खून की थोड़ी सी भी कमी व्यक्ति की कार्यक्षमता पर खासा प्रभाव डालती है और रोग की जितनी गंभीर स्थिति होती है उसी अनुपात में मरीज की कार्यक्षमता भी घट जाती है.  प्रयोगों द्वारा यह पता चला है कि रक्त में केवल 1.5 ग्राम हीमोग्लोबिन कम होने से रोगी की शारीरिक श्रम करने की शक्ति काफी घट जाती है.

कार्यक्षमता में कमी

खून की कमी जिसे अंगरेजी में एनीमिया कहते हैं, खून में लाल रक्त कणिकाओं की कमी के कारण होती है. कणिकाओं के एक महत्त्वपूर्ण घटक हीमोग्लोबिन की मात्रा भी इस स्थिति में कम हो जाती है. हीमोग्लोबिन लौह तत्त्व को मिला कर बना एक जटिल यौगिक होता है और इसी के कारण रक्त और रक्त कणिकाओं का रंग लाल रहता है.

हीमोग्लोबिन रक्त द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों को आक्सीजन पहुंचाने का खास कार्य करता है लेकिन खून में जब इस की मात्रा कम हो जाती है तो शरीर के विभिन्न अंगों को आक्सीजन भी कम मिलती है. इस कारण जैविक आक्सीकरण की क्रिया घट जाने से ऊर्जा भी कम उत्पन्न हो पाती है. यही वजह है कि रोगी की शारीरिक श्रम करने की क्षमता घट जाती है और वह जरा सा शारीरिक श्रम करने के बाद हांफने लगता है.

एनीमिया और कुपोषण

आंतों द्वारा भोजन को अवशोषित करने की शक्ति का प्रमुख कारण कुपोषण अथवा अल्प पोषण है. कुपोषण के कारण ही शरीर को पर्याप्त मात्रा में लौह तत्त्व अथवा विटामिन बी-12 और फौलिक एसिड की मात्रा नहीं मिल पाती और वह खून की कमी का शिकार हो जाता है. हमारे यहां लौह तत्त्व की कमी के कारण होने वाली रक्ताल्पता सामान्य है. सर्वेक्षणों के अनुसार 56.8 प्रतिशत गर्भवती स्त्रियां और 35.6 प्रतिशत अन्य युवा स्त्रियों के शरीर में लौह तत्त्व की मात्रा कम होने के कारण खून की कमी पाई जाती है. भारत में 20 से 50 प्रतिशत स्त्रियों में फौलिक एसिड की कमी भी पाई जाती है. रक्ताल्पता का एक प्रमुख कारण यह भी है.

खून की कमी के कुछ अन्य कारण भी हैं, जैसे, मलेरिया, पेट में कृमियों की शिकायत होना आदि. इस तरह से शरीर में खून की कमी बीमारी दूर होने पर स्वयं ठीक हो जाती है. कुछ दवाइयों जैसे क्लोरेफेनीकाल आदि को बगैर चिकित्सक के परामर्श के लंबे समय तक लेने से भी खून की कमी की स्थिति बन सकती है.

रक्त की कमी का दुष्प्रभाव मानसिक दशा पर भी पड़ता है. रोगी खून की कमी के चलते चिड़चिड़ा हो सकता है. उसे सिरदर्द की भी शिकायत रहती है. कभीकभी सीने में दर्द और हलका बुखार भी रह सकता है. अन्य लक्षण जैसे, नाखूनों, हथेलियों और चेहरे का सफेद होना एवं आखों की निचली पलक के अंदरूनी भाग की लालिमा घट जाना आदि भी मिलते हैं. खून की कमी के सही निदान के लिए इन लक्षणों के दिखाई देने पर रोगी को तुरंत चिकित्सक से संपर्क कर जांच करवानी चाहिए. आमतौर पर खून की जांचों में लाल रक्त कणिकाओं की खून में संख्या और हीमोग्लोबिन की मात्रा का पता करते हैं. एक स्वस्थ पुरुष में हीमोग्लोबिन की मात्रा 13.5 से 18 ग्राम प्रति डेसीलीटर और एक स्वस्थ स्त्री में 12 से 16 ग्राम प्रति डेसीलीटर होती है. हीमोग्लोबिन की मात्रा 10 ग्राम के आसपास होने पर उसे साधारण कमी की श्रेणी में रखते हैं और जब हीमोग्लोबिन 7 ग्राम प्रति डेसीलीटर के आसपास हो जाता है तो इसे गंभीर स्थिति माना जाता है.

यहां एक बात का उल्लेख करना जरूरी है कि कई बार खून की कमी शरीर में बगैर कोई लक्षण या परेशानी उत्पन्न किए भी हो जाती है, तब इस की पहचान केवल प्रयोगशाला में ही संभव हो पाती है. लेकिन आमतौर पर मिलने वाले लक्षणों जैसे थोड़े से श्रम पर थकान अथवा सांस फूलना, सिरदर्द आदि होने पर शीघ्र ही व्यक्ति को किसी अच्छे चिकित्सक को दिखाना चाहिए. गर्भवती माताओं एवं श्रमिकों को तो जरा सी शिकायत होने पर अपने हीमोग्लोबिन की जांच अवश्य करवा लेनी चाहिए. याद रखें खून की कमी का निदान जितनी शीघ्रता से होगा उस का इलाज भी उतना ही सरल होगा.

चिकित्सा

अब सवाल उठता है खून की कमी की समस्या को कैसे कम किया जाए तो इस से निबटने का एक प्रमुख तरीका यह है कि लोग अपने खानपान की आदतें बदलें और संतुलित आहार की ओर पर्याप्त ध्यान दें. वे प्रोटीन, विटामिन और आयरन युक्त आहार जैसे, दूध, अंडे, सोयाबीन, गुड़ पालक की भाजी एवं अन्य हरी सब्जियां तथा फल भरपूर मात्रा में खाएं. पेट में कीड़ों की शिकायत होने पर बच्चों को चिकित्सक के परामर्श पर शीघ्र दवाइयां दें. खून की कमी पैदा करने वाली बीमारियां जैसे मलेरिया आदि का इलाज भी अतिशीघ्र करवाएं. गर्भवती महिलाएं लौह और फालिक एसिड युक्त गोलियां तब तक लेती रहें जब तक उन के खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा पर्याप्त न हो जाए. खून की कमी से पीडि़त बच्चों को भी यही दवाइयां चिकित्सक की सलाह पर कम मात्रा में देनी चाहिए.

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