स्वाइन फ्लू एच1एन1 इन्फ्लुएंजा के कारण मानव श्वसन प्रणाली को प्रभावित करने वाला संक्रमण है. एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि मोटे लोगों में स्वाइन फ्लू संक्रमण की संभावना अन्य लोगों की तुलना में लगभग तीन गुना ज्यादा होती है.

मोटापे से ग्रस्त लोगों में आमतौर पर पहले से ही मौजूद कुछ स्वास्थ्य समस्याएं जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप और फेफड़ों की बीमारी आदि होती हैं. संक्रमणों के कारण फेफड़ों पर अतिरिक्त भार और दबाव पड़ता है, जिसके कारण मोटे लोगों में स्वाइन फ्लू के संक्रमण का खतरा कई गुना बढ़ जाता है और उनका स्वाइन फ्लू के संक्रमण से लड़ना मुश्किल भी हो जाता है.

वह व्यक्ति जिसका बीएमआई 30 या उससे अधिक होता है, अत्यधिक मोटापे के शिकार की श्रेणी में आते है जबकि वहीं दूसरी तरफ जिसका बीएमआई 30 से थोड़ा कम होता है, उन्हे इस संक्रमण का खतरा भी मोटे लोगों के मुकाबले कम होता है. वहीं अत्यधिक मोटापे के शिकार लोगों में जिनका बीएमआई 40 से अधिक होता है, उनमें स्वाइन फ्लू के कारण मौत का भी खतरा हो सकता है.

मौसमी और महामारी इन्फ्लुएंजा वायरस संक्रमण से बचाव के लिए रोगियों को दवाइयों के अलावा डाक्टर स्वस्थ आहार, व्यायाम, योग के वैकल्पिक उपचार को अपनाने की सलाह देते हैं.

वर्तमान समय में इन्फ्लुएंजा के बचाव के लिए लगने वाले इंजेक्शन ही फ्लू से हमारी रक्षा करने का सर्वोत्तम उपाय है लेकिन फिर भी यह इंजेक्शन कई बार सभी मामलों में प्रभावी साबित नहीं होते. सामान्य व्यवहार में यह पाया गया है कि मोटापे से ग्रस्त लोगों को इन्फलुएंजा शाट्स देने के बावजूद उनमें संक्रमण से प्रभावित होने का खतरा पूरी तरह से खत्म नहीं होता क्योंकि उन्हें इन्फ्लुएंजा व फ्लू जैसी बीमारियां काफी हद तक प्रभावित करती हैं.

इस तथ्य के पीछे का कारण यह है कि मोटे लोगों की टी-कोशिकाएं ठीक से काम नहीं कर पाती और यही वो कोशिकाएं होती हैं जो इन्फ्लुएंजा के प्रभाव से हमारी सुरक्षा करती हैं. अलग-अलग अध्ययनों में यह बात साबित भी हो चुकी है कि मोटापे से ग्रस्त लोगों में टी कोशिकाएं इन्फ्लुएंजा इंजेक्शन पर विपरीत प्रतिक्रिया देती हैं.

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