आजकल एक दवा का नाम काफी चर्चा में है, और वो है हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (Hydroxychloroquine). भारत इसके निर्माण-निर्यात में विश्व में अग्रणीय स्थान पर आता है. कोरोना वायरस के हालात को देखते हुए मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन आजकल खबरों में बनी हुई है क्योंकि यह दवा अर्थराइटिस, मलेरिया और काफी हद तक COVID-19 के इलाज में भी प्रयोग में आ रही है.

आज कई सारे देश इस दवाई की मांग कर रहे हैं. भारत सरकार अब उन जी-20 देशों को, जिन्हें इसकी ज़रूरत है और जिन्होंने प्रार्थना की है, ये दवा उपलब्ध करवा रही है. हालांकि सरकार की प्राथमिकता घरेलू जरूरतों को पूरा करना है.

भारत में मौजूद गरीबी और असंख्य लोगों की अनेकोनेक बीमारियों के कारण सरकारों की पॉलिसी ऐसी रही कि जनता का ध्यान पहले रखा गया. परंतु भारत जैसे देश में अच्छी गुणवत्ता की किन्तु सस्ती दवाइयाँ मिलना एक चैलेंज रहा है. इसका उपाय ढूँढा हमारे डॉक्टरों ने जिन्होंने रिवर्स-इंजीनीयरिंग करके जेनरिक दवाइयाँ ईजाद कीं. इसका परिणाम यह रहा कि आज भारत को विश्व की फार्मेसी कहा जाता है. भारत में इन दवाइयों का आविष्कार हुआ हो या नहीं, किन्तु यहाँ इन दवाइयों का उत्पाद भारी मात्रा में होता है. और फिर ये दवाइयाँ विश्व भर में निर्यात की जाती हैं. यही कारण है कि आज की कोरोना वायरस की स्थिति में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन पाने के लिए सारे विश्व की नज़र भारत पर आकर टिक गयी है.

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हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का उत्पाद करनेवाली कुछ फार्मासूटिकल कंपनियाँ हैं इपका लैब्स, ज़ाइडस, सिपला, एलकेम, टौरेंट, और माइक्रो लैब्स. इनमें से मुंबई स्थित इपका लैब्स और ज़ाइडस सबसे बड़ी उत्पादक हैं. इपका लैब्स भारत सरकार को करीब 10 करोड़ हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवाइयाँ, और साथ ही 3-4 करोड़ राज्यों के लिए भी बनाकर दे रही है. इपका लैब्स के जाइंट एम डी श्रीमान ए के जैन का कहना है कि इस स्थिति में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन बनाने के लिए कुछ सोल्वेंट्स और केमिकल्स में बदलाव लाने की आवश्यकता है जिससे इसको बनाने की लागत में वृद्धि होगी किन्तु भारी माँग की वजह से दवा की कीमतें शायद ही बढ़ाई जाएंगी.

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