कोरोना वायरस से संक्रमण का दौर लगातार बढ़ रहा है, जिसमें महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, तमिलनाडु सबसे उपर है, लेकिन तसल्ली इस बात से है कि रिकवरी रेट भी लगातार बढ़ रही है, ऐसे में कोविड 19 या कोरोना के संक्रमण से ठीक हुए लोगों को खुद की देखभाल अच्छी तरीके से की जानी चाहिए, ताकि बाद में मरीज को किसी और बीमारी का सामना न करना पड़े, क्योंकि कोरोना से ठीक हुए रोगी अधिकतर शारीरिक के अलावा मानसिक रूप से भी कमजोर हो जाते है, उन्हें कई जगह स्टिग्मा का सामना भी करना पड़ता है, जो गलत है.

इस समय उन्हें अपने परिवार के साथ रहने और परिवार को उन्हें मानसिक रूप से सहयोग देने की जरुरत होती है. समय पर इस बीमारी की जानकारी और इलाज मिलने पर ये जान लेवा साबित नहीं होती. कुछ डॉक्टर्स का कहना है कि ये बीमारी भी नार्मल फ्लू की तरह ही है, जिसमें ठीक होने के बाद व्यक्ति को कमजोरी अधिक आती है. इस बीमारी से रिकवरी के कुछ मानदंड निम्न है,

  • बिना दवा के 72 घंटे तक बुखार का न आना,
  • कफ और सांस लेने की तकलीफ में सुधार होना,
  • पहले दिन के लक्षण से 7 दिन बाद लक्षण में सुधार होना आदि है.

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कोविड 19 से रिकवरी के बाद शरीर पूरी तरह से स्वस्थ होने में समय लगता है, खासकर जिन लोगों को अस्पताल में रहना पड़ा हो या कोरोना ने उन्हें अधिक संक्रमित किया हो. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने इस बीमारी से ठीक होने की अवधि 6 सप्ताह या इससे अधिक होने की बात कही है. जल्दी ठीक होने के लिए लंग्स की ब्रीदिंग प्रोसेस और हाथ पैर के मसल्स को मजबूत करने की आवश्यकता होती है. इसके लिए संतुलित भोजन के साथ सही व्यायाम करने की जरुरत होती है.

इस बारें में वोकहार्ड हॉस्पिटल के डॉ. बेहराम पार्डिवाला कहते है अभी इस बारें में अधिक राय देना थोडा मुश्किल है,क्योंकि ये बीमारी नयी है और इसका प्रभाव आगे चलकर क्या होगा अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन अभी जो भी मरीज डिस्चार्ज होकर जा रहे है. वे पूरी तरह से ठीक है. करीब 300 से 400 मरीज़ हमारे यहाँ से ठीक होकर जा चुके है. किसी को अधिक तकलीफ नहीं हुई है. इसमें इन्फेक्शन कितना हद तक था, उसे देखने की जरुरत पड़ती है, क्योंकि जो लोग सीरियस होकर वेंटिलेटर पर जाते है, उनको कुछ समस्याए आ सकती है, जो निम्न है,

  • कभी-कभी लंग्स पर समस्या आ सकती है. मसलन फ़ायब्रोसिस, क्रोनिक खांसी, क्रोनिक दमा की बीमारी, जिसमें सांस फूलने वाली बीमारी का हो जाना,
  • हार्ट पर थोडा असर हो सकता है, जिसे वायरल मायोकार्डीटिस यानि इन्फ्लेमेशन ऑफ़ हार्ट हो सकता है, जिसके वजह से रोगी हार्ट फैल्योर में जा सकता है,
  • अधिक खतरनाक समस्या न्यूरोलोजिकल प्रॉब्लम होती है,जिसमें कभी-कभी स्ट्रोक हो जाता है,
  • ब्लड क्लोटिंग मेकानिज्म जो अभी पता चला है कि कोविड 19 में ब्लड क्लोटिंग की समस्या भी आ सकती है,
  • चमड़ी में समस्या आ सकती है, जिसमें पैरों में अल्सर्स या जलन की शिकायत होती है, जिसकी वजह से पैरों में दर्द होता है आदि कई है.

ये 90 प्रतिशत रोगी में नहीं होता, जिनकी किस्मत ख़राब हो उन्हें ही हो जाती है. कोविड 19 की सीविओरिटी ओल्डर पेशेंट, डायबीटीस और ब्लड प्रेशर के मरीज में अधिक होती है. अधिक उम्र वाले रोगी को आगे चलकर जटिलताएं बढती है. इसके अलावा कमजोरी, सुस्ती ये सब 3 महीने बाद निकल जाती है.

दवाइयों के असर से ये समस्याएं नहीं आती, क्योंकि दवाइयां मरीज की सिवेरिटी के आधार पर ही दी जाती है. स्ट्रोंग मेडिसिन का असर अधिक हो सकता है और वह केवल मरीज़ के सीरियस होने पर उसे बचाने के लिए ही दिया जाता है.

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कोविड 19 के संक्रमण से निकलने के बाद कुछ बातों पर दे खास ध्यान

  • जब घर जाए तो स्वच्छ वातावरण में रहे,
  • फल अधिक लें, जिसमें नेचुरल विटामिन्स, शुगर और मिनरल अधिक होता है
  • हरी सब्जियां खाएं, इससे पोषक तत्व अधिक मिलते है,
  • प्रोटीन इन्टेक अधिक होने की जरुरत,
  • शाकाहारी के लिए पनीर, दाल और नट्स,
  • नॉन वेज के लिए अंडे और मीट,
  • हल्के व्यायाम करें, अच्छी नींद लें और खुश रहे.

ऐसे नियमित दिनचर्या से धीरे-धीरे बॉडी हील कर लेता है और व्यक्ति नार्मल हो जाता है.

इसके आगे डॉ. बेहराम कहते है कि हर दिन कोविड 19 के मरीजों को ठीक करना अपने आप में एक बड़ी चुनौती होती है. मुझे याद है कि मेरे पास दो भाई और एक दोस्त आये थे, साथ में तीनों बैठकर काफी पीते थे. तीनों को कोविड हो गया था, दोनों भाई इस बीमारी से गुजर गए, पर उसका दोस्त जो बहुत सिवीयर कोविड 19 से पीड़ित था. नॉन इन्वेसिव वेंटीलेशन उसे दिया गया. धीरे-धीरे उसका इम्प्रूवमेंट हुआ और अब वह घर चला गया है.

इसके आगे डॉक्टर का कहना है कि वैक्सीन और दवाई कोरोना संक्रमण की जल्दी आने की जरुरत है, काम भी हो रहा है ,जिसमें ऑक्सफ़ोर्ड के लोग काफी आगे है और अमेरिकन्स जो इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ पुणे, पूनावाला के साथ मिलकर काम कर रहे है. दोनों ही इसे जल्दी उपलब्ध करवाने की कोशिश कर रहे है. इस साल के अंत तक ये आने की उम्मीद है. अच्छी बात ये है कि कोरोना वायरस भारत में कम स्ट्रिंग के साथ आया है और ये म्यूटेशन नहीं हो रहा है. अभी एक ही वायरस है इसलिए वैक्सीन अधिक उपयोगी होगा. वैसे भी हर साल वैक्सीन में परिवर्तन रिसर्च के अनुसार होता रहता है. वायरस के लिए दवा कोई नहीं होती.इसलिए वैक्सीन ही इसका इलाज है, क्योंकि ये एपिडेमिक हो चुका है.

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वोकहार्ड हॉस्पिटल , मुंबई सेंट्रल

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