आपने अक्सर अपने घर में बड़ों को ये कहते सुना होगा कि ,”मैदे से बनी हुई चीज़ ज्यादा मत खाया करो वरना पेट खराब हो जायेगा”. इसके बावजूद आप हर दिन मैदे से बनी चीजों का सेवन करते हैं. पर क्या आप ये जानते है की उनके ऐसा कहने की वजह क्या है?
भारतीय रसोई में मैदा या रिफाइंड आटा एक लोकप्रिय सामग्री है. ये लगभग हर घरों में बहुत ही आसानी से मिल जाता है. इसके बगैर तो हम अपने फ़ास्ट फ़ूड या जंक फ़ूड की कल्पना भी नहीं कर सकते.
हम सभी ने मैदे से बनी चीज़ों जैसे नान, समोसे, बिस्कुट, ब्रेड ,पिज़्ज़ा , केक आदि को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया है. असल में बाजार में मौजूद 80 % बेकरी प्रोडक्ट मैदे से ही बनते है.
लेकिन क्या ऐसा करना सही है? यह वास्तव में हमारे शरीर को कैसे नुकसान पहुंचाता है?
पर मैदे से होने वाले नुकसान को जानने से पहले ये जानना बहुत जरूरी है कि मैदा बनता कैसे है?
शायद हममे से बहुत से लोग ये नहीं जानते की मैदा भी आटे की तरह गेंहू से बनता है. हो सकता है ये जानकार आपको लग रहा होगा की तब तो मैदा हमारे स्वास्थय के लिए नुकसानदायक नहीं है.पर नहीं ऐसा बिलकुल भी नहीं है.
दरअसल, ऐसा इसलिए है क्योंकि दोनों को बनाने का तरीका बहुत अलग होता है. जब आटा तैयार किया जाता है तो गेंहू की ऊपरी परत को हटाया नहीं जाता है. साथ ही आटे को थोड़ा दरदरा भी पीसा जाता है. ऐसा करने से आटे में फाइबर की मात्रा बरकरार रहती है और इससे आटे में फोलिक एसिड, विटमिन ई, विटमिन बी-6 और बी- कॉम्प्लेक्स जैसे विटमिन और मैग्नीशियम, मैग्नीज़, जिंक जैसे कई मिनरल्स बने रहते है. जो हमारी सेहत के लिए बहुत लाभकारी हैं.
जबकि मैदे के साथ ऐसा नहीं होता है. मैदा या Refined flour गेहूँ के दाने के भीतरी भाग से बने गेहूँ के आटे का महीन रूप है. गेहूं के दाने में रोगाणु, चोकर और एंडोस्पर्म जैसे तीन अलग-अलग तत्व होते हैं. गेहूं में प्रमुख पोषक तत्व और प्रोटीन रोगाणु और अनाज के चोकर भागों में रहते हैं. लेकिन, मैदे को गेहूं के दाने के एंडोस्पर्म भाग से तैयार किया जाता है. गेहूं के आटे के 97% rich फाइबर को अलग करने के बाद मैदा तैयार किया जाता है. मैदा बनाते वक्त गेंहू की ऊपरी परत को पूरी तरह से हटा दिया जाता है. इसके साथ ही इस गोल्डन परत के अंदर जो गेंहू का भाग होता है उसे इतना बारीक पीसा जाता है कि उसके सभी पोषक तत्व समाप्त हो जाते हैं जिसके फलस्वरूप इसमें प्रोटीन सहित कोई भी पोषक तत्व नहीं रह जाते है.
लेकिन ये प्रक्रिया सिर्फ यहीं तक नहीं रूकती .इसके बाद नंबर आता हा मैदे को सफ़ेद रंग और कोमलता देने का.इसके लिए मैदे को रिफाइनिंग प्रक्रिया और ब्लीचिंग प्रक्रिया से गुजरना होता है. इस प्रक्रिया में उपयोग किये जाने वाले रसायन ही मैदे को हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बनाते हैं.
