ओसीडी को मजबूरी या ऑब्सेशन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है क्योंकि कई लोग जब इससे ग्रसित होते हैं तो उनकी स्थिति को दूसरा व्यक्ति आसानी से समझने का प्रयास करता है.
ओसीडी से ग्रसित लोग, उनके जुनूनी आवेगों, विचारों और आग्रहों की अनदेखी करते रहते हैं और खुद को ही सही मानते हैं.
उन्हें अंदरूनी भय होता है और वो उससे अकेले ही फाइट करने में जुटे रहते हैं. साधारण शब्दों में कहा जाएं, तो ओसीडी से ग्रसित लोग, साधारण बातों में भी बखेड़ा कर देते हैं और अपनी ही सोच को थोपने का प्रयास करते हैं.
सामान्य तौर पर, ओसीडी से ग्रसित लोग खुद को हर समय अकेला महसूस करते हैं, उन्हें लगता है कि वो असहाय हैं और किसी को भी उनकी परवाह नहीं है. ये व्यवहार उनके मन में दिन में कई बार आ सकता है या वो कुछ-कुछ समय पर इसके शिकार हो जाते हैं. ओसीडी से पीडि़त लोग, अपने मन में सबसे ज्यादा मनगंढत कहानियों को बनाते हैं, वो अलग ही पिक्चर को क्रिएट करते रहते हैं.
ये भी पढ़ें- #coronavirus: तो तीसरी लहर बच्चों पर रहेगी बेअसर
इस प्रकार के रोगियों के तर्क बेहद बेकार और बिना सिर पैर के होते हैं. लेकिन वे दूसरों का जीवन, अपने व्यवहार से खराब कर देते हैं.
ओसीडी से बच्चे भी प्रभावित हो सकते हैं. टीनएज की लड़कियां या लड़के, अक्सर स्कूली दिनों में इससे ग्रसित हो जाते हैं. ऐसे में बच्चे के माता-पिता को खास ध्यान रखना चाहिए.
पिछले दशक में क्लीनिकल अध्ययन में यह स्पष्ट हो चुका है कि यह मानसिक विकार, दवाईयां और थेरेपी के माध्यम से सही किया जा सकता है. इसके उपचार में कुछ दवाईयों को नियमित रूप से निश्चित समय तक दिया जाता है ताकि व्यक्ति खुद को बैलेंस कर सके और अपने मूड स्वींग पर काबू पा सकें.