पिछली पीढ़ी की ज्यादातर महिलाएं प्रसव से पहले तक रसोई और घर का सारा काम आसानी से संभालती थीं. लेकिन आज की महिलाओं के लिए प्रसव उतना आसान नहीं है. अब ज्यादा से ज्यादा महिलाएं गर्भधारण एवं प्रसव को कठिन कार्य मानती हैं. उन्हें प्रसव बेहद कष्टदायी लगने लगा है. इस कष्ट से बचने के लिए वे सिजेरियन डिलिवरी ज्यादा पसंद कर रही हैं, जो शरीर को आगे चल कर कमजोर बना देती है. इसलिए गर्भधारण से ले कर प्रसव व प्रसवोपरांत तक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए व्यायाम एक बेहतर विकल्प है. प्रसवकाल को सुखद बनाए रखने के लिए व्यायाम में फिजियोथेरैपी एक अच्छा माध्यम है. यह गर्भकाल और प्रसव के दौरान होने वाली कई तरह की परेशानियों से छुटकारा दिलाती है. 9 महीने के लंबे गर्भकाल में स्वास्थ्य का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. इस के लिए फिजियोथेरैपी को नियमित रूप से अपनाना चाहिए-

स्ट्रैंथनिंग

कमर के लिए : पैरों को एकसाथ मिला कर कमर के आगे की तरफ लाते हुए आसन पर बैठ जाएं, फिर घुटनों को धीरेधीरे जमीन से छुआने की कोशिश करें. इस क्रिया को भी कई बार करें.

गले के लिए : इसे करने के लिए सीधे बैठें, फिर एक हाथ को मोड़ कर सिर के पीछे की तरफ का हिस्सा पकड़ें और कुहनियों को ऊपर की ओर उठाएं. यही क्रिया दूसरे हाथ से भी दोहराएं. आसन पर बैठ कर दोनों हाथों को आगे की ओर ले जाएं. फिर धीमी गति से सांस लेते हुए हाथों को दोनों ओर फैलाएं. इस क्रिया को 10-12 बार दोहराएं.

 पीठ के लिए : पैरों को जमीन पर टिकाते हुए कुरसी पर सीधी बैठ जाएं. फिर दोनों हाथों से कमर को पकड़ें. आसन पर धीरे से हाथों और घुटनों के बल टेक लगाते हुए झुकें, फिर धीरेधीरे पीछे के मध्य भाग को ऊपर और नीचे की ओर ले जाएं.

गले की पीछे की पेशियों के लिए : इस क्रिया को करने के लिए घर की किसी दीवार के पास खड़ी हो जाएं. कंधों के बराबर दोनों हथेलियों को जोड़ कर रखें. दोनों पैरों के बीच थोड़ी दूरी बना कर रखें यानी पैर मिलें नहीं. फिर दीवार से 30 सैंटीमीटर की दूरी पर खड़े हो कर कुहनियों को मोड़ कर धीरेधीरे नाक से दीवार छूने की कोशिश करें. यह क्रिया फिर दोहराएं. यह व्यायाम प्रसव को भी आसान बनाता है.

जांघों की पेशियों के लिए : इसे करने के लिए सीधी लेट जाएं और फिर एक मोटे तकिए को बारीबारी से घुटनों के बीच 10 मिनट तक दबाए रखें. ऐसा कई बार करें.

रिलैक्सेशन मैथेड : सब से पहले आसन पर लेट जाएं और अपनी सांस की गति पर ध्यान दें. फिर दोनों एडि़यों को 5 सैकंड तक दबा कर रखें. फिर ढीला छोड़ दें. यह क्रिया घुटनों, हथेलियों, कुहनियों, सिर आदि हिस्सों के साथ भी करें. इस से शरीर की पेशियां रिलैक्स होती हैं.

कीगल्स व्यायाम : कीगल्स व्यायाम को मूत्रत्याग के दौरान किया जाता है. इसे करने के लिए मूत्र के दौरान 3 से 5 सैकंड तक मूत्र को रोकरोक कर करें. इस से पेट के निचले हिस्से में कसावट आती है. गर्भवती महिलाओं के लिए यह बेहद महत्त्वपूर्ण व्यायाम है.

पैरों की पेशियों के लिए : इस क्रिया को करने के लिए पहले तो आसन पर बैठें. फिर आसन के ऊपर एक मोटा कपड़ा बिछा कर एडि़यों से उसे दबाएं. इस के बाद पैरों की उंगलियों से कपड़े को भीतर की ओर खींचने की कोशिश करें. इस क्रिया को भी कई बार दोहराएं. यह व्यायाम पैरों की पेशियों में कसावट लाने के साथसाथ फ्लैट फुट की समस्या को भी रोकता है, रक्तसंचार को बढ़ा कर पैरों की सूजन को भी कम करता है.

