क्या भारत में कोरोना का कहर तीसरी स्टेज में है? अभी यह कहना तो जल्दबाजी होगी लेकिन जिस तरह नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी और इस्थेर डुफलो ने कहा है वह काफी चिंताजनक है. उन्होंने कहा है कि कोरोना वायरस पर पार पाने के लिए और जागरूकता फैलानी होगी और चिकित्सा संबंधी ढांचागत बुनियाद तैयार करना जरूरी है. अगर भारत में यह झुग्गी बस्तियों में फैलता है तो वहां इस महामारी पर काबू पाना मुश्किल हो जाएगा.

अब जबकि पूरी दुनिया में कोरोना वायरस ने 32,000 से ज्यादा जिंदगियों को लील लिया है और भारत में इस के मरीजों की तादाद रोजाना बढ़ रही है तो क्या अब यह जरूरी हो गया है कि नई से नई तकनीक का इस्तेमाल किया जाए?

वैसे विदेशों में कोरोना से बचने के लिए कई तरह की नई तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है. कई एशियाई देश इस बीमारी से जूझ रहे मरीजों को एप से ट्रैक कर रहे हैं. इस में लोकेशन ट्रैकिंग बड़ा अहम रोल निभा रही है. इजरायल ने अपनी सुरक्षा एजेंसी को यह हक दिया है कि वह अपने नागरिकों की लोकेशन का डाटा 30 दिनों तक इस्तेमाल कर सकती है. दक्षिण कोरिया, चीन और ताइवान ने भी लोकेशन ट्रैकिंग के जरीए ही वायरस को मामलों को रोका. जरमनी और इटली की सरकारों ने इस तकनीक से उन इलाकों का पता लगाया जहां ज्यादा लोग जुटे थे.

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इस के अलावा दूसरी तकनीक मोबाइल एप रही.

अमेरिका में एक एप लांच किया गया जिस के माध्यम से लोग संक्रमण के लक्षण रिपोर्ट कर सकते हैं. इसे बहुत लोगों ने डाउनलोड किया. दक्षिण 'कोरिया ने कोरोना 100 एम' नामक एप बनाया. इस से पीड़ित मरीज की लोकेशन पता चलती है. अगर वह पीड़ित किसी दूसरे के 100 मीटर के क्षेत्र में आता है तो एप उसे अलर्ट कर देता है.

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