देश दुनिया में कैंसर की चपेट में अब सिर्फ वयस्क महिलापुरुष ही नहीं, बल्कि बच्चे भी आ रहे हैं. जागरूकता की कमी व कैंसर के लक्षणों को पहचानने में देरी व अनदेखी के चलते इस का निदान मुश्किल हो जाता है. जानिए कैसे पहचानें बचपन के कैंसर के लक्षण.

सभी गैरसंचारी रोगों (एनसीडी) में कैंसर शायद सब से ज्यादा गंभीर रोग है. आंकड़े बताते हैं कि आज हर 8 लोगों में से 1 को उस के जीवनकाल (0-74 वर्ष) में कैंसर होने की संभावना रहती है. इसी तरह, हर 9 महिलाओं में से 1 को उस के जीवनकाल (0-74 वर्ष) में कैंसर होने की संभावना रहती है. हालांकि, कई कारक हैं जो कैंसर के खतरे को बढ़ाते हैं. उन में जीवनशैली से जुड़ी बातें प्रमुख वजह हैं.

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हम यह मान सकते हैं कि कैंसर केवल वयस्कों को प्रभावित करता है, लेकिन भारत में और दुनियाभर में बड़ी संख्या में बच्चों में भी यह रोग दिखाई दे रहा है. जागरूकता की कमी और इस रोग की जांच में देरी से स्थिति और बिगड़ती जाती है. जोड़ों में दर्द, बुखार और सिरदर्द जैसे सामान्य लक्षणों की अनदेखी से कैंसर का निदान यानी इस की पहचान होने व फिर इलाज में देरी हो सकती है.

आंकड़ों के अनुसार, विभिन्न प्रकार के कैंसरों से पीडि़त लगभग 5 प्रतिशत रोगी 18 वर्ष से कम उम्र के हैं. हर साल देश में कैंसर के करीब 45 हजार ऐसे नए रोगी सामने आते हैं जिन की उम्र 18 वर्ष से कम है.

बचपन के कैंसर और इन के प्रकार

बच्चों का कैंसर वयस्कों से अलग होता है. सब से सामान्य अंतर तो यह है कि बच्चों में यह पूरी तरह से ठीक हो सकता है बशर्ते समय पर इस की पहचान कर ली जाए. बचपन के कैंसर के कुछ सामान्य प्रकार निम्न हैं-

मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के ट्यूमर : बचपन के कैंसर में इन की भागीदारी लगभग 26 प्रतिशत है और इन के विभिन्न प्रकार होते हैं. बच्चों में अधिकांश ब्रेन ट्यूमर मस्तिष्क के निचले हिस्से में शुरू होते हैं, जैसे सेरिबैलम या ब्रेन स्टेम. इन के लक्षणों में प्रमुख हैं- सिरदर्द, उलटी आना, नजर का धुंधलापन, चक्कर आना, दौरे, खड़े होने या चीजों को थामने में परेशानी आदि.

न्यूरोब्लास्टोमा : यह जल्दी शुरू होता है और बड़े हो रहे भू्रण की नर्व सैल्स में पनपता है. न्यूरोब्लास्टोमा बचपन के सभी कैंसरों का लगभग 6 प्रतिशत होता है और यह शिशुओं व छोटे बच्चों में विकसित होता है. यह ट्यूमर आमतौर पर पेट में सूजन के रूप में शुरू होता है और हड्डी का दर्द तथा बुखार पैदा कर सकता है.

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ल्यूकेमिया :  यह बोन मैरो और रक्त का कैंसर है, जिस की बच्चों के कैंसर में हिस्सेदारी लगभग 30 प्रतिशत है. ल्यूकेमिया के कुछ लक्षणों में हड्डी और जोड़ों में दर्द, थकान, कमजोरी, त्वचा में पीलापन, रक्तस्राव या चोट, बुखार और वजन घटना आदि शामिल हैं. तीव्र ल्यूकेमिया का जल्द से जल्द निदान और उपचार करना महत्त्वपूर्ण है वरना यह तेजी से बढ़ सकता है.

विल्म्स ट्यूमर :  यह नैफ्रोब्लास्टोमा भी कहलाता है. इस प्रकार का कैंसर एक या दोनों गुरदे में शुरू होता है. यह 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में आम है और पेट में सूजन या गांठ के रूप में प्रकट हो सकता है. अन्य लक्षणों में बुखार, दर्द, मतली या भूख न लगना आदि शामिल हैं.

लिंफोमा :  इस प्रकार का कैंसर लिंफोसाइट्स नामक प्रतिरक्षा प्रणाली कोशिकाओं में शुरू होता है. यह अस्थि मज्जा या बोन मैरो तथा अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है. कैंसर के स्थान पर निर्भर करते हुए इस के लक्षणों में प्रमुख हैं- वजन कम हो जाना, बुखार, पसीना, थकान और गरदन, बगल या गले में त्वचा के नीचे गांठ (सूजी हुई लिंफ नोड्स) आदि.

