कोविड 19 के लगातर बढ़ते केस और उसका सही इलाज और वैक्सीन अब तक न मिल पाने की वजह से पूरा विश्व लाचार है और सबने इतना समझ लिया है कि केवल सैन्य शक्ति और हथियार बढ़ा लेने से ही देश शक्तिमान या विकसित देश नहीं कहलाता, बल्कि वहाँ रहने वाले जनता को किसी बीमारी का सही इलाज देना भी उनके लिए चुनौती है. इस पेंडेमिक से लाखों लोग पीड़ित है और मौत का आंकड़ा दिनों दिन बढ़ता जा रहा है. हेल्थ केयर के क्षेत्र में दुनिया के नंबर वन कहे जाने वाले लोग भी असहाय हो चुके है, ऐसे में खास कर भारत जैसे विकासशील देश जहां किसी भी बीमारी के लिए सही इलाज आज भी मुमकिन नहीं. सही हायजिन वाले अस्पताल से लेकर अनुभवी डॉक्टर, जरुरत के अनुसार उपकरण, पैरामेडिकल स्टाफ आदि सभी की कमी है. 1.3 बिलियन की जनसँख्या, जहाँ युवाओं की संख्या सभी देशों से अधिक होने पर भी सब लाचार है. सब कुछ आस्था पर भरोषा करके ही यहाँ जीना पड़ता है, ऐसे में इंडिया इज ग्रोइंग की स्लोगन भी कोई माइने नहीं रखती.
इस तरह की अवस्था में भारत को किस तरह की सीख लेनी चाहिए? हेल्थ केयर सेक्टर में कितनी तैयारी आगे करने की जरुरत है, इस विषय हर कोई आज सोचने पर मजबूर है, इसी विषय पर डॉक्टर और हेल्थ केयर के एक्सपर्ट ने आगे आने वाले समय में हेल्थकेयर में अधिक से अधिक विकास की जरुरत को महसूस करने लगे है. इस बारें में मुंबई की रिजनेरेटिव मेडिसिन रिसर्चर डॉ. प्रदीप महाजन कहते है कि इस पेंडेमिक को लोगों ने अधिक महत्व नहीं दिया था और ये इतनी जल्दी सबमें फैलेगा ये भी पता नहीं था. किसी के पास भी इसकी तैयारी नहीं थी. इसलिए मौत का आंकड़ा इतनी जल्दी बढ़ता हुआ दिख रहा है. मेडिकल डॉक्टर्स, पैरा मेडिकल स्टाफ और दवाइयां जरुरत के हिसाब से नहीं मिल रही है. जर्मनी में इसे अच्छी तरह से मैनेज किया और डेथ परसेंट 0.1 से भी कम है, जबकि दूसरे देशों में 5 प्रतिशत कही 8 प्रतिशत तो कही 10 प्रतिशत है. भारत में इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी की वजह से तैयारी में कमी हुई है. उसकी वजह से सबसे अधिक चुनौती हमें बेड्स और वेंटीलेटर्स, पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट्स (PPE), टेस्ट किट आदि की हाई लेवल की मैन्युफैक्चरिंग यहाँ नहीं है. 50 हजार वेंटिलेर्स है, जबकि जरुरत लाखों में हो सकती है. ये गैप अधिक है और देश इसे ढूंढ़ता फिर रहा है. आईसीयू का बैकअप यहाँ बहुत कम है, जो चिंता का विषय है. इसके अलावा डॉक्टर्स, नर्सेज ,पैरामेडिकल स्टाफ आदि सब कम है. ये अनुपात में जो कमी है वही इस बीमारी को बढ़ाने की वजह है. सेल्फ आइसोलेशन ने देश को कुछ हद तक बचाया है और वॉल्यूम इस वजह से कम हो रहा है, नहीं तो इसे सम्हालना मुश्किल था. इस दशा को देखते हुए कुछ सीख देश की सरकार और जनता को लेनी चाहिए.जो निम्न है,
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- इन्फ्रास्ट्रक्चर को ठीक करना,
- क्रिटिकल मैनेजमेंट के अंतर्गत काम करने वाले लोगों को प्रशिक्षण देना,
- मैनपॉवर को सही करना,
- देश के नागरिकों का भी सही तरह से सरकार का साथ देना,
ऐसी बीमारी में लगने वाले ड्रग्स और उपकरण जिसमें वेंटिलेटर्स, प्रोटेक्टिव ड्रेसेज आदि की सप्लाई प्रयाप्त मात्रा में करने की व्यवस्था करने से ऐसे किसी भी महामारी से डरने की जरुरत देश को नहीं होगी.
इसके अलावा कुछ दवाइयां हमारे यहाँ अधिक मात्रा में नहीं बनते, जिसकी जरुरत इस बीमारी से पीड़ित को होती है. क्लोरोक्वीन बहुत है ,लेकिन इसके साथ में लगने वाली एंटी वायरल दवाइयां यहाँ नहीं बनती. उनके रॉ मेटेरियल बाहर से मंगाने पड़ते है, जो अब मुश्किल हो रहा है, एंटी वायरल ड्रग्स भी देश में तैयार हो इसकी व्यवस्था भी देश को करने की जरुरत है. साथ ही रिसर्च पर अधिक जोर देने की जरुरत है.
