मोटापा विश्व के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. लोगों के मोटापे की समस्या जलवायु परिवर्तन की समस्या से कम गंभीर नहीं है. कहने को तो यह समस्या अभी अपने विस्तार से काफी पीछे है लेकिन इस के गंभीर रूप धारण करने में ज्यादा समय नहीं रह गया है. क्योंकि विश्व भर में 50% से भी ज्यादा लोग सामान्य से अधिक वजन की समस्या से जूझ रहे हैं. लेकिन सामान्य से अधिक वजन को मोटापे की श्रेणी से अलग रखा गया है. यदि बौडी मास इंडेक्स (बीएमआई) 18.5 से 25 के बीच है तो इस मात्रा को स्वस्थ माना जाता है, लेकिन 25 से ऊपर बीएमआई को सामान्य से अधिक व 30 से अधिक को मोटापे की निशानी माना जाता है. यों तो बीएमआई के आंकने का स्तर सभी देशों में अलग है, लेकिन मानक के तौर पर इसी इंडेक्स को तवज्जो दिया जा सकता है. पुरुषों में 40 इंच से ज्यादा और महिलाओं में 35 इंच से ज्यादा मोटी कमर बीमारी का सबब है.
भारतीय भी पीछे नहीं
दुनिया भर में जितने लोग मोटापे की समस्याओं का सामना कर रहे हैं, उन में से फिलहाल भारतीय मूल के लोगों का लगभग एक चौथाई यानी 25% हिस्सा है. अगर यही रफ्तार जारी रही तो यह संख्या बढ़ कर 2020 में 40% हो जाएगी. विश्व स्वास्थ संगठन के अध्ययन में भी बताया गया है कि वजन बढ़ने का खतरा एशिया वालों में ज्यादा पाया गया है. वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसे कारणों का पता लगाने का दावा किया है कि भारतीय मूल के लोगों में मोटापे से संबंधित समस्याएं ज्यादा क्यों होती हैं. ऐसा पाया गया है कि भारतीय मूल के लोगों में एक ऐसा जीन होता है, जो कमर के आसपास वजन बढ़ाने की वजह बनता है. यह जीन एमसी4आर नामक जीन के पास स्थित रहता है और इस जीन को प्रभावित भी करता है. एमसी4आर नामक यह जीन शरीर में ऊर्जा के स्तर को नियंत्रित करता है और निर्धारित करता है कि हम कितना और किस तरह का खाना खाते हैं. हमारे शरीर को कितनी ऊर्जा खर्च करने और कितनी इकट्ठा करने की जरूरत होती है. इसी प्रक्रिया में भारतीय मूल के कुछ बच्चों में भी मोटापा हो जाता है.
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