रैब्डोमायोसारकोमा :  यह कैंसर सिर, गरदन, पेट, पैल्विस, हाथ या पैर सहित कहीं भी हो सकता है. लक्षणों में दर्द, सूजन, (एक गांठ) या दोनों हो सकते हैं. बच्चों में 3 प्रतिशत कैंसर इसी श्रेणी के होते हैं. रैब्डोमायोसारकोमा सब से सामान्य प्रकार का नरम ऊतक सारकोमा है.

रेटिनोब्लास्टोमा :  यह बचपन के कैंसरों में लगभग 2 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है और आंखों में होता है. यह 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में आम है. जब बच्चे की आंखों में प्रकाश पड़ता है, तो पुतली लाल दिखाई देती है. इस प्रकार के कैंसर वाले बच्चों में आंख की पुतली सफेद या गुलाबी रंग की हो जाती है और आंख का एक फ्लैश फोटो लेने पर आंख में एक सफेद चमक देखी जा सकती है.

हड्डी का कैंसर (ओस्टियोसारकोमा एवं यूइंग सारकोमा सहित) :  यह कैंसर हड्डियों से शुरू होता है और बचपन के कैंसर मामलों में लगभग 3 प्रतिशत तक पाया जाता है.

जोखिम के कारण

बचपन के कैंसर के कारण अज्ञात होते हैं. उन में से बहुत से जैनेटिक म्यूटेशन के कारण हो सकते हैं. ये अनियंत्रित कोशिका वृद्घि और आखिरकार कैंसर का कारण बनते हैं. किसी एक विशेष कारक पर बात करना मुश्किल है क्योंकि बच्चों में कैंसर एक दुलर्भ स्थिति है. यह इसलिए भी है क्योंकि विकास के चरण के दौरान कोई बच्चा किस स्थिति से गुजरा होगा, यह सुनिश्चित करना कठिन है. बच्चों में लगभग 5 प्रतिशत कैंसर इनहेरिटेड म्यूटेशन के कारण होते हैं. ली-फ्राउमेनी सिंड्रोम, बेकविथ-वीडमान सिंड्रोम, फैनकोनी एनीमिया सिंड्रोम, नूनैन सिंड्रोम और वोन हिप्पल-लिंडाउ सिंड्रोम जैसे कुछ पारिवारिक सिंड्रोम से जुडे़ परिवर्तन बचपन के कैंसर का खतरा बढ़ाते हैं.

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बचपन के कैंसर का इलाज किया जा सकता है यदि इस का शीघ्र निदान किया जाता है और इलाज शुरू किया जाता है. यह एक बच्चे से दूसरे तक नहीं फैलता है. बच्चों में कैंसर का उपचार लंबा हो सकता है, इसलिए, घर में अतिरिक्त देखभाल और यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि उपचार का पूर्ण अनुशासन के साथ पालन किया जाए. इस के अतिरिक्त स्वच्छता और संतुलित पोषण भी महत्त्वपूर्ण है. एक बार उपचार पूरा हो जाने पर बच्चा किसी अन्य सामान्य बच्चे की तरह हो सकता है और फिर से स्कूल जाना व खेलना शुरू कर सकता है.

ल्यूकेमिया : इस कैंसर की जद में बच्चों के आने की संभावना ज्यादा रहती है.

कब हों सचेत

निम्न चेतावनी संकेतों को देखना महत्त्वपूर्ण है. यदि इन में से कोई भी लक्षण बारबार दिखाई देता है या लगातार बना रहता है, तो तुरंत डाक्टर से परामर्श करना चाहिए.

–      निरंतर दिख रहे लक्षणों के बारे में चिकित्सा सहायता प्राप्त करें.

–      आंखों में सफेद धब्बा, भेंगापन, दृष्टिहीनता या नेत्रगोलक में उभार पर गौर करें.

–      पेट और श्रोणि यानी पैल्विस, सिर, गरदन, टैस्टिस, ग्रंथियों आदि में गांठ पर गौर करें.

–      बुखार, वजन और भूख में कमी, थकान, एकाएक चोट या खून बहना भी एक लक्षण हो सकता है.

–      हड्डियों, जोड़ों, पीठ में दर्द और आसानी से फ्रैक्चर होने पर सचेत हो जाएं.

–      व्यवहार, संतुलन, चाल में परिवर्तन तथा सिरदर्द आदि भी जोखिम कारक हैं.

डा. विनोद ढाका (लेखक लाइब्रेट प्लेटफार्म में औंकोलौजिस्ट हैं)

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