पिछले दिनों आई ‘वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन’ की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के मानसिक समस्याओं से जूझ रहे देशों में भारत छठवे स्थान पर है, जहां एंग्जायटी, सीजोफ्रेनिया, डिप्रेशन, बाइपोलर डिसआर्डर के केसेस ज्यादा आ रहे हैं. आत्महत्या की दर बढ़ने के पीछे भी मानसिक स्थिति ही जिम्मेदार है. इसके पीछे की वजह है, डिप्रेशन और मेंटल हेल्थ जैसे मुद्दो को भारत जैसे देश में एक सोशल टैबू की तरह समझा जाता है, जहां लोग खुल कर बात करने में डरते और हिचकिचाते हैं. रिपोर्ट के अनुसार, कम से कम 6.5 प्रतिशत भारतीय गंभीर मानसिक स्थिति से गुजर रहे हैं, जिसके लिए इस विषय पर काम करने वाले डाक्टर्स और एक्सपर्ट के साथ-साथ जागरूकता की कमी जिम्मेदार है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि डिप्रेशन और मेंटल हेल्थ एक गंभीर मुद्दा है जो पूरी दुनिया को मानसिक तौर पर अपंग बना रहा है. गौरतलब है कि दुनिया में मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 10 अक्टूबर को ‘विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस’ मनाया जाता है. इस बार भी विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 'विश्व के बदलते परिदृश में वयस्क और मानसिक स्वास्थ्य' पर केंद्रित था.
क्या है डिप्रेशन
डिप्रेशन एक ऐसी मानसिक अवस्था है जहां एक व्यक्ति के विचार, व्यवहार, दिनचर्या और जीवनशैली में नकारात्मक ढंग से परिवर्तन आने लगता है. यह धीरे-धीरे व्यक्ति को अपने नियंत्रण में कर लेता है, जिसमें वह लम्बे समय तक दुखी या निराश रहने लगता है, जिन्दगी और काम काज में उसकी रूचि खत्म हो जाती है. इसके अलावा थकान, आत्महत्या का ख्याल आना, गुस्सा और चिड़चिड़ा होना, खाने और सोने में अचानक बदलाव, दिशाविहीन होना और हमेशा नकारात्मक विचार आने शुरू हो जाते हैं. ऐसे में डिप्रेशन, जिस तरह से आज के लाइफस्टाइल का हिस्सा बनता जा रहा है. उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि भविष्य में इसके परिणाम घातक हो सकती हैं.