इम्‍युनाइज़ेशन या टीकाकरण आपके बच्‍चों की सेहत के सबसे किफायती तौर-तरीकों में से है, और सिर्फ बच्‍चों के मामले में ही नहीं, बल्कि कई वयस्‍कों, गर्भवती माताओं तथा बुजुर्गों के मामले में भी यह उपयोगी साबित होता है. टीकाकरण के दौरान, शिशु को टीका या खुराक पिलायी जाती है जो वास्‍तव में, निष्क्रिय वायरस या बैक्‍टीरिया होते हैं. इन निष्क्रिय रोगाणुओं के रोग पैदा करने की क्षमता काफी हद तक कम हो चुकी होती है. इसलिए, जब ये आपके शरीर में पहुंचते हैं तो प्रतिक्रियास्‍वरूप शरीर में एंटीबॉडीज़ बनती हैं जो शिशु को रोग से बचाती हैं। वैक्‍सीनेशन इसी तरीके से काम करता है.

जीवन के शुरुआती महीनों में नवजात कई तरह के रोगों का शिकार बन सकता है. हालांकि माताओं को जो रोग पहले हो चुके होते हैं, उनकी एंटीबॉडीज़ गर्भावस्‍था के दौरान शिशु के शरीर में पहले ही प्रविष्‍ट हो चुकी होती हैं. इसलिए शुरुआती कुछ हफ्तों तक शिशु स्‍वस्‍थ रहता है लेकिन इसके बाद, शिशु का अपना खुद का सिस्‍टम रोगों से लड़ने के लिए तैयार होना चाहिए. वैक्‍सीनेशन इस सिस्‍टम को मजबूती देता है और शिशु का अनेक रोगों से बचाव करता है.

कई रोगों से बचाव

शिशु को पैदा होने के समय, अस्‍पताल से छुट्टी देने से पहले ही बीसीजी, हेपेटाइटिस बी और पोलियो की खुराक दी जाती है. इसके बाद, 6 हफ्ते की उम्र से शिशु को डीपीटी की 3 खुराक, निमोनियो वैक्‍सीन, रोटोवायरस, मीज़ल्‍स टाइफायड जैसी वैक्‍सीनें दी जाती हैं. साथ ही, पहले साल के बाद इनकी बूस्‍टर खुराक भी दी जाती है। इनके अलावा, हेपेटाइटिस ए, चिकन पॉक्‍स, मेनिंगोकोकल, सर्वाइकल कैंसर आदि की अतिरिक्‍त वैक्‍सीनें भी निजी क्षेत्र में उपलब्‍ध करायी गई हैं.

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