ध्यान देने योग्य बातें :

  1. दिन भर में एक बार व्यायाम जरूर करें और व्यायाम करते समय थकान और दर्द का ध्यान जरूर रखें.
  2. शुरू में व्यायाम कम समय के लिए करें. फिर धीरेधीरे समय बढ़ाएं.
  3. चिकनी फर्श पर व्यायाम बिलकुल न करें.
  4. व्यायाम करते समय ढीले वस्त्र पहनें.
  5. खाने के तुरंत बाद व्यायाम कभी न करें. खाने के कम से कम 2 घंटे बाद ही व्यायाम करें.
  6. गर्भावस्था के दौरान महिलाएं कम जगह वाले फर्नीचर पर न बैठें. इस से पेशियों पर ज्यादा दबाव पड़ता है.
  7. बैठते समय पीठ को कुरसी से सटा कर बैठें और पैरों को फर्श पर रखें.
  8. गर्भधारण के 20 सप्ताह बाद सीधी न लेटें, बल्कि सिर और कंधों को ऊंचा कर के लेटें. इस के लिए सिर के नीचे 2 तकिए लगा कर लेटें. ऐसा करना गर्भाशय की रक्तनलिकाओं में पड़ने वाले दबाव के कारण होने वाले हाइपरटैंशन को रोकता है.
  9. हाई हील के सैंडल पहनने से बचें, फ्लैट फुटवियर ही पहनें, इस से रीढ़ की हड्डी पर खिंचाव कम होगा.
  10. गर्भकाल के समय व्यायाम करने पर किसी भी प्रकार का दर्द या समस्या हो तो तुरंत स्त्रीरोग विशेषज्ञा की सलाह लें.व्यायाम से संबंधित विशेष जानकारी फिजियोथेरैपिस्ट से भी ले सकती हैं.

गर्भकाल के दौरान होने वाली समस्याएं

  1. पेट के निचले हिस्से में सिकुड़ी अवस्था में स्थित यूटरस गर्भकाल के हफ्तों बीतने के बाद विकसित हो जाता है. इस कारण शरीर के आगे के हिस्से में शरीर का भार बढ़ता है, जिस से शरीर का संतुलन बनाए रखने में समस्या उत्पन्न होने लगती है.
  2. कंधे लटकने लगते हैं. ऐसी अवस्था में मांसपेशियों में खिंचाव पड़ने लगता है.
  3. घुटने फूलने लगते हैं और दोनों पैरों में अंतर बढ़ जाता है, जिस की वजह से कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
  4. जिन महिलाओं का वजन ज्यादा होता है, उन की पेशियां ढीली होने की वजह से उन में फ्लैट फुट की समस्या उत्पन्न हो सकती है.
  5. पेट की मांसपेशियों में खिंचाव पड़ने की वजह से स्ट्रैस की समस्या उत्पन्न होने लगती है.
  6. आम अवस्था की अपेक्षा गर्भावस्था के दौरान ज्यादा आराम करने से मांसपेशियां कमजोर पड़ने लगती हैं.
  7. शरीर के आकार में बदलाव आने के कारण शरीर फैलने लगता है.

फिजियोथेरैपी के फायदे

  1. स्वास्थ्य बेहतर बना रहता है और शारीरिक परेशानियां कम होती हैं.
  2. व्यायाम सर्कुलेटरी प्रौब्लम्स, वैरिकोस वेंस समस्या और पैरों की सूजन को कम करता है.
  3. प्रसव के बाद स्वास्थ्य में भी बहुत तेजी से सुधार आता है.
  4. यह जोड़ों से संबंधित समस्याओं को कम करने के साथसाथ उन्हें रोकने में भी सहायक है.
  5. शरीर को नियंत्रित करने में मदद करती है.
  6. गर्भकाल के दौरान मधुमेह की समस्या होने से रोकती है.
  7. यह शरीर के आकार में भी संतुलन बनाए रखने के लिए सहायक है.
  8. फिजियोथेरैपी पेट की मांसपेशियों को सुचारु बनाए रखने में भी प्रभावकारी है.

ध्यान दें

गर्भावस्था के दौरान व्यायाम अच्छा है, लेकिन जरूरी नहीं है कि हर तरह का व्यायाम हर किसी के लिए फायदेमंद हो. गर्भावस्था और किसी भी प्रकार की शारीरिक बीमारी जैसे उच्च रक्तचाप, हृदय संबंधी बीमारी, एक से ज्यादा बार गर्भपात होना, गर्भाशय के द्रव में होने वाले बदलाव आदि में व्यायाम करना जोखिम भरा काम है. इस स्थिति में अपनी इच्छा से कोई व्यायाम न करें. गर्भकाल के शुरुआत से ही स्त्रीरोग विशेषज्ञा के निर्देशानुसार ही व्यायाम करें.

– डा. अरुण कुमार पी.टी, चीफ फिजियोथेरैपिस्ट, लक्ष्मी हौस्पिटल, कोच्चि

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