हाई ब्लडप्रैशर, डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारियों से ग्रस्त महिलाओं की गर्भावस्था अधिक जोखिम वाली मानी जाती है. इस दौरान ऐसी महिलाओं पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत होती है.
अधिक जोखिम वाली गर्भावस्था (हाई ब्लडप्रैशर, गर्भावस्था के दौरान ऐक्लैंसिया) और हार्ट अटैक व स्ट्रोक आने की आशंका बढ़ने (8 से 10) के बीच संबंध पाया गया है. ये आंकड़े सामान्य गर्भावस्था वाली महिलाओं की तुलना में जुटाए गए हैं.
जोखिमभरी गर्भावस्था वाली महिलाओं की पहचान की जानी चाहिए और नियमित तौर पर हाई ब्लडप्रैशर, कोलैस्ट्रौल व डायबिटीज के लिए उन की जांच की जानी चाहिए. अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के दिशानिर्देशों के अनुसार, अधिक जोखिम वाली गर्भावस्था के एक साल के भीतर इन महिलाओं की स्वास्थ्य जांच होनी चाहिए.
आयरन की कमी से हृदय रोग
एनीमिया में रक्त में औक्सीजन ले जाने वाली मौलिक्यूल हीमोग्लोबीन का स्तर कम हो जाता है और इस से सीधे हार्ट अटैक हो सकता है या फिर व्यक्ति की हृदय संबंधी बीमारियों की गंभीरता बढ़ सकती है. विटामिन बी1 की कमी के कारण होने वाले एनीमिया से हार्ट पर सीधे असर हो सकता है जिस से हार्ट फेल भी हो सकता है. हालांकि, तुरंत विटामिन बी1 की डोज देने से इस स्थिति को बदला जा सकता है.
एनीमिया आमतौर पर कंजैस्टिव हार्ट फेल्योर और कोरोनरी आर्टरी डिजीज जैसी हृदय संबंधी बीमारियों को बढ़ा देता है. हार्ट फेल होने या एंजाइना की स्थिति में अगर रोगी का हीमोग्लोबीन स्तर 7-8 ग्राम से कम है तो रोगी के लक्षण और प्रोग्नोसिस को ब्लड ट्रांसफ्यूजन के जरिए सुधारा जा सकता है.
हृदय संबंधी बीमारियों के ज्यादातर रोगी जो दवाएं लेते हैं उन में खून को पतला करने वाले तत्त्व होते हैं, जिस से खून की मात्रा कम हो सकती है. एनीमिक रोग में हृदय संबंधी बीमारी का पता चलने पर इन बातों को ध्यान में रखा जाना चाहिए.