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पिछला भाग- छैल-छबीली: भाग-1

उन के कहने के ढंग पर महेश खूब हंसे. बोले, ‘‘जैसे मैं तुम्हें जानता ही नहीं कि तुम कितना डांटने वाली सास हो.’’

शाम को महेश उमा के आने से कुछ पहले ही आ गए ताकि वे कोई शिकायत न करे. चायनाश्ते के दौरान उमा अवनि के हालचाल लेने लगीं कि कैसी बहू है? सेवा क्या करती होगी जब औफिस में ही रहती है?

जवाब महेश ने दिया, ‘‘सेवा किसे करवानी है… कोई बीमार थोड़े ही है. अवनि बहुत अच्छी, समझदार लड़की है, जीजी.’’

अवनि के जिक्र से सुगंधा के चेहरे पर जो एक मायूसी आई, उमा की तेज नजरों ने उसे भांप लिया. बहुत अंदाजे भी लगा लिए. उमा महेश से बड़ी थीं. अब मातापिता रहे नहीं थे. दोनों भाईबहन अपना रिश्ता अच्छी तरह निभाते आए थे.

उमा धार्मिक कर्मकांडों में फंसी एक बहुत ही पारंपरिक विचारधारा की महिला थीं. अपने घर में भी उन का बहुत दबदबा था. स्वामी लोकनाथ की अनुयायी थीं. पूरे देश में स्वामीजी का कहीं भी प्रवचन होता, जा कर जरूर सुनतीं. विशाल शिविर में पूरे भक्तिभाव से 4-5 दिन रह आतीं.

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अब मुंबई इसीलिए आई थीं कि शिविर अंधेरी में था. अजय और अवनि भी औफिस से आ गए, उन का चरणस्पर्श किया. अवनि फ्रैश हो कर साथ बैठी. डिनर करते हुए अवनि वैसे ही अपनी मस्ती से बातें कर रही थी जैसे हमेशा करती थी. उमा हैरान थीं. फिर अवनि महेश को नागरिकता बिल के विरोध में अपने विचार बताने लगी. उमा अपने घर में इस बिल के समर्थन में अपने पति के विचार सुनती आई थीं. लगा उन के पति की बात जैसे काट रही हो यह लड़की. गुस्सा तो आया पर खुद को कुछ जानकारी थी नहीं, कहतीं भी तो क्या.

अवनि कह रही थी, ‘‘पापा, मेरे फ्रैंड्स इस बिल के विरोध में बहुत शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं. मेरा भी उन्हें जौइन करने का मन है पर औफिस में जरूरी मीटिंग्स चल रही हैं.’’

उमा ने जैसे चिढ़ कर जानबूझ कर उस की बात काटी, ‘‘मैं सोच रही थी, इस बार सुगंधा भी मेरे साथ चल कर स्वामीजी के शिविर में रह ले. तुम जरा घर देख लेना, बहू.’’

‘‘बूआजी, मां तो नहीं जाएंगी शिविर में.’’

सुगंधा हैरान रह गईं कि यह छैलछबीली बताएगी कि मैं कहां जाऊंगी कहां नहीं. उमा को जैसे करंट लगा. इस कल की आई लड़की ने उन की बात काटी. अत: थोड़ी सख्ती से बोलीं, ‘‘स्वामीजी की बातें सुनता हुआ इंसान सारे दुखदर्द भूल जाता है.’’

अवनि ने ठहाका लगाया, ‘‘ये स्वामीजी बंद करवाएंगे सारे डाक्टर्स के क्लिनिक? नासा वाले न पकड़ कर ले जाएं इन्हें.’’

‘‘बहू, तुम ने कभी ज्ञानध्यान की बातें

नहीं सुनीं शायद… सजसंवर कर सुबहसुबह औफिस जाना एक बात है, आध्यात्म के रास्ते पर चलना दूसरी.’’

इस सख्त सी आवाज पर अवनि का

चेहरा मुरझा सा गया. वह प्यारी लड़की थी, खुशमिजाज, यहां भी उस से कभी कोई ऐसे नहीं बोला था. पर अवनि भी अपनी तरह की एक ही थी. धीरे से बोली, ‘‘बूआजी, ज्ञानध्यान की बातों में मेरी सच में कोई रुचि नहीं.’’

उमा के माथे पर त्योरियां आ गईं. सुगंधा को घूरा, ‘‘साथ चल रही हो?’’

सुगंधा को अपने घर की शांति बहुत प्यारी थी पर जीजी को साफ मना करने की हिम्मत नहीं होती कभी. धीरे से बोल ही दीं, ‘‘जा नहीं पाऊंगी, जीजी… बैठने में मुश्किल होती है.’’

