कार्डियोवैस्कुलर बीमारी और इससे जुड़े जोखिमों के बारे में जागरूकता बढ़ाने से आबादी के इसके संपर्क में आने की सम्भावना कम हो जाती है, जिससे कि सीवीडी से संबंधित मौतों की संख्या में भी कटोती होती है. जागरूकता के साथ हर बीमारी को रोका जा सकता है, सही समय पर पता लगने से उचित इलाज देकर लाखो ज़िन्दगीयाँ बचाई जा सकती हैं.

जब किसी इंसान को बीमारी के बारे में पता चलता है, तो वे उस बीमारी के निवारक के लिए' कदम उठाता है , जैसे स्क्रीनिंग और परीक्षणों के लिए सक्रिय रूप से जाना, जिससे कि बीमारी के हानिकारक प्रभावों को कम किया जा सके.  यह तभी संभव है जब वे रेगुलर हेल्थ चेकअप करवाए.

ऐसा अनुमान है कि भारत में होने वाली 63 प्रतिशत मौतें नॉन -कम्युनिकेबल डिज़ीज़  के कारण होती हैं, जिनमें से 27 प्रतिशत मौतों का कारण हृदय रोग होता है.  इसके अतिरिक्त, 40 से 69 वर्ष की आयु के लोगों में होने वाली 45% मौतों, सीवीडी के कारण होती  है. इस बीमारी के लक्षणों में उच्च रक्तचाप, सीने में दर्द, और सांस लेने में कठिनाई शामिल है.  भारत में दिल के दौरे की घटनाएं इतनी खतरनाक दर पर हैं कि जागरूकता पैदा करना आवश्यक है. सीवीडी के लिए शारीरिक गतिहीन और अस्वस्थ जीवन शैली प्रमुख योगदानकर्ता हैं.  भारत में सीवीडी के मामले अस्वास्थ्य भोजन के सेवन, धूम्रपान और शराब पीने जैसे कारणों से भी बढ़ रहे हैं. इसके अलावा, COIVD-19 ने  सीवीडी के जोखिम को और तीव्र गति से बड़ा दिया हैं.

डॉ अंबू पांडियन, चिकित्सा सलाहकार, अगत्सा इस  खतरनाक बीमारी के बारे में जागरूकता फ़ैलाने के कुछ तरीके साझा कर रहे हैं जिनसे  विश्वभर में लाखों लोगों की जान बच सकती हैं.

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