क्या आप लंबे समय तक जमीन पर पालथी मार कर या फिर उकड़ू बैठे रहते हैं? क्या अपने कामकाज के कारण आप के घुटनों पर रोजाना ज्यादा जोर पड़ता है? यदि हां, तो आप को अन्य लोगों की तुलना में बहुत पहले औस्टियोआर्थ्राइटिस की परेशानी हो सकती है. हो सकता है कि 50 साल की उम्र तक आतेआते आप के घुटने चटक जाएं. हड्डियों और टिशूज के घिसने के कारण होने वाली औस्टियोआर्थ्राइटिस की समस्या उम्र बढ़ने के साथ बढ़ती जाती है. लेकिन आनुवंशिक कारणों, जोड़ों पर अधिक जोर पड़ने, शारीरिक निष्क्रियता या शरीर का अधिक वजन होने से भी यह समस्या बढ़ सकती है. घुटनों का औस्टियोआर्थ्राइटिस सब से आम समस्या है, क्योंकि अन्य जोड़ों के मुकाबले घुटनों के जोड़ों पर पूरी जिंदगी शरीर का सब से अधिक बोझ पड़ता है.

टहलने, सीढि़यां चढ़ने, बैठने आदि रोजाना की गतिविधियों का हमारे घुटनों की कार्यप्रणाली पर सीधा असर पड़ता है. घुटनों का आर्थ्राइटिस चलनेफिरने से लाचार कर सकता है, काम करने की क्षमता को नुकसान पहुंचा सकता है. यहां तक कि अपंग भी बना सकता है. हालांकि आनुवंशिक, कोई बड़ी चोट और उम्र जैसे कारक घुटनों का आर्थ्राइटिस बढ़ा सकते हैं. आइए, कुछ ऐसी लाइफस्टाइल प्रवृत्तियों पर नजर डालते हैं, जो आर्थ्राइटिस की समस्या का कारण बन सकती हैं:टौयलेट आज भी भारतीय ग्रामीण इलाकों में उकड़ू या फिर पालथी मार कर बैठने की परंपरा है. इसी तरह आ भी ज्यादातर ग्रामीण घरों में जमीन पर ही खाना बनाने और खाने का रिवाज है. इस के अलावा भारत के ज्यादातर लोग उकड़ू बैठने वाली टौयलेट सीट का ही इस्तेमाल करते हैं.

आज भी लाखों भारतीयों के घरों में शौचालय नहीं हैं. वे खेतखलिहान में उकड़ू बैठ कर ही शौच से निवृत्त होते हैं. अत: उकड़ू बैठने से घुटनों पर ज्यादा जोर पड़ता है. ज्यादा समय तक बैठने के कारण घुटनों के कार्टिलेज पर घिसाव बढ़ जाता है. यही कारण है कि शहरवासियों के मुकाबले ग्रामीणों में घुटनों के आर्थ्राइटिस के मामले बहुत ज्यादा हैं. 5.8% ग्रामीण युवा इस समस्या से ग्रस्त हैं.

कम शारीरिक श्रम

पश्चिमी देशों के लोग व्यायाम करने और साहसिक गतिविधियों में ज्यादा वक्त बिताते हैं जबकि भारतीय अभी भी ज्यादा वक्त टीवी के सामने बैठ कर ही बिताते हैं. पूरा दिन औफिस की कुरसी से चिपके रहने के बाद घर आ कर भी बिस्तर पर जाने से पहले टीवी देखने में ही समय बिताते हैं. नियमित व्यायाम करने की तरफ कतई ध्यान नहीं जाता, जबकि व्यायाम करने से कई बीमारियां इनसान से दूर रहतीं या दूर हो जाती हैं. आज की भागदौड़ वाली जिंदगी उन्हें निष्क्रिय लाइफस्टाइल की ओर प्रवृत्त कर रही है. औफिस जाने के लिए पैदल चलने या स्कूल जाने के लिए साइकिल चलाने जैसी परंपरा अब लगभग खत्म हो चुकी है जबकि इस तरह के शारीरिक श्रम से जोड़ों की मांसपेशियां और लिगामैंट्स मजबूत होते हैं. शोध बताते हैं कि सक्रिय जीवनशैली अपनाने वालों की तुलना में निष्क्रिय जीवनशैली वालों में घुटनों के आर्थ्राइटिस के मामले अधिक होते हैं.

अत्यधिक वजन बढ़ जाना

घुटने शरीर के सब से मजबूत जोड़ होते हैं, जो पूरे शरीर का बोझ सहते हैं. शरीर का वजन बढ़ने से घुटनों पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है, जिस से उन के घिसाव की समस्या बढ़ जाती है. आजकल की जीवनशैली के चलते एक तो लोग शारीरिक श्रम कम करते हैं और फिर अधिक तेलमसाले वाले खाद्यपदार्थ खाना ज्यादा पसंद करते हैं. ये दोनों कारक शरीर का वजन बढ़ा देते हैं. भारत में मोटापा एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है, क्योंकि इस का सीधा असर घुटनों की सेहत पर पड़ता है. 

– डा. राजीव के. शर्मा,  इंद्रप्रस्थ अपोलो हौस्पिटल, नई दिल्ली

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...