भारत को व्यंजनों का महादेश कहा जाता है. अपने देश के बारे में मशहूर है कि यहां कोसकोस में पानी और 4 कोस में वाणी बदल जाती है. और जहां तक बात व्यंजनों या पकवानों की है तो इन के बारे में तो मशहूर ही नहीं, बल्कि सर्वविदित है कि ये तो हर घर में अलग मिलते हैं. एक ही तरह की चीज से हमारे यहां हर घर में दूसरे घर से भिन्न व्यंजन बनते हैं. इस से हमारे यहां खानपान की समृद्धि और व्यंजनों की विविधता को जाना जा सकता है. कुछ साल पहले डिस्कवरी चैनल ने भारतीय खानपान को ले कर डौक्यूमैंटरी की एक शृंखला प्रसारित की थी, जिस में बताया गया था कि दुनिया में कुल मौजूद 82 हजार व्यंजनोें में से 77 हजार व्यंजन अकेले भारत जैसे महादेश के हैं. शेष में 2 हजार से ज्यादा व्यंजन अकेले चीन के और इस के बाद बची संख्या में पूरी दुनिया के व्यंजन शामिल हैं. इन आंकड़ों से भी खानपान को ले कर हमारी समृद्धि का पता चलता है.

लेकिन यह कैसी विडंबना है कि जो देश खानपान की विविधता, स्वाद की मौलिकता और प्रयोगों के अथाह सागर का मालिक हो उसी देश में इन दिनों विदेशी व्यंजन छाते जा रहे हैं. इन दिनों हिंदुस्तान में चाइनीज, थाई, इटैलियन, मैक्सिकन, स्पेनी व्यंजनों का जलवा हर तरफ दिखता है. बड़े शहर हों या छोटे, चाउमिन, चिली पोटैटो, मंचूरियन, पिज्जा, बर्गर, फ्रैंचफ्राई, पास्ता जैसे तमाम तरह के व्यंजन युवाओं की जबान का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं. सवाल है क्या भूमंडलीकरण के दौर में हिंदुस्तानी व्यंजन विदेशी व्यंजनों के सामने टिक नहीं पा रहे हैं?

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