उमा के चेहरे पर झुंझलाहट थी. सुगंधा आज बोलीं तो अजय ने भी कहा, ‘‘हां मां, आप को जाना भी नहीं चाहिए. बूआ, आप ही हो आना.’’

उमा के चेहरे पर नागवारी छाई रही.

रात को जब सब सोने चले गए तो उमा ने सुगंधा को सोफे पर बैठा कर कहा, ‘‘सुगंधा, बहू तो बड़ी तेज लग रही है तुम्हारी.’’

सुगंधा चुप रहीं.

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‘‘इस की लगाम कस कर रखो.’’

सुगंधा हंस दीं, ‘‘जीजी, बहू है, घोड़ी थोड़े ही है जो कोई उस की लगाम कसेगा,’’ सुगंधा हंसमुख, शांतिप्रिय महिला थीं, लड़ाईझगड़ा उन के स्वभाव में नहीं था.

उमा ने फिर कहा, ‘‘सुगंधा, यह छम्मकछल्लो जैसी लड़की अजय ने पसंद तो कर ली पर मुझे नहीं लगता यह घर में किसी को शांति से रहने देगी. कैसी सजीसंवरी सी, मेकअप किए रहती है. कैसे पटरपटर किए जा रही थी. यह नहीं कि बड़ों के सामने मुंह बंद रखे.’’

सुगंधा फिर मुसकरा दीं. न चाहते हुए भी बोल ही पड़ीं, ‘‘छम्मकछल्लो? हाहा, जीजी, मैं तो इसे मन ही मन छैलछबीली कहती हूं.’’

उमा को जरा हंसी नहीं आई. बोलीं, ‘‘लटकेझटके देखे? और अजय? उसी को निहारता रहता है… यह रोज रात तक ऐसे ही फ्रैश बैठी रहती है?’’

‘‘हां, जीजी, ढंग से पहननेओढ़ने की बहुत शौकीन है.’’

‘‘कुछ नहीं, पति को रिझा कर अपने पल्लू से बांधने में होशियार है ये लड़कियां आजकल.’’

सुगंधा को बहुत सारा ज्ञान बघार कर उमा अगली सुबह शिविर में रहने चली गईं. वहीं से पुणे लौट जाएंगी.

उन के जाने के बाद अजय ने कहा, ‘‘अवनि, तुम तो बूआजी के सामने काफी बोल लीं… मां तो आज तक इतना नहीं बोलीं.’’

‘‘मां जितनी सीधी हैं न अजय, उतना सीधा बन कर आज के जमाने में काम नहीं चलता है. बोलना पड़ता है,’’ शांत और गंभीर स्वर में कही अवनि की इस बात पर सुगंधा ने अवनि को ध्यान से देखा. वह औफिस के लिए तैयार थी. उस के चेहरे पर हमेशा एक चमक रहती थी, खुश, शांत, सुंदर चेहरा.

अजय से 4 साल बड़ी नीतू अपने दोनों बच्चों यश और रिनी के साथ छुट्टियों में पुणे से मुंबई आई. उस ने आ कर कहा, ‘‘अवनि के साथ रहने से मन ही नहीं भरा था, बड़ी मुश्किल से छुट्टी होते ही आ पाई.’’

नीतू का पति सुधीर साथ नहीं आया था. वह पुणे में अपने सासससुर के साथ रहती थी. नीतू और अवनि की खूब जमी. बच्चे अपनी मामी पर फिदा थे. सुगंधा तब हैरान रह गईं जब अवनि ने किसी के बिना कहे नीतू के साथ समय बिताने के लिए छुट्टी ले ली. नीतू परंपरावादी सास के कठोर अनुशासन में रह रही बहू थी. नीतू अपने सासससुर के नियमों के कारण खुल कर सांस लेना ही भूल चुकी थी. सुधीर भी मां की ही तरह था. नीतू के हाथों, गले में पता नहीं कितने धागे बंधे हुए थे.

अवनि ने कहा, ‘‘दीदी, आजकल मैचिंग ऐक्सैसरीज पहनने का जमाना है… आप ने यह सब कहां से पहन लिया?’’

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नीतू झेंप गई, ‘‘मेरी सास पता नहीं कितने पंडितों, मंदिरों के चक्कर काटती रहती हैं. कुछ भी हो जाए, झट से एक धागा ला कर बांध देती हैं. मेरी तो छोड़ो, सुधीर को देखना, कितने धागों में लिपटे औफिस जाते हैं. मुझे तो यही लगता है कि उन का औफिस में मजाक न बनता हो.’’

अवनि खुल कर हंसी, ‘‘अगर उन के औफिस में कोई मेरे जैसी लड़की होगी तो मजाक जरूर बनता होगा.’’

आगे पढ़ें- सुगंधा वहीं बैठी थीं. बोलीं, ‘‘अवनि, अपने ननदोई का…

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