ग्लोबल बर्डन औफ डिजीज स्टडी के अनुसार, दुनिया भर में 334 मिलियन लोग अस्थमा से पीडि़त हैं. चैस्ट स्पैशलिस्ट डा. सुशील मुंजाल कहते हैं, ‘‘अस्थमा में सांस की नलियों में सूजन आ जाती है. इस के लक्षण प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न हो सकते हैं. लेकिन एक कारक आम होता है वह यह कि जब भी सांस की नलियां किसी भी तरह की ऐलर्जी के संपर्क में आती हैं तो उन में सूजन हो जाती है, जिस से वे सिकुड़ कर चिपचिपा पदार्थ बनाती हैं. उस से सांस की नलियां बाधित होती हैं और सांस लेने में तकलीफ होती है. इस के साथसाथ खांसी भी होती है.’’

हालांकि अस्थमा होने के कारण स्पष्ट नहीं हैं, फिर भी माना जाता है कि यह ऐलर्जी और पारिवारिक इतिहास से जुड़ा होता है.

विशेषज्ञ मानते हैं कि अस्थमा से पीडि़त लोगों या उन्हें मैनेज करने वालों के लिए यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि रोगी को किन कारणों से अस्थमा की समस्या तेज होती है. इस से न सिर्फ अस्थमा को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी. वरन अस्थमा अटैक में भी कमी आएगी. पर्यावरणीय कारकों भोजन और सांस लेते समय किसी चीज से ऐलर्जी होने का पता चलने पर रोगी गंभीर अस्थमा अटैक को रोक सकता है. अस्थमा रोगियों को निम्नलिखित ट्रिगर के बारे में जानना महत्त्वपूर्ण है:

पराग: ये पेड़, खास तरह की घास या अन्य पर्यावरणीय कारकों से पैदा होने वाले बहुत छोटे कण होते हैं. पराग के इन कणों को खासतौर से वसंत के मौसम में एअर कंडीशनर के इस्तेमाल से रोका जा सकता है. वसंत ऋतु के दौरान हवा में पराग की मात्रा काफी होती है. दोपहर में जब पराग का स्तर ज्यादा होता है तब बाहर निकलते समय नाक और मुंह पर मास्क लगा लें. सोने से पहले बालों को धोएं. अगर दिन में आप पराग के संपर्क में आए हैं तो रात में बाल धोना फायदेमंद रहेगा.

प्रदूषक और अस्थमा बढ़ाने वाले पदार्थ:ये पदार्थ अंदर व बाहर दोनों जगह हो सकते हैं. स्टोव, परफ्यूम, स्प्रे इत्यादि से अस्थमा रोगियों को समस्या हो सकती है. नए फर्नीचर, फर्श, दीवारों, छत इत्यादि से आने वाली गंध भी ट्रिगर का काम कर सकती है. बालों वाले जानवर: कुत्ते, बिल्ली, पक्षी, चूहे, गिलहरी इत्यादि से हवा में अस्थमा के ट्रिगर हो सकते हैं. इन पक्षियों के बालों, त्वचा, पंखों, लार, मूत्र इत्यादि से अस्थमा रोगी को घरघराहट, खांसी हो सकती है या फिर आंखों से पानी आ सकता है. इस तरह के ट्रिगर से बचने के लिए अस्थमा के रोगियों को घने बालों वाले जानवरों या पंखों वाले पक्षियों से दूर रहना चाहिए. इस के अलावा पालतू जानवरों को हफ्ते में 1 बार जरूर नहलाना चाहिए.

धूम्रपान: यह सांस की नलियों को अवरुद्ध कर के फेफड़ों को स्थाई रूप से क्षतिग्रस्त कर सकता है. जब तंबाकूयुक्त धूम्रपान को सांस द्वारा अंदर किया जाता है तो यह अस्थमा अटैक का ट्रिगर हो सकता है. इस समस्या को नियंत्रित करने के लिए अस्थमा रोगियों को न सिर्फ धूम्रपान छोड़ना होगा, बल्कि ऐसे स्थानों पर भी जाने से परहेज करना होगा जहां धूम्रपान हो रहा हो या धुंआ हो. अगर घर में कोई सदस्य धूम्रपान करता है तो उसे इसे छोड़ने को कहें.

स्पे्र और प्रसाधन सामग्री: अस्थमा अटैक कई बार गीले पेंट, ऐरोसोल स्प्रे या किसी भी साफसफाई करने वाले उत्पाद से हो सकता है. कई बार परफ्यूम या डियो भी अस्थमा के ट्रिगर का काम कर सकता है, इसलिए अस्थमा के रोगी ऐसी जगहों पर जाने से परहेज करें जहां नया पेंट हुआ हो. पेंट सूखने के बाद ही उस स्थान पर जाएं. घर में बिना गंध वाले सफाई उत्पादों का प्रयोग करें.

व्यायाम: व्यायाम करना सेहत के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है, लेकिन अस्थमा के रोगियों को डाक्टर से परामर्श ले कर ही सही तरीके से व्यायाम करना चाहिए. विशेषज्ञ मानते हैं कि हालांकि अस्थमा को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन लक्षणों को रोक कर इसे नियंत्रित जरूर किया जा सकता है. इन्हेलेशन थेरैपी में कोरटिकोस्टेराइड से अस्थमा को मैनेज किया जाता है. इस के अलावा ओरल दवाओं के मुकाबले इन्हेल्ड कोरटिकोस्टेराइड बहुत कम मात्रा में फेफड़ों में सीधे पहुंच कर काम करता है. यह चिपचिपे पदार्थ को बनने से रोकता है और सूजन कम करता है, जिस से सांस की नलियां अधिक संवेदनशील नहीं रहतीं और अस्थमा अटैक कम होता है.

डा सुशील मुंजाल कहते हैं, ‘‘अस्थमा को नियंत्रित करने में इन्हेलेशन थेरैपी बेहतरीन विकल्प है. इस के बावजूद लोगों में इस की प्रभावशीलता को ले कर कई तरह के संदेह हैं. मैं ने कई मामलों में देखा है कि अभिभावक अपनी अविवाहित लड़की को थेरैपी देने से रोकते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इस से लोगों को पता चल जाएगा कि उन की बेटी को अस्थमा की समस्या है, जिस से विवाह करने में दिक्कत होगी. मगर कारगर तकनीकों से अस्थमा को बेहतरीन तरीके से मैनेज किया जा सकता हो तो सामाजिक शंकाओं को परे कर जिंदगी को खुली हवा में जीना चाहिए.’’

-डा. सुशील मुंजाल नैशनल इंस्टिट्यूट औफ ट्यूबरक्लोसिस

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