अकसर लोग अपने शरीर और आसपास के माहौल पर रसायनों यानी कैमिकल्स से पड़ने वाले बुरे असर की अनदेखी कर देते हैं, जबकि यह साबित हो चुका है कि कीटनाशकों के संपर्क में रहने वालों में बांझपन यानी औलाद का न होने का खतरा उन से अधिक होता है, जो कीटनाशकों से दूर रहते हैं. लेकिन कीटनाशकों से दूर रहने वाले भी बांझपन के शिकार हो सकते हैं और इस का कारण है हमारा असुरक्षित भोजन, क्योंकि हम अपने भोजन में शामिल फलों और सब्जियों के जरीए यूरिया ग्रहण करते हैं.
गर्भावस्था यानी प्रैगनैंसी के दौरान गर्भवती के आहार में फल और सब्जियां बेहद जरूरी हैं, क्योंकि इन में खनिज पदार्थ भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. कई शोधों में पाया गया है कि यदि प्रैगनैंसी के उपचार से गुजर रही महिलाएं ऐसे फलों और सब्जियों का सेवन करती हैं, जिन में कीटनाशकों के अंश बचे हों तो उन के गर्भवती होने की उम्मीद कम हो जाती है और गर्भावस्था संबंधी परेशानियां पैदा होने का बड़ा खतरा पैदा हो जाता है.
दरअसल, कीटनाशक फलों और सब्जियों को चूहों और कीटों आदि से बचाने के लिए फसल पर छिड़के जाते हैं. ये कीटनाशक 2 तरहके होते हैं, रसायनिक और जैविक. जहां रसायनिक कीटनाशी कृत्रिम रूप से तैयार किए जाते हैं, वहीं जैविक कीटनाशी उस प्राकृतिक सामग्री से तैयार किए जाते हैं, जो विभिन्न पौधों, कीटों और कुदरती रूप से मिलने वाले तत्त्वों से प्राप्त होती है.
इन रसायनों से सीधे तौर पर वे लोग प्रभावित होते हैं जो इन के संपर्क में आते हैं. मसलन, रसायन उद्योगों में काम करने वाले जो इन्हें तैयार करते हैं या फिर वे किसान जो खेतों में इन का प्रयोग करते हैं. हालांकि जो लोग सीधे तौर पर इन कीटनाशकों के संपर्क में नहीं होते हैं उन पर भी रसायनयुक्त फल और सब्जियां खाने पर रसायनों का बुरा असर पड़ता है.
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