ओवेरियन सिस्ट महिलाओं में होने वाली एक आम समस्या है. यह हर महीने मासिकचक्र के दौरान हो सकती है, जिस के बारे में महिलाओं को जानकारी नहीं होती. कई बार यह सिस्ट अपनेआप ठीक हो जाती है, लेकिन अगर समय के साथ इस का आकार बढ़ता है, तो इस का इलाज करवा लेना जरूरी हो जाता है. मुंबई के ‘वर्ल्ड औफ वूमन’ की स्त्री और प्रसूति रोग विशेषज्ञा डा. बंदिता सिन्हा के अनुसार कुछ सिस्ट निम्न हैं:

सिंपल फौलिक्युलर सिस्ट: यह नौर्मल सिस्ट है और हर महिला में होती है. यह ओवुलेशन की प्रक्रिया में होती है. यह एग फौर्मेशन में बनती है. यह नैचुरल होती है और इस से नुकसान नहीं होता. अगर यह 4 सैंटीमीटर से अधिक बड़ी हो जाती है, तो यह दवा से गला कर निकाल दी जाती है, क्योंकि सिस्ट बड़ी होने के बाद कई बार दर्द होता है और यह पीरियड को भी अनियमित कर सकती है, मगर प्रैगनैंसी में समस्या नहीं होती.

पौलिसिस्टिक ओवरी सिस्ट: इस में कई सिस्ट होती हैं, जिस से नियमित ओवुलेशन नहीं होता. इस में ओवरी काम नहीं करती. हारमोनल असंतुलन की वजह से एग नहीं बनते और बच्चा होना मुश्किल हो जाता है. इस सिस्ट को ठीक तरह से ट्रीट करना जरूरी होता है.

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लक्षण

– पीरियड का अनियमित होना.

– ओवुलेशन का न होना.

– पीरियड का धीरेधीरे कम हो जाना.

– अचानक वजन बढ़ना.

– हेयर लौस होना.

– चेहरे पर अचानक बालों का उगना.

ऐंडोमेट्रायोसिस: यह सिस्ट ओवरी में बनती है और उस के अंदर ब्लीडिंग होती है. खून अंदर होने की वजह से यह सिस्ट काले रंग की दिखती है. यह सिस्ट धीरेधीरे अंडे की क्वालिटी को खराब करती है और बाद में ओवरी और ट्यूब को भी खराब करती है. इंटरनल ब्लीडिंग होने की वजह से आसपास के और्गन एकदूसरे से चिपक जाते हैं. ऐसे रोगी को पीरियड के दौरान असहनीय दर्द होता है, ब्लीडिंग अधिक होती है. ऐसे रोगी को इन्फर्टिलिटी हो सकती है. इस में माइल्ड, मौडरेट और सीवियर क्वालिटी होती है. उसी के हिसाब से इलाज किया जाता है.

लक्षण

– हर पीरियड के वक्त दर्द का धीरेधीरे बढ़ना

– लोअर ऐब्डोमेन के साथसाथ कमर में भी दर्द होना.

– दर्द का अधिक समय तक पीरियड के बाद भी होते रहना.

कई बार यह सिस्ट सोनोग्राफी से भी नहीं दिखती. तब लैप्रोस्कोपी का सहारा लेना पड़ता है.

कार्पस ल्युटियम सिस्ट: यह प्रैगनैंसी को सपोर्ट करती है और प्रैगनैंसी के दौरान ही होती है. यह हार्मलैस होती है. यह बच्चे

के साथ रहती है, उस के लिए ओवरी में जगह बनाती है.

हेमोरहेजिक सिस्ट: यह पीरियड के बाद बनती है और अपनेआप गल जाती है. इस में रोगी को औब्जर्वेशन में रखना पड़ता है. 5% केस में अगर अधिक ब्लीडिंग हो, तो सर्जरी करनी पड़ती है. इस में फर्टिलिटी को कोई नुकसान नहीं होता.

डरमोइड सिस्ट: यह अधिकतर ओवरी में प्रैगनैंसी के साथ होती है. इस तरह की सिस्ट में हेयर, नेल्स, बोंस आदि होते हैं, जिन्हें लैप्रोस्कोपी से निकाल दिया जाता है.

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सिस्ट निकालने के बाद निम्न सावधानियां बरतनी जरूरी हैं:

– माइल्ड सिस्ट होने पर भी इलाज के बाद समयसमय पर जांच करवानी चाहिए.

– सिस्ट निकालने के तुरंत बाद प्रैगनैंसी की सलाह दी जाती है ताकि प्रैगनैंसी में हुए हारमोनल बदलाव से फिर से सिस्ट होने का खतरा न हो. गर्भधारण न होने पर दोबारा सिस्ट डेढ़दो साल में हो सकती है.

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