इसके आगे डॉक्टर प्रदीप कहते है कि क्रिटिकल रोगी के लिए बेड्स, अस्पताल, प्रशिक्षित स्टाफ आदि की बहुत जरुरत है, कोविड -19 के तहत जो समस्या हमें आई है, इससे देश को सीख मिलनी चाहिए . केवल सरकारी अस्पताल ही नहीं, प्राइवेट अस्पताल को भी वैसी ही सुविधा से लैस होने की जरुरत है, ताकि जरुरत के समय वे भी साथ आ सकें.
इतना ही नहीं पब्लिक को भी साथ देने के साथ की जरुरत है, वे निर्देशों का पालन किये बिना अपना टेस्ट नहीं करवा रहे है, या फिर क्वारेंटाइन से भाग रहे है, जो लोगों को इस बीमारी के बारें में कम जानकारी की वजह से है.
डॉक्टर प्रदीप इस दिशा में रिसर्च कर रहे है, जिसके तहत मेसेंसिमेल (mesenchymal) स्टेम सेल्स और नेचुरल किलर सेल्स जिसके द्वारा टारगेट कर इस सेल को मारा जा सकता है, इसे कोरोना से अधिक आक्रांत रोगी का इलाज किया जा सकता है. ये एक नयी तकनीक आ सकती है. इसके लिए सरकार की परमिशन लेने की कोशिश की जा रही है. इसमें रोगी की इम्यून सिस्टम को बढाकर इस वायरस को काबू में किया जा सकता है. इम्युन सिस्टम बढ़ा देने से वायरस आयेगा औए चला भी जायेगा किसी को पता भी नहीं लगेगा.
पुणे की मदरहुड हॉस्पिटल की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ.राजेश्वरी पवार बताती है कि अभी तक जो सावधानियां और इलाज़ भारत में हो रहे है वह दूसरे देश की अपेक्षा प्रसंशनीय है, क्योंकि भारत जैसे इतने बड़े देश में अचानक ऐसी महामारी से लड़ना बहुत मुश्किल का काम है, पर यहाँ लोग मास्क काफी मात्रा में बना रहे है और पहन भी रहे है. ये सही भी है अगर कोई नियमित मास्क पहनकर बाहर जाता है और घर आकर उसे साबुन से धो लेता है, तो इतनी सावधानी कोरोना संक्रमण से बचने के लिए काफी होता है. ध्यान रहे इसे किसी के साथ शेयर न करें और सोशल डिस्टेंस जरुरी है, लेकिन लॉकडाउन इसे कम करने में अवश्य बहुत हद तक सफल हुई है. ये एक सही कदम था, क्योंकि ऐसी बीमारी में एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के लिंक को तोडना बहुत जरुरी होता है.
इसके आगे डॉ. राजेश्वरी कहती है कि हेल्थ केयर सेक्टर में की अगर बात करें, तो अभी सरकार बीमारी से सम्बंधित दवाओं के लिए लाईसेन्स जल्दी दे रही है, ताकि जल्द से जल्द इस बीमारी की इलाज के लिए उपकरण और सुविधाएं मिल सकें. भविष्य में भी सरकार को कुछ सीख इससे लेने की जरुरत है,
- सरकारी अस्पतालों को अधिक से अधिक ऐसे संक्रमण युक्त बीमारी से लड़ने के लिए तैयार करना,
- संक्रमण युक्त बीमारी के लिए अलग से अस्पताल बनाना, ताकि बाकी मरीज को इन्फेक्शन न हो,
- उसमें स्पेशलिस्ट डॉक्टर होने की जरुरत है, जो बहुत कम है,
- इसे बढ़ाने के लिए डॉक्टर्स की हाई लेवल की पढाई के लिए संस्थान खोले जाने की जरुरत है, क्योंकि डॉक्टर की कमी भी इस बीमारी के दौरान काफी सामने आ रही है.
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विदेशों में ऐसे डॉक्टर्स की कमी इसलिए हुई है, क्योंकि वहां संक्रमण युक्त बीमारी बहुत कम होती है, ऐसे में इस तरह के वायरस से लड़ना उनके लिए काफी मुश्किल हो रहा है, जबकि वहां की हेल्थ केयर सिस्टम काफी अच्छा है, वहां भी वेंटिलेटर्स कम पड़ गए है, हालाँकि अभी हमारे यहाँ ऐसी परिस्थिति नहीं है, पर ऐसी होने पर समस्या डॉक्टर्स को आती है कि किसे बचाया जाय, युवा या बुजुर्ग को? दोनों ही केस में डॉक्टर्स में अपराध बोध जगता है और मानसिक समस्या डॉक्टर्स को आ जाती है. स्ट्रेस लेवल और उनमें रोग फैलने का डर भी मेडिकल स्टाफ को आ जाता है. केवल रोगी को ही नहीं हेल्थ केयर में काम करने वालो के लिए भी साईकोलोजिकल सपोर्ट की जरुरत होती है, ऐसी टीम निर्धारित की जानी चाहिए. इसके अलावा जनसँख्या के हिसाब से उपकरण भी हमारे देश में होनी चाहिए.
पुणे के माय लैब की साइंटिस्ट मिताली पाटिल कहती है कि देश में गहन रिसर्च सेंटर्स, उपकरणों की मैन्युफैक्चुरिंग की व्यवस्था, जिसमें थर्मामीटर, मास्क, ग्लव्स, वेंटिलेटर्स आदि सभी में सही तरीके से इन्वेस्ट करने की जरुरत है, जिससे देश ऐसे किसी भी बीमारी से लड़ने की क्षमता को बढ़ा सकें.