पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS) हार्मोन एक कॉमन और काम्प्लेक्स हार्मोनल डिसऑर्डर है, जो विश्व में करोडो महिलाओं को प्रभावित करती है. ये अधिकतर गायनोकोलोजिकल इश्यूज से जुडी हुई होती है. मसलन अनियमित माहवारी, इनफर्टिलिटी, ओवेरियन सिस्ट्स आदि, जो 8 से 13 प्रतिशत महिलाओं को होता है.
इस बारें में हॉर्मोन इंडिया, नोएडा के मैक्स सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल की कन्सल्टेंट एंडोक्रिनोलॉजिस्ट डॉ. प्रियंवदा त्यागी कहती है कि PCOS का दायरा सिर्फ स्त्री-रोग से जुड़ी समस्याओं तक सीमित नहीं होता है, बल्कि इससे अलग कुछ खास सेहत पर भी प्रभाव डाल सकता है, जैसे महिलाओं के मेटाबॉलिज्म, कार्डियोवैस्कुलर और मानसिक स्वास्थ्य आदि.
रिस्क फैक्टर
पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम का प्रभाव मेटाबोलिक स्वास्थ्य सबसे अधिक पड़ सकता है. उन्हें अक्सर इंसुलिन रेजिस्टेंस और टाइप-2 डायबिटीज होने की संभावना बनी रहती है. इंसुलिन रेजिस्टेंस तब होती है, जब बॉडी सेल्स का हर्मोन के प्रति संवेदनशीलता कम हो जाती है, जिससे खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है. इससे वजन बढ़ना, अनचाहे बालों का बढ़ना, गर्दन के पीछे की त्वचा का काला पड़ना (एसेंथोसिस), नींद में कमी और डायबिटीज जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं.
डायबिटीज की संभावना को रोकने के लिए लाइफस्टाइल में बदलाव करना पड़ता है, इससे इंसुलिन रेजिस्टेंस को नियंत्रित किया जा सकता है, जिसमें पौष्टिक आहार लेना और नियमित शारीरिक व्यायाम करना शामिल है. इसके अलावा, डिस्लिपिडेमिया की वजह से भी पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम की समस्या हो सकती है, क्योंकि डिस्लिपिडेमिया में खून में कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स का स्तर सामान्य से अधिक हो जाता है.
इसके आगे डॉक्टर त्यागी कहती है कि कई बार मेटाबॉलिक में होने वाली इस तरह की गड़बड़ी से कार्डियोवैस्कुलर रोगों का खतरा बढ़ जाता है, खासकर हाई ब्लड प्रेशर की समस्या अगर हो, तो हृदय रोग तथा स्ट्रोक की संभावना बढ़ सकती है. PCOS से पीड़ित महिलाओं को सेहत पर पूरा ध्यान देना बेहद जरुरी है. ऐसी महिलाओं को लॉन्ग टर्म कॉम्प्लिकेशन से बचने के लिए मेटाबोलिक पैरामीटर्स को नियंत्रित करते रहना चाहिए.