कोविड से अस्मय मौतों की गिनती बेहद बढ़ गई है और ये मौतें होती भी 10-15 दिन में हैं जब तक निकट संबंधी तैयार भी नहीं हो पाते. होने को उस तरह की मृत्यु कार एक्सीडैंटों या दूसरी अचानक होने वाली बिमारियों में भी होती है पर जिस तरह से बाढ़ आई है जिन में निकट संबंधी समझ ही नही पा रहे कि क्या हुआ. कैसे हुआ, पहली बार हो रहा है.
कोरोना वायरस के बावजूद ऐसे समय मृतक के निकट संबंधियों को साहस देना, समय देना एक सामाजिक कर्तव्य है. यह उतना ही जरूरी है जितना अस्पताल बनाना. यह वह औक्सीजन है जो मृतक के संबंधी, दोस्त, सहकर्मी परिवार, पत्नी, पति, बच्चों मां, पिता को दे सकते हैं. जहां घर बड़े कई सदस्य एक छत के नीचे रहते हैं वहां तो काम चल जाता है पर जहां मरने वाला किसी पत्नी, पति या बेटेबेटी की अकेला छोड़ जाए वहां एक बड़ी जिम्मेदारी दूसरों पर आ जाती है.
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आमतौर पर इसे दखल देना मान कर लोग मृतक के निकट के लोगों को अकेले दुख मनाने के लिए छोड़ देते हैं पर यह गलत है. मृतक के निकटतम लोग सांत्वना के शब्दों के साथ यह अहसास भी चाहते हैं कि कोई उन का इंतजार कर रहा है. कोई कभीकभार उन की ङ्क्षचता कर लेना है.
समयसमय पर खाने पर बुला लेना, खाना बना कर भेज देना, फालतू के समय बिताने चले जाना, बहुत छोटेमोटे काम कर देना ऐसी बातें हैं जो मृतक के खालीपन को भुलाने में बहुत काम आती हैं.
निकट की औरतों के लिए तो यह काम आसान भी है और सुखदायी भी. मृतक के परिवार का हाल जानना या उसे किसी काम में सहयोग देने में कतई कंजूसी न करें. जब तक यह न लगने लगे कि मृतक का निकटतय अकेलापन में हो गए भुलाना चाहता है, दूसरों की दखल नहीं.