आज के समय में कैंसर के मरीजों कि तादाद लगतार बढ़ती जा रही है भारत में ही हर साल तकरीबन 14 लाख मरीज इस गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो रहे हैं जिससे निजात पाने के लिए वैज्ञानिक हर मुमकिन प्रयास कर रहे हैं ऐसा ही एक प्रयास है काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर (सीएआर) टी-सेल थेरेपी जोकि ब्लड कैंसर से पीड़ित मरीजों के लिए एक उम्मीद बन कर आई है. यह थेरेपी उन मरीजों के लिए है जिनका कीमो, सर्जरी जैसे ट्रीटमेंट के बाद भी कैंसर फिर से एक्टिव हो रहा है.
कब शुरू हुई
2017 में अमेरिका में इस थेरेपी को अनुमति मिली थी, जिसकी कीमत लगभग तीन से चार करोड़ के बीच में रखी गई लेकिन भारत में आईआईटी बॉम्बे के एक्सपर्टस और टाटा मेमोरियल सेंटर (टीएमसी) द्वारा यह 2018 में विकसित की गई. जिससे भारत में अब 40 से 45 लाख तक में मरीज को इलाज मोहिया कराया जा सकता है शुरुवात में पहले इसे मरीजों पर ट्रायल किया गया परिणाम अच्छे आने से अब दिल्ली के राजीव गाँधी कैंसर हॉस्पिटल, मैक्स, और फरीदाबाद के अमृता हॉस्पिटल में भी यह प्रक्रिया शुरू हो गई है.
क्या हैं प्रोसेस
इस थेरेपी में मरीज के टी-लिम्फोसाइट्स या टी-सेल्स को रक्त में से निकला जाता है और इन सेल्स को लैब में मशीनों में रखा जाता है जिससे ये सेल्स कैंसर के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं. इस थेरपी में कम से कम 2 हफ्ते लग जाते हैं इस दौरान मरीज को हॉस्पिटल में ही एडमिट रहना बेहतर होता है. बाद में इन्हें फिर से शरीर में डाल दिया जाता है फिर इन टी सेल्स को मरीज के ब्लड में वापिस डाल दिया जाता है. मरीज के शरीर में जाने के बाद कैंसर के साथ टी सेल्स अपनी लड़ाई लड़ते हैं और उन्हें अंदर ही अंदर खत्म करने लगते हैं.
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