मांसाहारी खाने से होने वाली गंभीर बीमारियों की दिनप्रतिदिन लंबी होती लिस्ट में दिल की बीमारी, डायबिटीज, ब्रैस्ट कैंसर, हार्टअटैक और ओवेरियन कैंसर जैसी बीमारियां पहले से शामिल हैं और अब इस में कैल्सियम की कमी हो जाने के कारण होने वाली बीमारी का नाम भी जुड़ गया है. 65 साल से अधिक की मांसाहारी महिलाओं में हड्डियों से संबंधित बीमारी होने का खतरा 25% तक अधिक होता है, जबकि समान आयु वाली शाकाहारी महिलाओं में यह खतरा सिर्फ 18% ही होता है.इसलिए मांसाहारी लोगों में फ्रैक्चर इत्यादि होने का खतरा शाकाहारी लोगों की अपेक्षा दोगुना होता है. अब सवाल यह उठता है कि मांसाहारी खाना हड्डियों में कैल्सियम की मात्रा को कैसे प्रभावित करता है. इस के लिए खून में मौजूद पीएच लेवल व इस के संतुलित रहने की प्रक्रिया को समझना जरूरी है.
पीएच लेवल और इस का संतुलन
पीएच एक मानक है, जिस के द्वारा खून में ऐसिडिक और ऐल्कालाइन गुणों में भेद किया जाता है. साथ ही, यह खून के हाइड्रोजन कणों की एकाग्रता को भी बताता है. पीएच बैलेंस को 0 से 14 के स्केल पर मापा जाता है. यदि खून में पीएच लेवल 1 है तो शरीर ऐसिडिक और यदि 14 है तो शरीर ऐल्कालाइन होता है. खून में पीएच की मात्रा 7 होने पर इसे न्यूट्रल माना जाता है. मानव शरीर का खून ऐल्कालाइन स्वभाव का होता है, इसलिए यह पीएच लेवल को 7.35 और 7.45 के बीच बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करता है. सांस लेने व यूरिन पास होने की प्रक्रिया के द्वारा पीएच लेवल संतुलित रहता है. यूरिन पास होते रहने से आवश्यकता के अनुसार खून में ऐल्काली और ऐसिड की मात्रा घटतीबढ़ती रहती है, जिस से पीएच लेवल संतुलित रहता है. ठीक इसी प्रकार श्वसन क्रिया में जब कार्बन डाईऔक्साइड बाहर निकलती है, तो रक्त ऐल्कालाइन बना रहता है. यदि शरीर से कार्बन डाईऔक्साइड निकलने का स्तर गिरने लगे तो खून में ऐसिड की मात्रा बढ़ने लगती है. खून में कार्बन डाईऔक्साइड और सोडियम बाई कार्बोनेट का संतुलन ही पीएच लेवल का निर्धारण करता है.
डाइट और पीएच लेवल
मेटाबौलिज्म की क्रिया शरीर में खाना पचने के बाद शुरू होती है, जिस से हमें ऊर्जा मिलती है. यदि शरीर में मेटाबौलिज्म की क्रिया ठीक प्रकार से हो रही है, तो पीएच लेवल का संतुलन काफी हद तक डाइट पर निर्भर करता है यानी खाना ऐसिडिक था या ऐल्कालाइन. हमें ज्यादा से ज्यादा ऐसा खाना लेना चाहिए, जो खून को ऐल्कालाइन बनाए रखने में सहायता कर सके. खाने के पदार्थों में 80% ऐल्कालाइन तत्त्व और सिर्फ 20% ऐसिडिक तत्त्व? होने चाहिए.
ऐसिडिक और ऐल्कालाइन खाना
ज्यादातर खाद्यपदार्थ हमारे शरीर के लिए आवश्यक खनिज तत्त्वों की जरूरत को पूरा करते हैं और ये खनिज तत्त्व ऐसिड और ऐल्कालाइन दोनों रूपों में होते हैं. ऐसिड ग्रुप को ‘ऐनौयन’ के नाम से जाना जाता है, जिस में क्लोराइड और फास्फेट होते हैं और ऐल्कालाइन गु्रप को ‘कैटायन’ के नाम से जाना जाता है, जिस में सोडियम व कैल्सियम होते हैं. हरी सागसब्जियों व फलों में मजबूत ऐल्कालाइन तत्त्वों के साथ कुछ मात्रा में ऐसिडिक तत्त्व भी होते हैं, लेकिन शरीर में पहुंचने के बाद ये और्गेनिक ऐसिड, औक्सीकरण की प्रक्रिया के बाद ऐल्कालाइन का ही निर्माण करते हैं. इसलिए अधिक से अधिक मात्रा में साग, हरी सब्जियां और फल खाने से खून ऐल्कालाइन बना रहता है. वहीं दूसरी तरफ पशुओं के मांस में पाए जाने वाले ऊतकों में अत्यधिक मात्रा में फास्फोरिक ऐसिड होता है, जो ऐसिड बनाने का मुख्य स्रोत है. जब यह फास्फोरिक ऐसिड शरीर के भीतर औक्सीजन से रासायनिक क्रिया करता है, तो ऐसिड का निर्माण करता है. ऐसिड के निर्माण में सहायक खाने की लिस्ट में मुख्य रूप से मीट, मछली, अंडा, मक्खन, दूध, अनाज, मूंगफली और आलू शामिल हैं. खाने के अन्य पदार्थों में जो हमेशा म्यूकस और ऐसिड बनाने में सहायक होते हैं, रिफाइंड स्टार्च और गेहूं से बने उत्पाद शामिल हैं.