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आइये जानते है उन जहरीले रसायनों के बारे में जो मैदे को हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बनाते है-
1-एलोक्सन (Alloxan) और बेंज़ोयल पेरोक्साइड
बेंज़ोयल पेरोक्साइड एक हानिकारक रसायन है जो दांतों को सफेद करने वाले उत्पादों और हेयर डाई में उपयोग करने के लिए डाला जाता है. लेकिन यहाँ पर मैदे को उसका विशिष्ट सफेद रंग देने के लिए इसका उपयोग एक ब्लीचिंग एजेंट के रूप में किया जाता है,जो वाकई हमारे स्वास्थय के लिए बहुत हानिकारक है.
इसके अलावा, मैदे को एक चिकनी बनावट और कोमलता प्रदान करने के लिए इसमें एक अन्य रसायन, एलोक्सन (Alloxan) भी जोड़ा जाता है. एक रिसर्च के अनुसार एलोक्सन, अग्न्याशय की बीटा कोशिकाओं को नष्ट कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप टाइप 2 मधुमेह होता है.
2. मिनरल आयल और अजीनोमोटो
मिनरल आयल डीजल, केरोसिन और पेट्रोलियम का स्पिन-ऑफ है. यह मैदा युक्त खाद्य पदार्थों में एक संरक्षक के रूप में उपयोग किया जाता है. इसके उपयोग से मैदे से बने प्रोडक्ट जल्दी खराब नहीं होते क्योंकि इसमें बैक्टीरिया जीवित नहीं रह सकते हैं. लेकिन इसमें मौजूद टॉक्सिक उत्पाद ,इसे हमारे लिए असुरक्षित बनाते है. अजीनोमोटो या एमएसजी (मोनोसोडियम ग्लूटामेट) पर चाइना और यूरोपियन देशो की सरकारों द्वारा किडनी ख़राब होने और कैंसर जैसी बीमारियों के संभावित खतरे के कारण बैन लगा दिया गया है.
3. मैदा में अन्य हानिकारक रसायन
कई मैदे से भरपूर खाद्य पदार्थों में भी संभावित रूप से खतरनाक रसायन जैसे बेंजोइक एसिड और सोडियम मेटा बाय-सल्फेट (एसएमबीएस) होते हैं जो विशेष रूप से बच्चों और गर्भवती महिलाओं में कई स्वास्थ्य जटिलताओं को जन्म दे सकते हैं.
अभी तक तो हमने जाना की मैदा कैसे बनता है ,चलिए अब जानते है मैदे की चीज़ों को खाने के नुक्सान-
1. मोटापे का खतरा
मैदे का ग्लाइसेमिक इंडेक्स (GI ) बहुत अधिक होता है, जिसके कारण आम खाद्य पदार्थों की तुलना में इसमें कैलोरी की मात्रा दोगुनी होती है. जब कैलोरी की मात्रा अधिक होती है, तो शरीर की कोशिकाओं को आवश्यकता से अधिक ग्लूकोज प्राप्त होता है, जो वसा के रूप में जमा हो जाता है, जिससे तेजी से वजन बढ़ता है.
2. दाँतों में कैविटी होने का डर-
हम अक्सर सोंचते है की हम तो ज्यादा मीठा खाते नहीं ,आखिर फिर हमारे दाँतों में कैविटी क्यों लग जाती है.तो मै आपको बता दूं की कैविटी सिर्फ मीठा खाने से ही नहीं बल्कि बहुत सारे जंक फ़ूड और स्टार्चयुक्त भोजन करने से भी होती है. जब हम सफेद ब्रेड, पिज्जा, पास्ता और बर्गर खाते है तो ये आसानी से दो दांतों के बीच की दरारों में फंस जाते है . माना की वे मीठे नहीं हैं लेकिन इन खाद्य पदार्थों में मौजूद स्टार्च जल्द ही सुगर में परिवर्तित होने लगते हैं क्योंकि हमारे मुंह में शुरू होने वाली Reducing Process लगभग तुरंत हो जाती है. और सुगर हमारे दांतों के लिए हानिकारक होती है,इससे हम अपने दाँतों का कैल्शियम खो देते है .जिसके फलस्वरूप उनमे कैविटी लग जाती है.और हम अपने दांतों की रंगत खो देते है.
