– डॉक्टर Vipul गुप्ता, निदेशक, न्यूरोइंटरवेंशन, अग्रिम इंस्टीट्यूट फॉर न्यूरो साइंसेस, आर्टमिस हॉस्पिटल
कोविड19 के बारे में किए गए कई अध्ध्यनों के अनुसार, यह बीमारी व्यक्ति के फेफड़ों और सांस की नली को बुरी तरह प्रभावित करती है, जिसके कारण मरीज को सांस लेने में परेशानी होने लगती है. लेकिन एक तथ्य से लोग अभी भी वाकिफ नहीं हैं और वह यह है कि यह बीमारी कई मरीजों के मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम को भी गहरा नुकसान पहुंचाती है.
कुछ हालिया अध्ध्यन बताते हैं कि कोविड के 30-40% मरीजों में न्यूरोलॉजिकल यानी कि मस्तिष्क संबंधी समस्या होने का खतरा है. जिन मरीजों को कोरोना के साथ-साथ मस्तिष्क संबंधी समस्या है उनमें से अधिकतर मरीजों को स्ट्रोक जैसी गंभीर समस्या से गुज़रना पड़ा है. वहीं कुछ मरीजों को बेहोशी की समस्या हुई तो कई मरीजों ने मसल इंजरी की शिकायत भी की. ये सभी समस्याएं सीधा-सीधा नर्वस सिस्टम से जुड़ी हुई हैं. इसके अलावा कोविड के कई मरीजों ने यह भी कहा कि उन्हें सूंघने में समस्या आ रही है, जो एक मस्तिष्क संबंधी समस्या है.
कोरोना के मरीजों को क्यों हो रहा स्ट्रोक?
कोरोना के कई मरीजों को स्ट्रोक की समस्या क्यों हो रही है और इसका मूल कारण क्या है, अबतक इसपर कई अध्ध्यन किए जा चुके हैं. इसका एक कारण यह है कि मरीजों के शरीर में डी-डाइमर नाम के केमिकल की मात्रा ज्यादा हो जाती है, जो खून के थक्कों के लिए जिम्मेदार माना जाता है.
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कोविड स्ट्रोक के लक्षण सामान्य स्ट्रोक से बिल्कुल अलग
विश्वस्तर पर, डॉक्टरों ने कोविड के मरीजों में स्ट्रोक की समस्या पाई, जिसमें इंग्लैंड, अमेरिका और चाइना जैसे देश भी शामिल हैं. हालांकि, कोविड स्ट्रोक के मरीजों में जो लक्षण पाए गए वे सामान्य स्ट्रोक के मरीजों से बहुत अलग थे. स्ट्रोक की समस्या सबसे ज्यादा युवा आबादी, 50-55 की उम्र वाले लोग और सामान्य तौर पर 65-70 की उम्र वाले लोगों में देखने को मिलती है.
कोविड के संक्रमण को हटाकर बात की जाए तो स्ट्रोक के मरीजों में कोई अन्य गंभीर बीमारी होने की संभावना नहीं पाई गई है. स्ट्रोक की समस्या आमतौर पर बुज़ुर्गों में ज्यादा देखने को मिलती है, जो हाइपरटेंशन, डायबिटीज या कोलेस्ट्रॉल आदि जैसी समस्याओं से पहले से ग्रस्त हैं. इसके अलावा यह समस्या उन बुजुर्गों को भी होती है जो धूम्रपान के आदी होते हैं. लेकिन कोविड के कारण युवा आबादी बेवजह स्ट्रोक का शिकार बनी हुई है.
हालांकि, कुछ मरीजों में स्ट्रोक के लक्षण कोविड के लक्षणों से पहले नज़र आ सकते हैं तो वहीं कुछ मरीजों में स्ट्रोक के लक्षण कोविड के निदान के 7-10 दिनों के बाद नज़र आते हैं.
निदान में देर करना
जबसे लॉकडाउन लगा है, तबसे अस्पतालों में आपातकालीन मामलों में कमी आई है. निदान के लिए सही समय पर पहुंचने वाले मरीजों की संख्या बेहद कम हो गई. यह हाल सिर्फ भारत का ही नहीं बल्कि पूरी विश्व का है.
सोशल डिस्टेंसिंग के कारण बहुत से बुजुर्ग अकेले रह रहे हैं, जिसके कारण उनकी स्ट्रोक की समस्या पर किसी का ध्यान ही नहीं गया. दरअसल, आजकल यदि किसी परिवार में किसी सदस्य में स्ट्रोक के लक्षण नज़र आते हैं तो वे कोरोना के डर से मरीज को अस्पताल ले ही नहीं जाते हैं. अब ऐसे में यदि मरीज सही समय पर निदान नहीं कराएगा तो बाद में किए गए इलाज के परिणाम कुछ खास नहीं होते हैं.
समय पर इलाज ही इसका उचित समाधान है
डॉक्टरों के लिए भी आपातकालीन वाले मरीजों का इलाज करना एक बड़ी चुनौती बन गई है. कुछ मरीज कोरोना से संक्रमित होते हैं लेकिन डॉक्टर इमरजेंसी वाले मरीजों के इलाज में देर नहीं करते हैं.
डॉक्टर विपुल गुप्ता ने इसके बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इस वायरस के निदान के लिए उनकी टीम मरीजों का तत्काल सीटी स्कैन कर रही है. हमारी अनेस्थीलिया की टीम ने एक ऐसी तकनीक बनाई है जो इस वायरस को फैलने से रोकती है. हम हर तरह से एहतिहात बरत रहे हैं, जहां हम न्यूरोइंटरवेंशन की प्रक्रिया के दौरान सिर्फ मास्क की बजाय रेस्पीरेटर्स और स्क्रीन का इस्तेमाल भी करते हैं. इस प्रकार हम टेस्ट के लिए बिना देर किए इलाज समय पर शुरू कर पाते हैं.
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प्राइवेट सेक्टर में अपनी स्ट्रोक की टीम के लिए चर्तित अग्रिम इंस्टीट्यूट में, इस प्रकार का प्रोटोकॉल अपनाया जाता है, जिसकी मदद से हम आज भी स्ट्रोक के मरीजों का आसानी से इलाज कर पा रहे हैं. हमारी टीम में जाने-माने अनुभवी डॉक्टर शामिल हैं, जिनके द्वारा लिखे गए दिशा-निर्देशों को अंतरराष्ट्रीय जरनल में छापा जा चुका है. ये दिशा-निर्देश कोविड स्ट्रोक के मरीजों के उचित इलाज के बारे में बताते हैं.