बड़े शहरों से लौट कर अपने गांव घर पहुचने वॉले लोगो के सामने आग से निकले कढ़ाई में गिरे वॉले हालत बन गए है. गांव तक पहुचने के लिए सैकड़ो किलोमीटर पैदल चलना पड़ा, ट्रक, बस या दूसरी सवारी गाड़ियों  में जानवरों की तरह ठूंस ठूंस कर सफर करना पड़ा. भूखे प्यासे रह कर जब यह लोग गांव पहुचे तक इनके और परिवार के लोगो के बीच प्रशासन और गांव के दूसरे जागरूक लोग खड़े हो गए. कुछ लोग इनकी करोना वायरस से जांच की मांग करने लगे तो कुछ लोग इनको अस्पताल में रखने की मांग कर रहे थे . वंही कुछ लोग चाहते थे कि यह 14 दिन अपने घर मे ही अलग थलग रहे. शहरों को छोड़ अपने गांव पहुचे इन लोगो को लग रहा था कि यह अछूत जैसे हो गए है. करोना वायरस के खिलाफ जागरूकता अभियान एक डर की तरह पूरे समाज के दिलो में बैठ गया है. उसे बाहर से आने वाला हर कोई करोना का मरीज लगता है और उससे वो जान का खतरा महसूस करता है.

अजनबियों सा व्यवहार

मोहनलालगंज के टिकरा गांव में रहने वाला आलोक रावत उत्तराखंड नोकरी करने गया था. लॉक डाउन होने के बाद वो किसी तरह तमाम मुश्किलों का सामना करता 30 मार्च को अपने गांव पहुचा. गांव में घुसने के पहले ही गांव के कुछ जागरूक लोगो ने उसको रोक लिया. इसके बाद पुलिस और डायल 112 पर फोन करके पुलिस को खबर कर दी कि एक आदमी बाहर से आया है. अब आलोक को घर जाने की जगह गांव के बाहर स्कूल में ही रहना पड़ा. बाद में पुलिस डॉक्टर  आये तो लगा कि उसको कोई दिक्क्क्त नही है. इसके बाद भी आलोक को हिदायत दी गई कि 14 दिन वो अपने घर के अलग कमरे में रहे किसी से ना मिले ना जुले.

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