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3- टाइप 2 डायबिटीज का खतरा-
मैदे से बने खाद्य पदार्थों के नियमित सेवन से ब्लड में ग्लूकोज का स्तर काफी बढ़ जाता है. क्योंकि इसमें बहुत ज्यादा हाई ग्लाइसेमिक इंडेक्स (GI ) होता है.
और ऊपर ये हम जान चुके है की मैदे की कोमलता और रंग को सुधारने के उपयोग किया जाने वाला रसायन एलोक्सन (Alloxan) रक्त में अग्नाशयी बीटा कोशिकाओं की एक बड़ी मात्रा को नष्ट कर देता है. अग्न्याशय का मुख्य काम मानव शरीर में शर्करा और ग्लूकोज स्तर को नियंत्रित करना होता है. इस प्रकार, एलोक्सन (Alloxan) का उपयोग रक्त कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है जो मधुमेह रोगियों को जन्म देता हैं.
4- पाचन में बाधा-
मैदा बहुत चिकना और महीन होता है, साथ ही इसमें डाइट्री फाइबर बिल्कुल नहीं होता है इसलिए इसे पचाना आसान नहीं होता. सही से पाचन न हो पाने के कारण इसका कुछ हिस्सा आंतों में ही चिपक जाता है और कई तरह की बीमारियों का कारण बन सकता है. इसके सेवन से अक्सर कब्ज की समस्या हो जाती है और पाचन तंत्र खराब होने का भी खतरा रहता है.
5- गठिया और हार्ट की बीमारी-
जब ब्लड शुगर बढ़ता है तो खून में ग्लूकोज़ जमने लगता है, जिससे कैटरैक्ट से ले कर गठिया और हार्ट की बीमारियां होने लगती हैं.
6-गर्भावस्था के दौरान मैदे के सेवन से बचे-
खाने कि कई चीज़ें मैदे की बनी होती है.गर्भावस्था के दौरान बिना सोचे-समझे इन चीज़ों को खाने से सिर्फ़ आपका वज़न बढेगा,पोषण नहीं.इसलिए इस दौरान इन चीज़ों से दूरी बनाये रखे ये न सिर्फ आपके लिए बल्कि आपके आने वाले शिशु के लिए भी हितकारी होगा.
7- हड्डियां हो जाती हैं कमजोर-
मैदा बनाते वक्त इसमें से प्रोटीन निकल जाता है और यह एसिडिक बन जाता है जो हड्डियों से कैल्शियम को खींच लेता है. इससे हड्डियां कमजोर हो जाती हैं. मैदे को नियमित खाते रहने से शरीर का इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है और बार बार बीमार होने की संभावना बढ़ने लगती है.
मैदे (Refined Flour) के विकल्प
अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए, मैदे के सेवन से बचना सबसे अच्छा है. यदि यह मुश्किल लगता है, तो इसके सेवन को जितना संभव हो उतना सीमित कर देना चाहिए. आप चाहे तो आप मैदे के स्थान पर पूरे गेहूं का आटा, बाजरे, ज्वार और मक्के का आटा रागी,चावल का आटा,बेसन और उड़द दाल का आटा आदि का उपयोग कर सकते हैं और अगर आप पूरी तरह से मैदा नहीं छोड़ पा रहे है तो आप मैदे से बनी कोई भी चीज़ बनाने से पहले इन आटे को मैदे में मिलाकर इसकी मात्र को कम कर सकते है. अब भी ऐसे कई नूडल्स और पास्ता निर्माता हैं जो सूजी का उपयोग करते हैं और मैदे से बचते हैं. ये अच्छे विकल्प हैं जिनका उपयोग स्वस्थ रहने के लिए किया जा सकता है.
दोस्तों एक चीज़ हमेशा याद रखें की हर व्यक्ति की असली दौलत उसकी सेहत होती है .ऐसे में जरूरी है की स्वास्थय का सही ख्याल रखा जाए.क्योंकि स्वाद से ज्यादा जरूरी होता है आपका स्वास्थ्य. इसलिए, स्वास्थ्य पर मैदे के हानिकारक प्रभावों को समझना, इसकी खपत को सीमित करना और स्वस्थ विकल्पों पर स्विच करना बहुत महत्वपूर्ण है.