जब हम छोटे थे तो पहली अप्रैल को अपनी बचकानी हरकतों से अप्रैल फूल बनते और बनाने का मजा लेते. फूल बनने के बाद भी किस तरह से चेहरे पर मुसकान बिखरती थी, यह तो उसी वक्त का मजा था. इतना ही नहीं, कुछ बातें तो आज भी हमारे दिलोदिमाग में बसी रहती हैं और याद आने पर चेहरे पर फिर वही मुसकान ले आती हैं. कुछ ऐसी ही होती है हंसी...
अकसर कहा जाता है कि फलां बहुत ही हंसमुख इंसान है यानी हंसी व्यक्तित्व को एक पहचान देती है. हंसने-हंसाने से जीवन खुशहाल बन जाता है. यदि लोगों पर सर्वे किया जाए, तो शतप्रतिशत लोग ऐसे ही लोगों का साथ या दोस्ती चाहते हैं, जो जीवन के हर पल को हंस कर जीते हैं. आजकल के मशीनी युग में हंसी कहीं खो सी गई है, हंसी की महफिलें, गपगोष्ठियां और परिवारों की सम्मिलित हंसी की बैठकें अब लगभग गायब हो गई हैं.
वह पेट पकड़ कर हंसना और हंसते-हंसते आंखें छलकने का मंजर अब कहां देखने को मिलता है. बस, कंप्यूटर की प्रोग्रामिंग जैसी एक हलकी सी मुसकराहट आ कर रह जाती है. हर समाचारपत्र और पत्रिका में हंसने के लिए जोक्स और हंसी का कोना दिया होता है कि पढ़ने वाला उसे पढ़ कर हंस सके, लेकिन 100 में से 80 लोगों के पास तो समय ही नहीं होता उसे पढ़ने के लिए और 10 प्रतिशत लोग पढ़ तो लेते हैं पर गौर नहीं फरमाते और बाकी बचे 10 प्रतिशत लोग ही ऐसे होते हैं, जो उन चुटकुलों का आनंद ले कर हंस पाते हैं.
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