मुंबई की कांदिवली ईस्ट में स्टेशन के पास 70 साल का एक कमजोर बुजुर्ग आने-जाने वालों से कांपते हुए दोनों हाथ फैलाकर खाने के पैसे मांग रहा था, पर उसका पहनावा भिखारी जैसी नहीं थी, हल्के रंग की फुल शर्ट और डार्क ब्लू कलर की पेंट उसने पहन रखी थी. आने-जाने वाले सभी उसे कुछ पैसे देते रहे और वह उसे जोड़कर अपनी बैग में भर रहा था कि एक 15 साल का मवाली लड़का उसके पास आया और उससे पैसे छिनने लगा,बुजुर्ग व्यक्ति रोते हुए उसे ऐसा न करने के लिए कह रहा था. आने-जाने वाले लोग इसे देखकर हँसते हुए चले जा रहे थे. मुझे गुस्सा आया और मैंने उसे डांटकर भगाने की कोशिश की, पहले उसने मेरी बात सुनने से मना किया, पर कई और महिलाओं को शामिल होता देख भाग खड़ा हुआ. सभी के जाने के बाद उस रोते हुए बुजुर्ग से उसकी इस हालात के बारें में पूछने पर पता चला कि उसे उसका बेटा रोज यहाँ छोड़कर जाता है और शाम को ले जाता है. इसके अलावा वह कुछ नहीं बता पाया.

ये सही है कि अल्ज़ाइमर्स डिसीज़ मेंडिमेंशिया 60 से 70 प्रतिशतलोगों में होता है. असल में डिमेंशिया मस्तिष्क के कार्य जैसे मेमरी, भाषा, प्लानिंग, ऑर्गेनाइज़ेशन और बिहेवियर को प्रभावित करता है. उम्र के बढ़ने के साथ-साथ डिमेंशिया का खतरा अधिक होता है.इतना ही नहीं ऐसे व्यक्ति कुछ नयी सूचना को ग्रहण नहीं कर सकते मसलन टीवी की रिमोट का संचालन, मोबाइल चलाना या किचन की सामग्री को सही ढंग से प्रयोग करना आदि. यह बीमारी हर व्यक्ति को उम्र बढ़ने से नहीं होता. डिमेंशिया के कुछ मेटाबोलिक कारणों (विटामिन बी 12 की कमी, हाइपोथायरायडिज्म) को जल्दी इलाज करने पर इससे रिवर्स किया जा सकता है.

इस बारें में मुंबई की ग्लोबल हॉस्पिटल की मनोचिकित्सक डॉ संतोष बांगरअल्ज़ाइमर्स डे पर जागरूकता फ़ैलाने के उद्देश्य से कहते है कि लोग कई बार इस बीमारी को न समझ कर झाड़-फूंक या इस बीमारी से पीड़ित पेरेंट्स को बाहर छोड़ देते है, जो बहुत दुखदायी है और डॉक्टर के पास बहुत देर से आते है, जिससे उन्हें ठीक करना मुश्किल हो जाता है. इसके कुछ शुरूआती लक्षण निम्न है,

शुरूआती लक्षण

  • उम्र बढ़ने के साथ-साथ भाषा अस्पष्ट होना,
  • कम समय के लिए मेमोरी लॉस होना,
  • जीवन की महत्वपूर्ण बातों को भूल जाना
  • एक बात को बार-बार पूछना या याद करने की कोशिश करना
  • अपने परिवारजन को भूल जाना आदि है.

इसके अलावा कभी-कभी मानसिक स्वास्थ्य में बदलाव मसलन एंग्जायटी, डिप्रेशन, हैल्युसिनेशन, नींद की गड़बड़ी आदि जल्दी दिखने वाली विशेषता हो सकती है.

