जिस्म के भीतर रोग प्रतिरोधक क्षमता एक रक्षात्मक लड़ाकू सेना की तरह होती है. जब कोई दुश्मन बैक्टीरिया या वायरस जिस्म में घुसता है तो कोशिकाओं (सैल्स) की यह क्षमता यानी लड़ाकू सेना उससे लड़ती है और उसे कमजोर करके खत्म कर देती है.

दुश्मन बैक्टीरिया या वायरस या बीमारी से लड़ने वाली यह सेना कभीकभी जरूरत से ज्यादा सक्रिय होकर असंतुलित, या कह लें कंफ्यूज्ड, हो जाती है. और तब दुश्मन को खत्म करने की कोशिश में लगी होने के साथसाथ जिस्म को भी नुकसान पहुंचाने लगती है. यानी, कोशिकाओं की इस सेना को जिन कोशिकाओं की रक्षा करनी होती है, यह उन पर भी हमला बोल देती है. ऐसी अवस्था को 'साइटोकाइन स्टौर्म' कहते हैं और ऐसे मामलों को 'साइटोकाइन स्टौर्म सिंड्रोम' कहते हैं.

साइटोकाइन आमतौर पर जिस्म में मौजूद एक इम्यून प्रोटीन होता है जो बाहरी बीमारियों, वायरसों से उसकी रक्षा करता है. लेकिन कोरोना के मामले में इसमें गड़बड़ी भी देखी जा रही है.

बर्मिंघम स्थित अलाबामा यूनिवर्सिटी के डा. रैंडी क्रौन का कहना है कि साइटोकाइन एक तरह का प्रतिरोधक प्रोटीन होता है जो शरीर से संक्रमण और कैंसर जैसी बीमारियों को भगाने में मदद करता है, लेकिन अनियंत्रित होने पर यह व्यक्ति को काफी गंभीरूप से बीमार कर सकता है, जान भी ले सकता है.

अमेरिका के सैंटर फौर डिजीज कंट्रोल (सीडीसी) के अनुसार, अमेरिका में कोरोना के चलते मारे गए लोगों में से सबसे ज्यादा बुजुर्ग हैं जिनमें से 85 साल के ऊपर वायरस से मारे गए लोगों में से 27 फीसदी तक लोगों की मौत की वजह साइटोकाइन स्टौर्म सिंड्रोम ही था.

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