ओवरऐसिडिटी का शरीर पर प्रभाव
ओवरऐसिडिटी या ऐसिडोसिस का शरीर पर बहुत बुरा असर होता है. इस के कारण उन खनिज तत्त्वों में निरंतर कमी होने लगती है, जो ऐसिड को न्यूट्रल करते हैं. यहां तक कि खनिजों में मौजूद शर्करा, जो रासायनिक तौर पर पहले से न्यूट्रल होती है और फल, जो ऐल्कालाइन होते हैं, ये सभी ऐसिड बनाने लगते हैं. इस के बढ़ते प्रभाव के कारण शरीर दर्द के प्रति संवेदनशील हो जाता है और मेटाबौलिज्म की क्रिया धीरेधीरे निष्क्रिय होने लगती है. लगातार बढ़ती ऐसिडिटी से हिस्टामाइन का स्राव शुरू हो जाता है, जिस के कारण जलन, सूजन और संक्रमण होने लगता है और इस का सीधा असर त्वचा पर होता है. जोड़ व गठिया की बीमारी से ग्रस्त लोगों को असहनीय पीड़ा का एहसास होता है और शरीर संक्रमण के प्रति संवेदनशील हो जाता है. इस स्थिति में म्यूकस के निर्माण में भी अचानक तेजी आ जाती है, जिस से कीटाणुओं को पनपने के लिए अनुकूल माहौल मिल जाता है. ओवरऐसिडिक शरीर में ट्यूमर बनने का खतरा भी सामान्य से अधिक होता है.
कैल्सियम की मात्रा पर ऐसिडिटी का प्रभाव
ओवरऐसिडिक खून वाले शरीर में सब से ज्यादा खतरनाक स्थिति तब पैदा होती है, जब कैल्सियम की मात्रा में कमी होना शुरू हो जाती है. कैल्सियम की कमी वाले शरीर में ऐल्कालाइन बनाने वाले फल व सब्जियां भी ऐसिड बनाने लगते हैं. यदि खून में पीएच लेवल अत्यधिक ऐसिडिक होने लगे, तो हड्डियों में मौजूद कैल्सियम और फास्फोरस बाहर आ कर ऐसिड की मात्रा को न्यूट्रल करते हैं ताकि पीएच लेवल नियंत्रित रह सके. इस को ‘सरवाइवल’ की स्थिति कहा जाता है. पूरे शरीर को औक्सीजन और ऊर्जा पहुंचाने के लिए खून को संतुलित पीएच की आवश्यकता होती है. इसलिए किसी भी कारण से यदि पीएच लेवल में कमी आती है, तो हड्डियों में कैल्सियम भी स्वयं ही कम होने लगता है. जितनी अधिक मात्रा में कैल्सियम बाहर आने लगता है, हड्डियां और जोड़ उतने ही कमजोर होने लगते हैं और एक हलका सा झटका भी फ्रैक्चर का कारण बन सकता है.जैसेजैसे आयु बढ़ने लगती है, वैसेवैसे ही खून में ऐसिड को न्यूट्रल करने के लिए बाहर निकला कैल्सियम शरीर के नर्म ऊतकों में जमा होने लगता है. डाक्टर इसे ‘ऐक्स्ट्रा स्केलेटल कैल्सीफिकेशन’ कहते हैं. इस का मतलब यह होता है कि जो कैल्सियम शरीर की हड्डियों में होना चाहिए वह एक नर्म ऊतक में जमा हो रहा है, जिस को कैल्सियम की कोई आवश्यकता नहीं है.
इस प्रकार उत्पन्न हुई समस्या कई रूपों में सामने आती है, जैसे दिल की बीमारी, कैंसर, असमय झुर्रियां, आर्थ्राइटिस, किडनी में स्टोन, मसूढ़ों से संबंधित बीमारी, जैसे दांतों की जड़ें कमजोर होना, जिंजीवाइटिस व पायरिया, औस्टियोपोरोसिस, कैटरेक्ट, सिरदर्द, जी मिचलाना और आंखों की पुतलियों का लाल होना इत्यादि. मेटाबौलिज्म निष्क्रिय होने के अलावा ओवरऐसिडिटी या ऐसिडोसिस की समस्या उत्पन्न होने का मुख्य कारण मांसाहारी भोजन करना और मसल्स पर जोर देने वाला काम करना है. मांसाहारी भोजन को त्याग कर शाकाहारी भोजन को अपनाना आप को इस स्थिति से बचा सकता है.
