डेली रूटीन में दालचावल खा कर जब व्यक्ति ऊब जाता है तब रुख करता है कुछ नए स्वादिष्ठ व्यंजनों की ओर, जिस में कुछ दिनों पहले तक सब से अधिक पौपुलर मैगी नूडल्स रहा है. वह कम दाम में जल्दी पकने वाला बेहतरीन औप्शन माना जाता रहा है, जिसे बच्चे से ले कर वयस्क तक सभी खाना पसंद करते थे. लेकिन मैगी में लैड (सीसा) और मोनो सोडियम ग्लूटामेट (एमएसजी) तय मात्रा से ज्यादा मिलने पर देश भर में हंगामा मचा. जबकि आजकल हर शहर, गांव व कसबे में ठेलों, रैस्टोरैंट और होटलों में बनने वाले व्यंजनों में एमएसजी का खूब प्रयोग होता है और शादीब्याह हो या पार्टी, हर जगह खाने में कैटरर्स मोनो सोडियम ग्लूटामेट मिला कर खाने को स्वादिष्ठ बनाते हैं. लेकिन नूडल्स पर हुए हंगामे ने इस बात को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि आखिर मोनो सोडियम ग्लूटामेट हमारे खाने में कितना जरूरी है.

स्वाद बढ़ाए एमएसजी

मोनो सोडियम ग्लूटामेट का प्रयोग आज से करीब 100 साल पहले से भोजन को जायकेदार बनाने के लिए होता आया है और इस लंबी अवधि में उस की भूमिका, लाभ और सुरक्षा को ले कर कई विस्तृत अध्ययन भी हुए हैं. अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय निकायों का मानना है कि एमएसजी स्वाद बढ़ाने वाले तत्त्व के रूप में मनुष्यों के लिए सुरक्षित है. इस का व्यापारिक नाम अजीनोमोटो, वेटसिन और एसेंट है. इस के बारे में हैदराबाद के इंडियन काउंसिल औफ मैडिकल रिसर्च, नैशनल इंस्टिट्यूट औफ न्यूट्रिशन के पूर्व निदेशक और न्यूट्रिशनिस्ट डा. बी. शशिकिरन कहते हैं कि पैकेटबंद खाद्यपदार्थों में मोनो सोडियम ग्लूटामेट (एमएसजी) की स्वीकार्य सीमा को ले कर काफी चर्चाएं हो चुकी हैं. भोजन का स्वाद बढ़ाने वाले इस तत्त्व को सब को समझना जरूरी है. दरअसल, ग्लूटामेट एक ऐसा अमीनो अम्ल है, जो नैसर्गिक तौर पर शरीर में मौजूद रहता है. मोनो सोडियम ग्लूटामेट प्राकृतिक तौर पर उत्पन्न होने वाले ग्लूटामेट का ही दूसरा रूप है और यह अधिकतर प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थों जैसे मांस, दूध, मशरूम और कुछ सब्जियों जैसे टमाटर, मटर और मक्के में पाया जाता है.

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