समोसे की विरासत का आखिर असली वारिस कौन है? आप किसी बंगाली से पूछिए तो वह छूटते ही कहेगा कि दादा, समोसा सब से पहले कोलकाता में बना. अगर बगल में कोई बिहारी बैठा होगा तो वह तुरंत आपत्ति करेगा और बताएगा कि कैसे पाटिलपुत्र से इस की कहानी शुरू हुई. यह बहस हो ही रही होगी कि तभी कोई कानपुरिया उठेगा और कहेगा कि गुरु, तुम्हें तो कुछ पता ही नहीं. समोसा सब से पहले कानपुर में कलैक्टरगंज में बना था मिठाईलाल की दुकान में. लो, कर लो बात.
दरअसल, समोसा हो या इमरती, जलेबी हो या कचौड़ी, हमारे यहां हर चीज के लिए मालिकाना हक का अपना पुख्ता दावा है. फिर चाहे हम दिल्ली के हों, लखनऊ के हों, कानपुर के हों, कोलकाता के हों, अमृतसर के हों, भोपाल के हों या फिर पटना, पुणे के. लब्बोलुआब यह कि हम हिंदुस्तान के किसी भी शहर के हों, हमारे अपने लोकप्रिय खानों की अपनी स्थानीय कहानी होती है और इस कहानी से किसी को कोई परेशानी नहीं होती.
लेकिन समोसे के मालिकाना हक की कहानी अगर पिछले दिनों चर्चा का विषय बनी है तो इसलिए कि लंदन में एक भारतीय रैस्टोरैंट मालिक ने समोसे की विरासत का वारिस भारत को बता कर एक कजाक रैस्टोरैंट मालिक से कहा कि वह समोसा बेचने की कोशिश न करे.
रोचक है इतिहास
सवाल है क्या वाकई समोसे की विरासत पर भारत का मालिकाना हक है? अगर आप भारतीयों से पूछेंगे तो जवाब मिलेगा हां. यही नहीं, हर हिंदुस्तानी के पास अपने समोसे की पूरी तरह से मौलिक स्थानीय कहानी होगी. यह कहानी वहीं जन्मी होगी. इस में वहीं की खुशबू, वहीं का स्वाद होगा. मगर यदि इतिहास पर जाएंगे तो यह बड़ी मासूम सी देशज भावनाएं एक झटके में टूट जाएंगी.
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