मांसाहार से शरीर पर प्रभाव
अत्यधिक मांसाहारी भोजन करने से ओवरऐल्कालाइन होने की समस्या भी पैदा हो सकती है, क्योंकि पोटैशियम की लगातार कमी होने लगती है और कैल्सियम जोड़ों की समस्या को और खतरनाक बनाने के साथसाथ किडनी में स्टोन भी बनाने लगता है. इस के अलावा गैस्ट्रिक ऐसिड में कमी भी इस समस्या का कारण बन जाती है जिस से प्रोटीन का पाचनक्रिया व खनिज तत्त्वों पर प्रभाव पड़ता है. लिवर में बैक्टीरिया अचानक बढ़ जाते हैं, जिस के कारण डकार आना, बदबूदार सांस और गैस से संबंधित अन्य विकार उत्पन्न होने लगते हैं. अत्यधिक मात्रा में मांसाहार करने से कमजोर हुआ लिवर सारी समस्याएं पैदा करने का मुख्य कारण है. प्रोटीन को शरीर से बाहर जाने से रोकने के लिए अमीनो ऐसिड ईंधन का काम करता है और फिर अमीनो ग्रुप टूट कर यूरिया के रूप में लिवर के अंदर ही बिखर जाता है. लेकिन इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए अत्यधिक ऊर्जा और कुछ विशेष एंजाइम की आवश्यकता पड़ती है, जोकि कमजोर लिवर में संभव नहीं.
इस प्रकार धीरेधीरे लिवर में अमोनियम साल्ट बनने लगता है, जो शरीर में उस जगह जमा होने लगता है, जहां फास्फेट और क्लोराइड जैसे ऐसिड ऐनौयन ग्रुप जमा होते हैं. हमेशा ऐक्टिव रहने वाले लोगों में अच्छी मसल ऐक्टिविटी होती है, जिस से उन के शरीर में मेटाबोलिक ऐसिड जैसे लैक्टिक ऐसिड अधिक मात्रा में बनता है. यदि ये लोग अचानक आलसी हो जाएं, तो शरीर में अधिक अमोनिया को न्यूट्रल करने वाला मेटाबोलिक ऐसिड कम हो जाता है, जिस से खून में ऐल्कालाइन की मात्रा बढ़ जाती है. कार्डियोवैस्कुलर या अन्य गंभीर बीमारियों से पीडि़त लोग इसी प्रकार प्रभावित होते हैं. समस्या पैदा करने वाला दूसरा कारण है किडनी में ग्लूटामाइन व अन्य अमीनो ऐसिड की क्रिया से अमोनियम साल्ट का बनना. साधारण तौर पर यह तभी होता है, जब यूरिन में बढ़े हुए ऐसिड को न्यूट्रल करना हो. लेकिन अत्यधिक मांसाहार करने वाले लोगों में यह क्रिया अत्यधिक अमीनो ऐसिड को बाहर निकालने के लिए भी हो सकती है, क्योंकि इस में न्यूट्रिलाइजेशन के लिए अतिरिक्त ऐसिड आयन की आवश्यकता होती है. जब शरीर में आवश्यकता से अधिक ऐल्कालाइन हो जाए, तो ज्यादा से ज्यादा ऐसिड बनाने वाले फल, सेब के जूस से बना हुआ सिरका और शाकाहारी खाने के साथसाथ अन्य ऐसिड को भी लेना चाहिए. इस से कुछ समय में जलन व सूजन में कमी आने लगती है और हिस्टामाइन प्रोटीन के साथ क्रिया कर के शरीर और त्वचा दोनों को दर्द व संक्रमण के प्रति असंवेदनशील बना देता है.
ऐसिड व ऐल्कालाइन टैस्ट
आप का शरीर ऐसिडिक है या ऐल्कालाइन, यह जानने के लिए आप घर पर ही एक साधारण टैस्ट कर सकते हैं. इस के लिए 1 छोटा चम्मच हलदी पाउडर को 1/2 लिटर मेथाइलेटेड स्प्रिट या रबिंग अल्कोहल (सर्जरी के दौरान डाक्टर के द्वारा प्रयोग किया जाने वाला अल्कोहल) में मिला कर तब तक हिलाएं, जब तक हलदी पूरी तरह घुल न जाए. अब इस को रख दें और मिश्रण के पीला हो जाने तक इंतजार करें. मिश्रण पीला हो जाने के बाद थोड़ा सा किसी कांच के गिलास में निकाल लें. अब इस में लार या यूरिन की कुछ बूंदें मिलाएं. यदि मिश्रण का रंग लाल हो जाए, तो शरीर में पीएच की मात्रा 6.8 है और यह ऐल्कालाइन है, लेकिन यदि मिश्रण पीला ही रहे तो पीएच की मात्रा 6.8 से भी कम है और शरीर ऐसिडिक है.