पांच वर्ष पूर्व सुरेश (रोगी के अनुरोध पर बदला हुआ नाम) की गर्दन में तेज दर्द हुआ था. इसके डेढ़ वर्ष बाद सुरेश की कमर में अत्यंत पीड़ादायी दर्द रहने लगा. उन्होंने डाक्टर को दिखाया, लेकिन सही जांच नहीं हो पाई, क्योंकि उनके स्कैन और एक्स-रे सामान्य थे. सुरेश को कमर में सुबह दर्द और अकड़न होती रही.
दर्द के चलते सुरेश दैनिक कार्य करने में असमर्थ थे. केवल 23 वर्ष की आयु में मित्र और परिजन उनके साथ दुर्व्यवहार करने लगे और उन्हें ‘आलसी’ कहना शुरू कर दिया. उनकी अक्रियता और काम न करने की इच्छा का कारण उनके वजन को माना गया. दर्द और दुर्व्यवहार से कुंठित होकर सुरेश को अपना काम बदलना पड़ा. इस समय वह एक दिन में 2 पेनकिलर ले रहे थे.
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तुरंत राहत पाने की इच्छा से सुरेश ने एक और्थोपेडिशियन को दिखाया. डाक्टर की सलाह पर उन्होंने एमआरआई स्कैन करवाया, जिसमें एंकीलोसिंग स्पोंडिलाइटिस का पता चला. और्थोपेडिशियन ने सुरेश को कुछ कसरत बताई, ताकि वह सक्रिय रहें और रूमैटोलौजिस्ट को दिखाने के लिये भी कहा, ताकि लंबी अवधि में उनकी रीढ़ को क्षति न हो. रूमैटोलौजिस्ट ने सुरेश को बायोलौजिक्स के एक कैटेगरी में उपचार की सलाह दी. बायोलौजिक्स द्वारा उपचार से सुरेश शारीरिक क्षति से बच गये और आज वह घर और औफिस, दोनों जगह सक्रिय हैं.
एंकीलोसिंग स्पोंडिलाइटिस (एएस) एक अपरिवर्तनीय, दाहक और स्व-प्रतिरक्षित रोग है, जो रीढ़ को प्रभावित करता है. इसे रीढ़ का गठिया भी कहा जाता है, इसमें रीढ़ बढ़ जाती है और उसका लचीलापन चला जाता है.