70वर्षीय पंकज साहा कोलकाता के एक गरीब परिवार का है. आज से 10 साल पहले जब उस की हृदयगति धीमी पड़ गई, तो डाक्टर ने उसे पेसमेकर लगवाने की सलाह दी. उस ने परिवार वालों की मदद से पैसे इकट्ठा कर पेसमेकर लगवाया. 10 साल बाद जब पेसमेकर ने काम करना बंद कर दिया तो नया लगवाने के लिए उस के पास पैसे नहीं थे. वह बहुत परेशान था. तभी उसे किसी व्यक्ति ने मैडिकल बैंक की जानकारी दी. पंकज साहा वहां गया तो उसे वहां से मुफ्त में पेसमेकर मिल गया. अभी वह फिर से नौर्मल जिंदगी जी रहा है.

दरअसल, 1980 के शुरू में 24 वर्षीय डी. आशीष ने 4-5 लोकल छात्रों के साथ मिल कर कोलकाता के हाटखोजा में मैडिकल बैंक की स्थापना की. पहले इस बैंक में उन दवाओं को इकट्ठा किया जाता था. जिन्हें लोग बिना खाए फेंक देते थे. वे दवाएं इकट्ठा कर के उन मरीजों में बांटी जाने लगीं जो गरीब थे. इस काम में उन्हें लोगों की मदद काफी मिली जिस से गरीबों का इलाज संभव होने लगा. इस के साथसाथ उन्होंने चश्मे भी इकट्ठा करने शुरू किए. इन चश्मों में सही पावर डाल कर उन्हें जरूरतमंद गरीबों को दिया जाने लगा. ऐसे ही समाजसेवा करतेकरते उन की नजर पेसमेकर पर पड़ी.

मुफ्त इलाज

उन की संस्था में 50 डाक्टर भी अलगअलग क्षेत्र और विभाग के हैं. ये सभी डाक्टर गरीबों का मुफ्त में इलाज करते हैं. उन की मदद से पेसमेकर उन अमीर मरीजों से इकट््ठा किया जाने लगा, जो पेसमेकर लगाने के बाद अधिक दिनों तक जीवित नहीं रहते. उन की मृत्यु के बाद पेसमेकर को या तो पानी में बहा दिया जाता है या मिट्टी में गाड़ दिया जाता है.

डी. आशीष ने इस काम के लिए श्मशान, अस्पताल आदि सभी स्थानों से संपर्क किया और अब जब भी ऐसी डैडबौडी श्मशान आती है, तो वहां के लोग उन्हें सूचित करते हैं. इस के अलावा अस्पतालों में भी मृत व्यक्ति के परिवारजनों को समझा कर डाक्टर उस का पेसमेकर निकाल लेते हैं और डी. आशीष को दे देते हैं.

डी. आशीष ऐसे पेसमेकर्स की जांच करा उन्हें जरूरतमंदों को देते हैं. अभी तक उन बैंक में करीब 600 पेसमेकर आए हैं, जिन में से 200 लोगों को लग चुके हैं. इसे लगवाने वाले लोग अधिकतर 24 परगना, बीरभूम, बांकुड़ा, हावड़ा, हुगली और कोलकाता के हैं.

डाक्टरों का सहयोग

इसे लगवाने से पहले मरीज को अपनी आर्थिक कमजोरी का प्रमाणपत्र किसी डाक्टर, पंचायत, प्रमुख या जनप्रतिनिधि से लिखवा कर मैडिकल बैंक को देना पड़ता है. इस के बाद मैडिकल बैंक उसे पेसमेकर मुफ्त में देता है. इसे लगवाने में लगने वाले खर्चे को भी मैडिकल बैंक स्पौंसर करवाने की कोशिश करता है, जो 10 से 12 हजार होता है.

डी. आशीष दिल्ली, झारखंड, असम और बिहार में मैडिकल बैंक खोलने की योजना बना रहे हैं. मुंबई के ग्लोबल हौस्पिटल के कार्डियोलौजिस्ट डा. प्रवीण कुलकर्णी कहते हैं कि इस अभियान की हर प्रदेश में होने की जरूरत है, क्योंकि एक पेसमेकर का मूल्य क्व60 से 70 हजार होता है. इसे लगवाने की फीस मिला कर इस पर करीब 1 लाख का खर्चा आता है, जो गरीब व्यक्ति नहीं कर सकता.

सरकार भी इस दिशा में कोई काम नहीं करती. मुंबई में के ई.एम. में ऐसा बैंक खोला गया था पर उपयुक्त व्यवस्था न होने की वजह से वह बंद पड़ा है. डा. कुलकर्णी कहते हैं कि मीडिया और एनजीओ को भी इस दिशा में काम करना चाहिए, ताकि पेसमेकर देने वाले और लेने वाले दोनों आपस में जुड़ सकें.

कोलकाता का मैडिकल बैंक पेसमेकर सेवा के अलावा वरिष्ठ नागरिकों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवा भी मुहैया करवाता है और थैलिसीमिया और हीमोफीलिया से पीडि़त गरीब बच्चों के लिए ब्लड की व्यवस्था करता है.

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