मिस चटनी के तेवर बदल रहे हैं. पहले तो हरीमिर्च, धनिया, पुदीना, कच्चा आम या कच्ची इमली, काला या सेंधा नमक, गुड़, हींग या लहसुन के साथ सिलबट्टे पर पिस कर चुनार या खुर्जा पौटरी के बरतन में बैठ जाती थीं और वहां से फूल की थाली में केले के पत्ते पर. ताजी पिसीं और ताजी खाई गईं. अब बासी चटनी में वह बात कहां?

पकी इमली के गूदे, गुड़, कालानमक और लालमिर्च, भुने जीरे, बारीक कटे छुहारोंखजूरों के साथ भी पकींघुटीं. अनार के दाने, अंगूर और केले के कतले भी मिलाए. कभी समोसे का कोना तो कभी पकौड़ी का सिरा चूमा या फिर आलू की टिक्की, दहीबड़े पर लाड़ से पसरीं और खाने वाले को चटखारे दिलवाए. कभी गोलगप्पे के निढाल पानी में तीखामीठा हौसला भरा, तो कभी भेलपूरी को चटपटा बनाया.

पुरानी दिल्ली में दरीबे के साबुत मेथीदाने, मोटी सौंफ, जीरा, गुड़, कमरख, कचरी, साबुत सूखी लालमिर्च, सूखे कच्चे आम, पिसी हलदी, धनिया, नमक का मिश्रण बन रात भर पानी में भीगीं. सुबह हलवाइयों ने धीमी आंच पर खूब पका कर खस्ता कचौरी के साथ क्या परोसा कि खाने वाले पत्तल तक चाट गए.

दक्षिणी भारत पहुंचीं तो नारियल, कच्ची अदरक, मूंग/चने या उरद की भुनी दाल, भुनी मूंगफली, भुने तिल, करीपत्ते, हरीमिर्च, दही/नीबू के साथ पिस कर गोरीचिट्टी बन गईं या रोस्टेड टमाटर, प्याज, सूखी लालमिर्च के साथ लाल हो लीं. फिर हींग, राई के छौंक से नजर उतरवाई. अदरक, तिल और रसीले टमाटरों की हौट हैदराबादी चटनी बन कर कलौंजी का छौंक लगवाया.

कोंकणा महाराष्ट्र में हरीमिर्च, प्याज, लहसुन के साथ थेचा बनीं. करेले तक से रिश्ता जोड़ा. सूखे नारियल, मेथीदाने, लहसुन, लालमिर्च, कोकम के साथ ड्राई कोकोनट चटनी बनीं. कच्छ के रण में कभी गाजर, पत्तागोभी और कसी हुई कच्ची आम्बा हलदी के साथ दहीकुचुंबर हुईं तो कभी अधपके कसे आम के साथ मीठा छुंदा. बेसन और खट्टी दही दोनों को कढ़ी बनने देने से पहले ले उड़ीं और गुजराती फाफड़ा चटनी बन गईं.

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