जरा सी बारिश होते ही हमारा मन गरमगरम चाय के साथ तले व मसाला बुरके हुए पकौड़ों के लिए ललचा उठता है. नमकीन पकौड़ों पर बुरके मसाले का तीखापन जब चाय के मीठे से टकराता है, तो मीठी चाय भी तीखी, मगर फीकी लगने लगती है और हम बिना सोचेसमझे चाय का स्वाद बढ़ाने के लिए चाय में एक शुगर क्यूब या फिर 1 चम्मच चीनी और डाल देते हैं. यही नहीं, गरमी के मौसम में पता नहीं कितनी बार मीठीनमकीन मसालेदार शिकंजी पी लेते हैं. कोल्ड ड्रिंक और आइसक्रीम में तो जैसे हम सब की जान बसती है.
इस तरह हमें पता ही नहीं चलता कि वक्तबेवक्त खानेपीने की उठती तलब को शांत करने और अपनी जीभ का स्वाद बढ़ाने के लिए हम अनजाने में अपने खानपान में नमक, मिर्चमसालों और चीनी की मात्रा बेवजह ही बढ़ाते रहते हैं. चीनी, नमक और मसाले डालने से उस समय तो व्यंजन का स्वाद निश्चित रूप से कई गुना बढ़ जाता है, लेकिन इन के दुष्प्रभाव बाद में पता चलते हैं, जो बहुत ही कष्टप्रद होते हैं, क्योंकि ये गंभीर शारीरिक और मानसिक रोगों का कारण बनते हैं. वैसे शारीरिक और मानसिक विकास के लिए चीनी, नमक और मसालों का विशेष महत्त्व है. लेकिन एक सीमित मात्रा तक प्रयोग करने पर ही ये लाभ पहुंचाते हैं. इन का जरूरत से ज्यादा प्रयोग हमारे शरीर को फायदे के बजाय नुकसान पहुंचाता है. अध्ययन बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों से हमारे खानपान में चीनी, नमक और मसालों का सेवन कई गुना बढ़ा है.
आज हमारी दिनचर्या ही कुछ ऐसी हो गई है कि अपने खानपान में इन तीनों को कम करना सचमुच एक कठिन काम बन चुका है. इस का एक कारण डब्बाबंद खानपान है. 3-4 दशक पहले तक डब्बाबंद खानपान का चलन न के बराबर था, इसलिए समस्याएं इतनी नहीं थीं. दरअसल, डब्बाबंद खाने को लंबे समय तक सुरक्षित और फ्रैश रखने के लिए उस में सोडियम और चीनी अधिक मात्रा में डाली जाती है. पर आजकल डब्बाबंद खानपान का चलन जिस तरह से बढ़ा है, उसी का परिणाम हैं- उच्च रक्तचाप, अस्थमा, बढ़ता मोटापा और फैलती कमर जैसी परेशानियां.
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