शादी के बाद मां बनने की ख्वाहिश हर महिला की होती है. लेकिन कैरियर के चक्कर में एक तो देरी से शादी करने का फैसला और उस के बाद भी मां बनने का फैसला लेने में देरी करना उन की प्रजनन क्षमता को प्रभावित करता है, जिस से उन्हें कंसीव करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में जरूरी है समय पर सही फैसला लेने की व कंसीव करने में सफलता नहीं मिलने पर डाक्टरी परामर्श ले कर इलाज करवाने की.
जानते हैं इस संबंध में गाइनोकोलौजिस्ट ऐंड ओब्स्टेट्रिशिन (नर्चर आईवीएफ सैंटर) की डा. अर्चना धवन बजाज से:
कब आती है समस्या
पीसीओडी, ऐंडोमिट्रिओसिस, अंडे कम बनना या बनने पर उन की क्वालिटी का सही नहीं होना, फैलोपियन ट्यूब में ब्लौकेज, हारमोंस का इंबैलेंस, पुरुष में शुक्राणुओं की कमी की वजह से दंपती संतान सुख से वंचित रह जाते हैं.
आज संतान सुख से वंचित दंपतियों की संख्या दिनप्रतिदिन बढ़ती जा रही है, जो तनाव का भी कारण बनती जा रही है. ऐसे में जरूरी है कि अगर आप दोनों साथ रहते हैं और 1 साल से भी ज्यादा समय से बच्चे के लिए ट्राई कर रहे हैं और आप को सफलता नहीं मिल रही है तो आप तुरंत डाक्टर से संपर्क करें ताकि समय पर इलाज शुरू हो सके. सक्सैस नहीं मिलने पर आईयूआई, आईवीएफ व आईसीएसआई का विकल्प आइए, जानते हैं विस्तार से आईयूआई, आईवीएफ व आईसीएसआई प्रक्रिया के बारे में:
आईयूआई
आईयूआई को इंट्रायूटरिन इंसेमिनिशेन कहते हैं. इस प्रक्रिया में पहले सोनोग्राफी के द्वारा महिला के एग के रिलीज होने के समय का पता लगाया जाता है. इस दौरान अंडे की क्वालिटी को अच्छा बनाने व रिलीज करने के लिए दवाइयां भी दी जाती हैं. जब अंडा रप्चर होने के करीब होता है तब पुरुष के अच्छे शुक्राणुओं को अलग कर लिया जाता है फिर उसे गर्भाशय में पहुंचाया जाता है ताकि अंडा आसानी से शुक्राणु से मिल सके और कंसीव करने में आसानी हो.