Health Tips In Hindi : मुंबई के रहने वाले 35 वर्षीय रमेश को हमेशा खांसी और अस्थमा की शिकायत रहती थी। जांच करने पर पता चला कि उन्हें लंग्स फाइब्रोसिस हुआ है, जो कबूतरों के बीट से हुआ, क्योंकि रोज वे अपने बाइक पर पड़े बीट को साफ करते थे, जिस से उन के लंग्स में इन्फैक्शन हुआ और उन्हें कई सालों तक इलाज कराना पड़ा, आज वे ठीक हैं.

ऐसी कई बीमारियां हैं जो पक्षियों और जानवरों के मलमूत्रों से संबंधित होती हैं और जिन का पता हमें नहीं चल पाता। कबूतरों की बीट और पंखों से होने वाली बीमारी पहले से बढ़ी है. इसे देखते हुए महाराष्ट्र के ठाणे में नगर निगम के अधिकारियों ने कबूतरों को दाना खिलाने के खिलाफ चेतावनी दी है क्योंकि इस से फेफड़ों की बीमारी हाइपरसेंसिटिव निमोनिया होती है. यह एक ऐसी बीमारी है जो पक्षी की बीट और पंखों से फैलती है और फेफड़ों को नुकसान पहुंचाती है.

अधिकारियों ने जगहजगह पोस्टर भी लगा दिए हैं और चेतावनी दी है कि कबूतरों को दाना डालने वालों पर ₹500 का जुर्माना लगाया जाएगा.

लंग्स को खतरा

यदि आप भी उन लोगों में से हैं जो मानते हैं कि कबूतर सब से प्यारे पक्षी हैं और कोई नुकसान नहीं पहुंचाते और उन्हें दाना खिला कर पुण्य कमा रहे हैं तो ऐसा बिलकुल भी नहीं है. जानेअनजाने आप लंग्स की बड़ी बीमारी को बुला रहे हैं. आप को बता देते हैं कि कबूतर, विशेषरूप से उन के पंख और बीट बैक्टीरिया और वायरस के वाहक के रूप में काम करते हैं, जो आप के फेफड़ों को प्रभावित करते हैं और आप को बीमारी के खतरे में डाल सकते हैं.

इस बारे में मुंबई की कोकिलाबेन धीरूबाई अंबानी के प्लमनरी मैडिसीन ऐंड स्लीप मैडिसन के डा. (Col) एसपी राय कहते हैं कि मुंबई के हाईराइज बिल्डिंग्स में कबूतरों का निवास बहुत अधिक है, क्योंकि लोग वहां इन्हें दाना खिलाते रहते हैं और ये उस जगह को छोड़ कर नहीं जाते. इस से कई बार लोगों को सीरीयस लंग्स डिजीज हो जाते हैं, जिसे ऐलर्जिक निमोनिया या हाइपरसैंसिटिव निमोनिया कहते हैं. यह काफी सीरियस टाइप की लंग्स डिजीज होती है, जो हर व्यक्ति को नहीं होती, लेकिन हजार में 2 से 3 लोगों को हो जाती है, जो लंग्स फाइब्रोसिस की एक प्रकार है.

यह बहुत ही गंभीर होता है और आगे चल कर रेसपिरेटरी फैल्योर हो जाता है, तब पीड़ित व्यक्ति को औक्सिजन या वैंटिलेशन की जरूरत होती है और यहां तक कि लंग्स ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ सकती है.

पंखों से एलर्जी

देखा जाए तो किसी भी पक्षी के पंखों से एलर्जी ही इस तरीके की बीमारी को बढ़ाती है. इस के अलावा कबूतर के बीट सूखने का बाद हवा में मिल कर इस बीमारी को फैलाती है. इतना ही नहीं अस्थमा, सीओपीडी, ब्रोंकाइटिस आदि के मरीज को यह बीमारी ट्रिगर करता है और शरीर की इम्यूनिटी को कम करता है.

जानवरों से होती है एलर्जी

असल में सभी तरह के पैट्स से लोगों को अलगअलग एलर्जी होती है. उन्हें लंग्स की बीमारी हो जाती है और अस्थमा, छींक की समस्या, शरीर में दाने का होना आदि बढ़ जाते हैं. डस्ट माइट्स के अलावा पैट्स के द्वारा ऐलर्जी को भी कौमन एलरजैंस में माना जाता है, जिस में डौग्स, बिल्ली, तोता, बर्ड्स आदि कई तरह के जानवरों के साथसाथ पंख या रोए वाले पक्षी होते हैं, जिन्हें पालना सही नहीं होता.

ये जानवर प्राकृतिक रूप से अपनी खुराक खुद ही ढूंढ़ लेते हैं, इन्हें खिलाने की जरूरत नहीं पड़ती.
इस के आगे डाक्टर कहते हैं कि हमारे देश में लंग्स फाइब्रोसिस का अधिकतर कारण कबूतर से होने वाली बीमारी ही है. इस के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में भूसे की कन्नी से अधिकतर लंग्स फाइब्रोसिस होता है. मैं सभी से कहना चाहता हूं कि सोसाइटी में कबूतरों को दाना कभी न खिलाएं. लगातार उन के पंखों और बीट को इनहेल करने पर यह बीमारी हो सकती है. इस के इलाज में पहले लंग्स की कैपेसिटी की जांच करने के बाद उन्हें दवाइयां दी जाती हैं, क्योंकि यह रोगप्रतिरोधक क्षमता को कम करती है। अधिक बीमार होने पर स्टेरौइड का भी सहारा ले कर इसे कंट्रोल किया जाता है. इस का रिस्क सभी के लिए अधिक होता
है.

ध्यान रखने योग्य बातें

जहां कबूतर हों पीजन नेट लगाएं. जहां कबूतर बैठते हैं, उसे क्लीन रखें, आसपास खाना न दें. उन्हें भगाने की कोशिश करते रहें आदि.

चिड़ियों के अलावा मुंबई के छोटेछोटे घरों में लोग डौग्स और बिल्लियां भी पालते हैं। कम जगह में इन्हें पालना ठीक नहीं होता, उन्हें आसपास घूमने के लिए जगह जरूरी होता है. विदेशों में लोग डौग्स और कैट्स पालते हैं, लेकिन वहां जगह अधिक होती है और उन के रहने की अलग व्यवस्था होती है।
हमारे देश में ऐसी सुविधा नहीं है. डौग्स भी इंसान के साथ रहते हैं, जिस से घर पर रहने वालों को कई प्रकार की एलर्जी हो जाती है. इस से बचना जरूरी है. इतना ही नहीं, डौग्स के मलमूत्र भी कई बीमारियों को जन्म देते हैं.

जानवर हों या पक्षी, प्यारे अवश्य होते हैं, लेकिन इन्हें घरों में कैद करना ठीक नहीं. इन्हें अपने तरीके से आजाद रहने देने की जरूरत है. वे अपनी खुराक खुद ही खोज लेते हैं। इंसानों को उन्हें खिलाने की जरूरत नहीं होती. ये इंसानों से दूर रह कर काफी अच्छा जीवन व्यतीत कर सकते हैं, फिर चाहे जानवर हों या पक्षी, इन्हें पाल कर घर पर बीमारी को बुलाना एक जोखिम से बढ़ कर और कुछ भी नहीं हो सकता.

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