मां का दूध शुरुआत से ही इम्यूनिटी को बूस्ट करने वाली ऐंटीबौडीज से भरपूर होता है. कोलोस्ट्रम, जो ब्रैस्ट मिल्क की पहली स्टेज कहा जाता है, ऐंटीबौडीज से भरा होता है. यह गाढ़ा व पीले रंग का होने के साथसाथ प्रौटीन, फैट सोलुबल विटामिंस, मिनरल्स व इम्मुनोग्लोबुलिंस में रिच होता है. यह बच्चे की नाक, गले व डाइजेशन सिस्टम पर प्रोटैक्टिव लेयर बनाने का काम करता है, जिसे अपने बच्चे की इम्यूनिटी को बूस्ट करने के लिए जरूर देना चाहिए.

फौर्मूला मिल्क में ब्रैस्ट मिल्क की तरह पर्यावरण विशिष्ट ऐंटीबौडीज नहीं होती हैं और न ही इस में शिशु की नाक, गले व आंतों के मार्ग को ढकने के लिए ऐंटीबौडीज यानी फौर्मूला मिल्क बेबी को कोई खास प्रोटैक्शन देने का काम नहीं करता है. इसलिए शिशु के लिए मां का दूध ही है सब से उत्तम व हैल्दी.

वर्ल्ड ब्रैस्ट फीडिंग वीक

वर्ल्ड ब्रैस्ट फीडिंग वीक दुनियाभर में 1 से 7 अगस्त तक मनाया जाता है, जिस का उद्देश्य ब्रैस्ट फीडिंग के प्रति मां व परिवार में जागरूकता पैदा करना होता है. साथ ही मां के पहले गाढ़े दूध के प्रति भ्रांतियों को भी दूर किया जाता है. इस में बताया जाता है कि जन्म के पहले घंटे से ही शिशु को मां का दूध दिया जाना चाहिए क्योंकि यह बच्चे के लिए संपूर्ण आहार होता है.

मां को दूध पिलाने में उस के परिवार, डाक्टर, नर्स को भी अहम योगदान देना चाहिए क्योंकि ब्रैस्ट फीड न सिर्फ बच्चे को बल्कि मां को भी बीमारियों से बचाने में मदद करता है. रिसर्च के अनुसार अब ब्रैस्ट फीडिंग के प्रति महिलाएं भी इस के महत्त्व को समझते हुए जागरूक हो रही हैं.

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ब्रैस्ट मिल्क के और भी हैं फायदे

वजन को बढ़ाने में मददगार ब्रैस्ट मिल्क हैल्दी वेट को प्रोमोट करने के साथसाथ मोटापे के खतरे को भी कम कर देता है. अनेक रिसर्च में यह साबित हुआ है कि फौर्मूला मिल्क पीने वाले शिशुओं की तुलना में ब्रैस्ट फीड करने वाले शिशुओं में मोटापे का खतरा 15 से 30% कम हो जाता है. यह विभिन्न गट बैक्टीरिया के विकास के कारण होता है.

स्तनपान करने वाले शिशुओं में बड़ी मात्रा में गट बैक्टीरिया देखे जाते हैं, जो फैट स्टोरेज को प्रभावित करने का काम करते हैं. साथ ही ब्रेस्ट फीड करने वाले शिशुओं में लैप्टिन की मात्रा बहुत अधिक होती है. यह ऐसा प्रमुख हारमोन होता है, जो भूख व वसा के भंडारण को नियंत्रित करने का काम करता है.

ज्यादा स्मार्ट

हम जितनी हैल्दी व न्यूट्रिशन से भरपूर डाइट लेते हैं, तो उस से हमारे संपूर्ण विकास में मदद मिलने के साथसाथ हमारा माइंड भी ज्यादा तेज व ऐक्टिव बनता है. ठीक यही बात ब्रैस्ट मिल्क के संदर्भ में भी लागू होती है.

