6 माह तक बच्चे के संपूर्ण विकास के लिए मां का दूध ही सर्वोत्तम होता है, परंतु 6 माह पूरे करने पर उस के बौद्धिक व शारीरिक विकास के लिए संपूर्ण आहार की जरूरत होती है.
हम ने जब लखनऊ के बाल रोग विशेषज्ञ डा. आशीष माथुर से यह पूछा कि 6 माह बाद बच्चे को कौन सा आहार देना उत्तम होगा? तो उन का कहना था, ‘‘जब बच्चा अन्न ग्रहण करना शुरू करे, तो उसे पैक्ड फूड के बजाय मौसमी फल, दाल का पानी, सब्जियों का सूप, दलिया आदि पौष्टिक आहार दें. धीरे-धीरे इन की मात्रा में वृद्धि करती रहें.’’
मगर जानकारी और समय के अभाव में महिलाएं यह नहीं समझ पातीं कि ये सब बच्चों को कैसे दिया जाए. पर उन्हें यह जान लेना चाहिए कि शुरुआत में ही बच्चे सब कुछ नहीं खाने लगेंगे. उन्हें हर नए स्वाद का ज्ञान होने में कुछ समय लगता है, इसलिए उन्हें धैर्य रखना पड़ेगा. एक बार स्वाद का ज्ञान हो जाने पर बच्चा उसे खेलखेल में खुशी से खा लेगा. आगे चल कर अभिभावकों को यह शिकायत भी नहीं रहेगी कि हमारा बच्चा तो कुछ खाता ही नहीं.
कैसे खिलाएं फल
डा. आशीष माथुर कहते हैं कि बच्चे को सभी मौसमी फल दें. शुरू में बच्चे को कुछ ऐसे फल दिए जा सकते हैं, जो सरलता से मैश हो जाएं जैसे केला, पपीता, आम, खरबूजा आदि. इन्हें मिक्सी में ब्लैंड कर के या कद्दूकस कर सकती हैं. जब इन फलों को बच्चा आसानी से खाने लगे तो सेब, अमरूद व नाशपाती जैसे फलों को भी घिस कर दिया जा सकता है. चीकू, लीची, अंजीर या आलूबुखारे का छिलका उतार कर उन्हें हाथ से मैश कर के अथवा घिस कर दें. संतरा, अनार, तरबूज, अंगूर जैसे फलों का जूस हाथ से या मिक्सी से निकाल कर दें. ध्यान रखें कि सिट्रिक ऐसिड वाले फल जैसे संतरा, मौसंबी, आलूबुखारा, सेब, अनार आदि फलों को दूध पीने के घंटे भर बाद ही दें. एक बार में 2-3 फल मिला कर भी दे सकती हैं. कोशिश करें कि फल दोपहर 12 बजे से पहले खिला दें.
खाना कैसे खिलाएं
शुरू में बच्चे को दाल या चावल का पानी दे सकती हैं. लौकी, पालक व टमाटर आदि का सूप बना कर दे सकती हैं. इन में ऊपर थोड़ा घी या मक्खन डालें. जब बच्चा इन सब को खाने का आदी हो जाए. तो उसे पतली खिचड़ी या दाल में रोटी या पूरी की ऊपर की पतली परत को हाथ से मैश कर के दें. खिचड़ी में आलू तथा 2-3 प्रकार की मौसमी सब्जियां भी मिला सकती हैं. कुकर में 5-6 सीटियां लगा कर इन्हें अच्छी तरह गला लें. फिर हाथ से अच्छी तरह मैश कर लें. बच्चों को इस समय कैल्सियम के साथसाथ प्रोटीन व आयरन की भी सब से ज्यादा जरूरत होती है. इसे ध्यान में रख कर ही यह तय करें कि बच्चे को क्याक्या दिया जाना चाहिए. सोयाबीन व मशरूम प्रोटीन के सब से अच्छे स्रोत हैं. इन्हें मिक्सी में पीस कर खिचड़ी में मिला कर पकाया जा सकता है. सोयाबीन के चूर्ण का पैकेट किराने की दुकान में भी मिलता है. दलिए को भून कर पीस लें, फिर उसे दाल के साथ नमकीन या दूध के साथ मीठा बना कर दे सकती हैं.
ड्राईफ्रूट्स भी प्रोटीन व आयरन के अच्छे स्रोत हैं. सूखे मेवे को कड़ाही में भून लें, फिर मिक्सी में पीस लें. ठंडा कर के डब्बे में रख लें. मीठे दलिए में या हलवे में 2 छोटे चम्मच यह मिश्रण डाल सकती हैं. गरमी के मौसम में कस्टर्ड या पुडिंग जैसे मीठे व्यंजन भी बना सकती हैं.
ध्यान रखें पहले साल बच्चे के भोजन में नमक या चीनी का प्रयोग कम मात्रा में ही करें. जब बच्चा 1 साल का हो जाए, तो दूध या मीठे दलिए में शहद भी डाल सकती हैं. 1 साल तक बच्चे को शहद से इनफैक्शन होने का खतरा रहता है. खाने में दूध के अतिरिक्त अन्य कैल्सियम के स्रोत जैसे दही व पनीर आदि भी समयसमय पर दिए जाने चाहिए. घर में जमा दही देना उत्तम होगा.
कौन से पेयपदार्थ दें
जब बच्चा अन्न ग्रहण करना शुरू करता है, तो धीरेधीरे उसे पानी भी देना चाहिए. जैसेजैसे खाने की मात्रा बढ़ाएं वैसे-वैसे पानी की मात्रा भी बढ़ाती रहें. प्रतिदिन पानी उबाल कर उसे ठंडा कर के रख लें. बीचबीच में चम्मच से तथा थोड़ा बड़ा होने पर गिलास से पिलाती रहें. ताजे फलों के रस के अतिरिक्त बच्चे को गरमी के मौसम में नीबू पानी या नारियल पानी भी दे सकती हैं. सप्ताह में 1-2 बार नारियल पानी देने से बच्चे को पेट से संबंधित समस्याएं नहीं होंगी और साथ ही उस की इम्यूनिटी भी बढ़ेगी. सत्तू बढ़ती उम्र के बच्चों के लिए अत्यधिक पोषक है. जौ तथा चने के सत्तू को 2 छोटे चम्मच पानी में मिला कर उस में थोड़ा गुड़ डाल कर अच्छी तरह घोल लें. फिर बच्चे को पिलाएं.
अपनी नन्ही जान के संपूर्ण विकास के लिए दूध के साथसाथ उस के भोजन में प्रत्येक अनाज, विभिन्न दालें, ताजा मौसमी फल, सब्जियां व डेरी प्रोडक्ट्स शामिल करें. यदि मांसाहारी हैं, तो थोड़ाथोड़ा अंडा, मछली व चिकन आदि भी सम्मिलित करना सर्वश्रेष्ठ होगा. प्रतिदिन बच्चे के खानपान में यथासंभव परिवर्तन करती रहें.
ध्यान रखें कि बच्चे को दिन भर में ऊपर बताए गए 4-5 आहारों में से कोई न कोई आहार दें. कोशिश करें कि बच्चे के नाश्ते या खाने का समय लगभग वही रखें, जो आप के परिवार का हो. शुरू से ही ऐसा करने से धीरेधीरे बच्चा खुद भी परिवार के टाइमटेबल को अपना लेगा.