे विरासत में मिली और मै भी बचपन से ही कहानियां लिखने लगी.
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दंगों के दौरान देखा मां का ये रूप…
मैंने उनके कई रूप देखे हैं. उनमें से उनका एक रूप मेरे जहन में आज भी सुरक्षित है अक्टूबर,1984 में दिल्ली में दंगे हो रहे थे. सब लोग डरे हुए थे. हमारी गली में सिंह अंकल का परिवार काफी डरा हुआ था. मेरी मां ने पिताजी को साथ लिया और उनके घर से उन्हें हमारे घर ले आई थी. हमारे आस-पड़ोस वाले बहुत से लोगों ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि उन्हें इससे खतरा हो सकता है पर वह अपने फैसले पर अडिग रही. इसीलिए सिंह अंकल और उनका परिवार आज हमारे अपनों में से एक है.
मां तो सबके लिए खास होती है और उन पर कुछ भी कहना हो तो वह हर बच्चे के लिए अनमोल पल होगा. बस मेरे लिए तो ऐसी ही हैं मेरी प्यारी “मां”.
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