जिन भी शिशुओं को शुरुआती 6 महीने भरपूर स्तनपान करवाया जाता है उन बच्चों का मस्तिष्क विकास बहुत तेजी से होता है. उन की उम्र के साथसाथ सोचनेसमझने की क्षमता का भी तेजी से विकास होता है क्योंकि ब्रैस्ट मिल्क में पाए जाने वाले न्यूट्रिएंट्स जैसे डोकोसा इनोस ऐसिड, आराछिडोनिक ऐसिड, ओमेगा 3 व 6 फैटी एसिड्स शिशु के मस्तिष्क विकास में मदद करते हैं. इस से बच्चे की लर्निंग ऐबिलिटी में भी सुधार होता है. ऐसे बच्चों का आईक्यू लैवल भी अच्छाखासा देखा गया है.

बीमारियों से प्रोटैक्शन

जब बच्चा इस दुनिया में आता है तो पेरैंट्स उसे हर तरह से सुरक्षा देने का काम करते हैं ताकि उन का बच्चा बीमारियों से बचा रहे. लेकिन इस दिशा में शिशु के लिए मां के दूध से बढ़ कर कुछ नहीं हो सकता. अगर शुरुआती 6 महीने आप के शिशु ने ब्रैस्ट फीड कर लिया, फिर आप को बारबार उस के लिए डाक्टर के चक्कर काटने नहीं पड़ेंगे क्योंकि मां का परिपक्व इम्यून सिस्टम कीटनियों के प्रति ऐंटीबौडीज बनाता है, जो ब्रैस्ट मिल्क के जरीए शिशु के शरीर में प्रवेश कर के बीमारियों से बचाता है.

इम्युनोग्लोब्यूलिन ए, जो ऐंटीबौडी रक्त प्रोटीन होता है. बच्चे की अपरिपक्व आंतों की परत को कवर करता है, जिस से कीटाणुओं व जर्म्स को बाहर निकलने में मदद मिलती है. इस कारण वह रैस्पिरेटरी इन्फैक्शन, कान में इन्फैक्शन, एलर्जी, आंतों में इंफैक्शन, पेट में इंफैक्शन आदि से बचा रहता है.

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लोअर रेट आफ इन्फैंट मोर्टैलिटी

अगर बात करे इन्फैंट मोर्टैलिटी की तो ये दुनिया में बहुत बड़ी चिंता का विषय है. अकसर इस का कारण होता है लो बर्थ वेट, श्वसन संबंधित दिक्कत, फ्लू, डायरिया, निमोनिया, मलेरिया, ब्लड में इन्फैक्शन, इन्फैक्शन आदि. लेकिन देखने में आया है कि जो मांएं अपने बच्चे को भरपूर स्तनपान करवाती हैं, उन के बच्चे का वजन बढ़ने के साथसाथ इम्यूनिटी भी धीरेधीरे मजबूत होने से वे आसानी से किसी भी तरह के संक्रमण के संपर्क में नहीं आते हैं व उस का मुकाबला करने में सक्षम हो जाते हैं. इस से ऐसे बच्चों में मृत्यु दर कम देखने को मिलती है यानी ब्रैस्ट मिल्क से बेबी को स्पैशल केयर दे कर उस की जान बचाई जा सकती है.

मौम के लिए भी मददगार

बेबी को ही नहीं बल्कि ब्रैस्ट फीडिंग से मौम को भी ढेरों फायदे मिलते हैं. इस से ऐक्स्ट्रा कैलोरीज बर्न होने से मौम को अपने बढ़े हुए वेट को मैनेज करने में आसानी होती है. यह औक्सीटौक्सिन हारमोन को रिलीज करता है, जो यूटरस को अपने साइज में लाने व ब्लीडिंग को कम करने में मददगार होता है. साथ ही यह ब्रैस्ट, ओवेरियन कैंसर, डायबिटीज, दिल से संबंधित बीमारी के खतरे को कम करने का काम करता है. इसलिए ब्रैस्ट फीडिंग से बेबी के साथसाथ खुद की हैल्थ का भी रखें खयाल.

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