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उपचार

इलाज के बारें में पूछने पर डॉ. संतोष कहते है कि अल्ज़ाइमर की बीमारी एक सदी से अधिक पुराना है, लेकिन इसका कोई सटीक इलाज नहीं है, लेकिन इस रोग को बढ़ने से रोका जा सकता है. एंटी-डिमेंशिया दवाओं को अल्ज़ाइमर, मिक्स्ड डिमेंशिया, लेवी बॉडी डिमेंशियाऔर पार्किंसन डिसीज़ डिमेंशिया के इलाज को सरकार की तरफ से वैध घोषित किया गया है, लेकिन एसिटाइलकोलाइनरसायन की कम आपूर्ति से रोगी को समय पर दवा नहीं मिल पाता. वास्क्युलर डिमेंशिया का इलाज उच्च बीपी, बढे हुए लिपिड, ब्रेन स्ट्रोक आदि की रोकथाम के लिए धूम्रपान बंद करने और नियमित व्यायाम करने से इसके रिस्क फैक्टर को कम किया जा सकता है. सामान्य उपाय मसलन हेल्दी फ़ूड , नियमित व्यायाम, पर्याप्त नींद, मेडिटेशन से स्ट्रेस मनेजमेंट, स्मरण थिरेपी,पेट्स थिरेपी, संगीत चिकित्सा सभी डिमेंशिया को कम करने में प्रभावशाली होते है. इसके अलावा क्रॉसवर्ड, सुडोकू, आर्ट थेरेपी जैसी व्यक्तिकेंद्रित गतिविधियों की मदद से कॉग्निटिव स्टिम्युलेशन थेरपी (सीएसटी) फायदेमंद हो सकती है.

डिमेंशिया और मानसिक स्वास्थ्य

डिमेंशिया के दौरान मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव सबसे अधिक होता है. डॉ. संतोष कहते है कि इसका इलाज दवा और मनोवैज्ञानिक थेरेपीको सम्मिलित कर किया जाना चाहिए. एक अच्छी रात की नींद इन मरीजों के लिए हो पाना मुश्किल होता है. अधिकतर इन्हेंसोने में कठिनाई, रात में बार-बार जागना,रात को भटकना, दिन में झपकी लेना या अत्यधिक नींद आना आदि है. वैज्ञानिक और शोधकर्ता आजतक पूरी तरह से निश्चित नहीं हो पाए है कि अल्ज़ाइमर डिसीज़ और अन्य डिमेंशिया वाले लोगों में नींद की समस्या का कारण क्या हो सकता है? असल में यह ब्रेन के अंदर परिवर्तन का होना है, जो शरीर की बॉडी क्लॉक में समस्या पैदा कर सकता है, जिससे यह जानना कठिन हो जाता है कि कब दिन और कब रात होते है. इसके अलावा, एक  उत्तेजक रसायन, एसिटाइलकोलाइन की कमी अत्यधिक नींद का कारण बन सकती है.

देखा जाय तो अधिकतर वृद्धों में कम नींद होती है और ये साधारण बात है, जिसके कारण वे अधिक बार जग जाते है. डिमेंशिया कई लोगों को वास्तविकता, पिछली यादों और सपनों को लेकर एक भ्रम फैला सकता है, ऐसा व्यक्ति सपने से जाग जाने पर उसको दिन मान लेते है.

चिकित्सीय समस्या

चिकित्सीय समस्या के बारें में डॉक्टर कहते है कि कुछ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और दवाएं नींद को प्रभावित कर सकती है. इनमें रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम, स्लीप एपनिया (जोरदार खर्राटे लेना और दिन में नींद आना) और आरईएम स्लीप बिहेवियर डिसऑर्डर (साफ़ख़राब सपने देखना और उसका अभिनय करना) शामिल है. अन्य कारणों के अंतर्गत गतिविधि की कमी, डिप्रेशन और बोरडम भी अत्यधिक नींद का कारण बन सकते है. इस समस्या से निपटने के सुझाव निम्न है,

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  • सुनिश्चित करें कि सोने का वातावरण आरामदायक हो,
  • कमरे में ब्लाइंड्स या ब्लैकआउट पर्दे लगाने पर विचार करें, ताकि नीद से जागने पर अंधेरा देखे और फिर से सो जाय,
  • पलंग के बगल में घड़ी लगाएं,
  • सोने के समय के करीब आने पर कैफीन और शराब का सेवन न करें, क्योंकि इससे नींद में बाधा पड़ सकती है. अधिक मात्रा में भोजन और मीठा भोजन लेने से भी नींद आना कठिन हो सकता है,
  • बॉडी क्लॉक को नियंत्रित करने के लिए दिन के उजाले में अधिक समय तक जगे रहे,दिन की शुरुआत में हल्का व्यायाम नींद को प्रोत्साहित कर सकता है,
  • सोने से पहले आराम करें, गुनगुने पानी से नहाने की कोशिश करें, संगीत सुनें और उनके तकिये पर लैवेंडर की खुशबू लगायें, ताकि उन्हें अपने आसपास एक अच्छे माहौल का आभास हो.
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