एलर्जी होने का खतरा सिर्फ छोटे बच्चों या फिर किशोरावस्था में ही होने का नहीं होता बल्कि वृद्धावस्था, खासकर 70 वर्ष से ऊपर की अवस्था, में भी पहली बार एलर्जी की शिकायत हो सकती है. अमेरिकन कालेज ऑफ एलर्जी, अस्थमा ऐंड इम्यूनोलौजी के एक अध्ययन में कहा गया है कि करीब 30 प्रतिशत वयस्कों, विशेषकर वृद्धों, में पहली बार नाक की एलर्जी होने का खतरा रहता है.
ऐसा होने के पीछे कई कारण हैं और एलर्जी वयस्कों में भी उतनी ही सामान्य है जितनी कि शिशुओं और बड़े होते बच्चों में. विशेषज्ञों की राय है कि ऐसा शारीरिक सक्रियता की कमी, कमजोर रोग प्रतिरोधकता, किसी बीमारी, मनोवैज्ञानिक वजह जैसे कि जीवनसाथी या किसी परिजन की मृत्यु, तनाव और चिंता आदि के चलते हो सकता है.
जाहिर है बुजुर्गों को ऐसे शारीरिक व मानसिक लक्षणों का ज्यादा सामना करना पड़ता है. यही वजह है कि वृद्धों को एलर्जी की शिकायत अपेक्षाकृत ज्यादा होती है. कई बार यह भी देखा गया है कि जैसेजैसे आयु बढ़ती है शरीर में भोजन की पहचान करने की क्षमता क्षीण होने लगती है. ऐसे में, शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली सुपाच्य भोजन और विषाक्त भोजन में भेद नहीं कर पाती और अच्छे भोजन के पहुंचते ही खतरे का संकेत दे देती है, जिस में एलर्जी जैसी प्रतिक्रिया भी एक है.
वृद्धों में एलर्जी की पहचान
बच्चों की तरह ही वयस्कों और वृद्धों में भी एलर्जी के सामान्य लक्षण नजर आते हैं जैसे कि नाक से द्रव बहने लगना, आंखों में जलन होना, छींकना और आंखें लाल हो जाना आदि. कुछ लोगों में मलत्याग के समय जलन, पेटदर्द, उलटी की इच्छा, चक्कर आना, सिरदर्द, सांस लेने में दिक्कत और नाक के जाम होने जैसे लक्षण भी हो सकते हैं.
भोजन संबंधी एलर्जी : वृद्धों में सामान्यतया कुछ खास खाद्य पदार्थों, जैसे शैलफिश, पोल्ट्री अंडों और मूंगफली आदि से एलर्जी पाई जाती है. ऐसा इसलिए, क्योंकि वृद्धावस्था में शरीर कुछ विशेष भोज्य पदार्थों में भेद नहीं कर पाता और श्वेत रक्त कणिकाओं को एकत्रित होने का संकेत दे बैठता है जिस से एलर्जी की समस्या उत्पन्न हो जाती है.
नासाशोथ : इस अवस्था में वृद्धों में लगातार नाक बहने लगती है. ऐसा श्वसन प्रणाली के ऊपरी हिस्से में संक्रमण होने, जुकाम होने, साइनस होने, किसी रसायन की मौजूदगी या हवा में तैरते प्रदूषकों के कारण हो सकता है. मौसम बदलने पर यह समस्या बढ़ जाती है.
अस्थमा : अकसर देखा गया है कि अधिक उम्र वाले लोग प्रदूषण, धूल और परागकणों के प्रति थोड़े संवेदनशील होते हैं. इन पदार्थों के संपर्क में आने पर इन में से कई को अस्थमा और सांस की ऐसी कुछ तकलीफें होने लगती हैं.
ताप एलर्जी : कम प्रतिरोधक क्षमता और कमजोर शरीर के चलते वृद्धों में ताप से जुड़ी समस्याएं पैदा हो जाती हैं, जैसे कि हीट स्ट्रोक या आघात. वृद्धों को जल्दी थकान, डिहाइड्रेशन या शरीर में पानी की कमी हो जाती है जो एलर्जी को जन्म दे देती है. उम्र बढ़ने के साथसाथ संवेदनशीलता अत्यधिक बढ़ जाती है और ऐसे लोगों को त्वचा की एलर्जी हो जाती है.
एलर्जी से करें मुकाबला
अकसर ऐसा देखने में आया है कि बच्चों को कोई तकलीफ होने पर तत्काल चिकित्सा उपलब्ध करा दी जाती है, जबकि वृद्धों के मामले में अकसर मर्ज पकड़ में नहीं आता और उन का गलत इलाज होने लगता है. कभी-कभी तो चिकित्सक भी उन की एलर्जी के लक्षणों की अनदेखी कर जाते हैं, इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि वृद्धों को एलर्जी से निबटना सिखाया जाए और उन के लक्षणों को देख कर जल्दी से जल्दी उन्हें चिकित्सा उपलब्ध कराई जाए.
– उन के चिकित्सा परीक्षण नियमित तौर पर होते रहने चाहिए, खासतौर पर एलर्जी का कोई लक्षण सामने आने पर.
– उनकी एलर्जी को समझने के लिए स्क्रैच टैस्ट या एक रक्त परीक्षण सहायक हो सकता है.
– यह भी अत्यावश्यक है कि वातावरण और घर की साफसफाई रखी जाए. घर में परागकणों या प्रदूषकों के प्रवेश के रास्ते बंद किए जाएं. एलर्जी कारक तत्त्वों को घर के वातावरण से पूरी
तरह से हटा देना एक अच्छा उपाय हो सकता है.
– हाइपोएलर्जिक मैटीरियल और फर्नीचर का प्रयोग कर के भी वृद्धजनों की एलर्जी की समस्या को कम किया जा सकता है.
– उम्र बढ़ने के साथ किस तरह की एलर्जी परेशान करेगी, यह पता लगाना तो मुश्किल है लेकिन बुजुर्गों को एलर्जी से बचाने के लिए एलर्जीकारक तत्त्वों को काबू में रख ही सकते हैं.
– एलर्जी पैदा करने वाले तत्त्वों की जैसे ही पहचान होती जाए, उन्हें वृद्धों से दूर रखा जाए. छोटे से छोटे लक्षण पर गौर कर के वृद्धों को एलर्जी की समस्या से बचाया जा सकता है.
(लेखिका पोर्टिया मैडिकल में एसोसिएट डायरैक्टर हैं.)